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खड्ग प्रसाद शर्मा ओली, जिन्हें हम केपी शर्मा ओली के नाम से ज्यादा जानते हैं
खड्ग प्रसाद शर्मा ओली, जिन्हें हम केपी शर्मा ओली के नाम से ज्यादा जानते हैं, वह फिर से नेपाल के प्रधानमंत्री बन गए हैं. नेपाल के इतिहास को देखते हुए कहा जा सकता है यहां के पी शर्मा ओली जैसा चतुर सुजान नेता फिलहाल अभी तक पैदा नहीं हुआ है. पिछले एक साल में, मोटे तौर पर कहें तो कोविड के दौर में ओली की राजनीति में गजब का उलटफेर देखने को मिला. इतने छोटे से समय में वे उग्र चीन समर्थक कम्युनिस्ट से 'मजबूत' प्रो-इंडिया हिंदू नेता बन गए! और नेपाल में बीजेपी की तर्ज पर ओली पशुपतिनाथ मंदिर गए, वहां सवा लाख बत्तियों वाले दीये जलाकर विशेष पूजा की और 30 करोड़ रुपये की एक स्वर्ण जलहरी मंदिर को अर्पित की.
हिंदुत्व की अगली कड़ी के रूप में ओली ने पिछले महीने अपने निवास पर राम, लक्ष्मण, जानकी की प्रतिमाओं की पूजा की और तीन रथों पर उन्हें बाजे-गाजे के साथ चितवन स्थित उस जगह के लिए रवाना किया, जिसे पिछले साल राम की असली जन्मस्थली बताने पर भारत में शोर मचा था. ये सब इसलिए ही हो रहा है कि नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाने के पीछे एक बड़ा जनमत है. सत्ता से बेदखल किए जा चुके राजा को बाइज्जत काठमांडू लाकर फिर प्रभुता सौंपने की इच्छा रखने वाले एक बहुत बड़े वोटबैंक को साधा जा सके. इस तरह की मनोकामना रखने वाले नेपाली कांग्रेस के भीतर भी काफी मुखर हैं. ओली जानते हैं कि कम्युनिस्ट दायरे में जगह बनाने में उनके लिए कई प्रतिस्पर्धी हैं पर हिंदूवादी छवि के साथ इस नए वोटबैंक को अपनी छत्रछाया में लाने की कोशिश उनके लिए आसान भी है और वे उसमें सफल भी हो रहे हैं.
चीन के समर्थक हुआ करते थे ओली
2017 के चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ प्रधानमंत्री पद ओली के हाथ आया था. इसके पहले 2015-16 में भी 11 महीने उन्होंने देश का प्रधानमंत्री पद संभाला था. उस समय उन्होंने अपनी छवि खुलेआम भारत विरोधी, चीन समर्थक नेता की बनाई. अपने पहले कार्यकाल में ही उन्होंने चीन-नेपाल सीमा पर किरोंग में एक ड्राई पोर्ट बनवाने की पहल करके नेपाल की उत्तरी सीमा को आयात-निर्यात के लिए खोल दिया. चीन की बहुचर्चित तिब्बत रेलवे को किरोंग के रास्ते काठमांडू लाने के प्रस्ताव पर दस्तखत भी उन्होंने करके अपने इरादे जता दिए थे. जाहिर है उनके चीन समर्थक इन कामों का भारत में खूब विरोध भी हुआ था. दूसरे कार्यकाल में वे भारत के दुश्मन नंबर एक का और चीन का मित्र नंबर वन की राह पर थे. उन्होंने नेपाल के कुछ गांवों को भारत के कथित क़ब्ज़े से छुड़ाने की मुहिम छेड़ दी. संसद से नेपाल का नया नक़्शा पारित करा लिया. ओली का मन इतना बढ़ चुका था कि कोई फैसला लेने से पहले अपने मंत्रिमंडल की राय लेना भी उन्होंने छोड़ दिया.
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दरअसल सोमवार को विश्वास प्रस्ताव के दौरान वोटिंग हुई थी तो केपी शर्मा ओली को केवल 93 वोट हासिल हुए थे, जबकि उन्हें अपना बहुमत साबित करने के लिए 136 मतों की जरूरत थी. बहुमत साबित ना होने की वजह से उनका प्रधानमंत्री पद उनसे छिन गया था, इसके बाद राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने गुरुवार रात 9 बजे तक विपक्षी दलों को मौका दिया था कि वह सरकार बनाने का बहुमत सदन में पेश करें. लेकिन आपसी गुटबाजी के चलते विपक्ष सदन में गुरुवार रात 9 बजे तक बहुमत साबित नहीं कर सका और केपी शर्मा ओली नेपाल के फिर से प्रधानमंत्री चुन लिए गए.
नेपाल में सरकार बनाने की जंग कम्युनिस्ट पार्टी के नेता केपी शर्मा ओली और नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा के बीच लड़ी जा रही थी. मंगलवार को शेर बहादुर देउबा ने प्रधानमंत्री पद के लिए अपना दावा पेश किया था, लेकिन समाजवादी पार्टी नेपाल ने जब सरकार के गठन में हिस्सी लेने से इनकार कर दिया तो शेर बहादुर देउबा के प्रधानमंत्री बनने के सपने को झटका लग गया और वह बहुमत से 11 वोट पीछे रह गए. दरअसल नेपाल के 271 सदस्यीय सदन में बहुमत के लिए 136 के आंकड़े की जरूरत होती है लेकिन देउबा के पास केवल 125 वोट ही थे, इसकी वजह से वह सरकार नहीं बना सके और केपी शर्मा ओली नेपाल के प्रधानमंत्री पद पर फिर से आसीन हो गए.
14 साल तक जेल में रहने वाले ओली की कहानी
नेपाल के नव निर्वाचित प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली अपने छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हो गए थे. आपको पता ही होगा नेपाल हमेशा से राजतंत्र वाला देश रहा है, वहां पिछले 240 सालों से राजशाही थी इसके बाद माओवादियों ने काफी संघर्ष किया और मई 2008 में नेपाल से राजशाही का अंत हो गया. इस संघर्ष की एक कहानी केपी शर्मा ओली की भी थी. इन्होंने इस राजशाही के खिलाफ आवाज उठाने की कीमत अपने जीवन के 14 साल देकर चुकाया है. दरअसल ओली को राजशाही के खिलाफ आवाज उठाने के जुर्म में 14 साल तक जेल में गुजारने पड़े थे. केपी शर्मा ओली 1973 से 1987 तक जेल में रहे थे.
राजनीति के लिए स्कूल छोड़ने वाले ओली
22 फरवरी 1952 को पूर्वी नेपाल में जन्में खड्ग प्रसाद शर्मा ओली उर्फ केपी शर्मा ओली का संघर्ष बचपन से ही शुरू हो गया था. बेहद कम उम्र में उनकी मां का साया उनके सिर से उठ गया. मां के ना होने का दर्द कितना बड़ा होता है यह शायद ही ओली से बेहतर कोई समझता होगा. लेकिन ओली हमेशा से क्रांति में विश्वास रखते थे. जब वह स्कूल में थे तो उन्हें कम्युनिस्ट विचारधारा ने अपनी ओर प्रभावित किया और उन्होंने ने उसी वक्त ठान लिया कि वह कुछ भी करके नेपाल से राजशाही खत्म कर देंगे. इसके लिए उन्होंने कक्षा नौवीं के बाद अपना स्कूल छोड़ दिया और कम्युनिस्ट पार्टी के साथ इस मुहिम में जुट गए. लेकिन ओली को इस दौरान जेल हो गई और उन्होंने जेल से ही अपनी 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की थी.
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