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कांग्रेस मज़बूरी में उन्हें नेता मानने को मज़बूर हो जाए?
पंकज कुमार।
क्या कांग्रेस (Congress) के बैगर विपक्ष मोदी-शाह की बीजेपी (BJP) को पटखनी दे सकती है? लगातार तीन चुनाव बंगाल में जीतने वाली ममता क्या इतनी आत्मविश्वास से लबरेज हो गई हैं कि उन्हें विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस (Congress) की भूमिका कहीं नजर नहीं आती है? ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को क्या पूरा देश बंगाल (Bengal) का सियासी पिच नजर आता है, जहां कांग्रेस के बगैर वो बीजेपी को पटखनी देने में कामयाब हो जाएंगी. ज़ाहिर है ममता बनर्जी ऐसा सोच नहीं रही होंगी, लेकिन देश की सियासी पिच पर वो ऐसा रुख अख्तियार कर रही हैं कि कांग्रेस मज़बूरी में उन्हें नेता मानने को मज़बूर हो जाए.
ज़रा सोचिए जब सूबे का एक सीएम ये कहे कि यूपीए क्या है? अब यूपीए नहीं है. ये कहते हुए ममता महाराष्ट्र के और राजनीति के पितामह के साथ खड़ी थीं और वो हैं शरद पवार. राजनीति के बूढ़े शेर लेकिन जरूरत आन पड़ने पर वो देश में अपनी जादुगरी से किसी ओर बाजी पलटने की क्षमता रखते हैं. ममता ने यूपीए के वजूद पर सवाल खड़ा करने से पहले उद्धव ठाकरे से भी मुलाकात की… मतलब साफ था कि उनकी गर्जना में पवार की हां तो प्रत्यक्ष थी, लेकिन शिवसेना की हां से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है.
सवाल फिर वही है कि ममता के इस प्रयोग के सफल होने की गुंजाइश कितनी है और अगर है तो फिर क्या ममता साल 2024 से पहले एक नए तरह के 'जनता एक्सपेरिमेंट' का इशारा कर रही हैं. हालांकि ममता के बयान से कांग्रेस में बेचैनी है और उसके कई नेता कांग्रेस के बिना किसी भी गठबंधन के प्रयोग को बेमानी करार दे रहे हैं. आइए समझते हैं कि क्या कांग्रेस को अलग-थलग कर बीजेपी का मुकाबला किया जा सकता है?
ममता का यह नया प्रयोग इतिहास दोहरा सकेगा?
कभी कांग्रेस विरोध की हवा साल 1997 में चली थी और सारी विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर कांग्रेस को 295 के मुकाबले 154 सीटों पर रोकने में कामयाब रही थीं. जनता पार्टी के बैनर तले ये प्रयोग सफल हुआ था और पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार केन्द्र में काबिज हुई थी. लेकिन महज दो सालों में मोरारजी और तीन सप्ताह में चौधरी चरण सिंह की सरकार गिर गई. चुनाव दोबारा साल 1980 में हुआ और विपक्ष का वह प्रयोग महज चंद दिनों में सफल होकर भी औंधे मुंह गिर गया. तब विपक्ष की नजर में इंदिरा की बादशाहत को रोकना था. वहीं अब नरेन्द्र मोदी की बादशाहत की धज्जी उड़ाने के लिए ममता बनर्जी बीजेपी के खिलाफ छोटे-बड़े विपक्षी दलों को साथ लाकर एक तरह से वही कहानी को दोहराना चाहती हैं. तब इंदिरा गांधी थीं, आज नरेंद्र मोदी हैं जो लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता पर काबिज हैं. लेकिन कांग्रेस के बगैर वैसे प्रयोग सफल होंगे इसकी गुंजाइश बहुत कम है.
कांग्रेस के बगैर ममता की डगर मुश्किल?
पहली बार साल 1977 में जनता एक्सपेरिमेंट इस वजह से सफल हुआ था कि ज्यादातर विपक्षी दल एक छतरी के नीचे एक साथ खड़े थे. लेकिन विपक्षी एकजुटता कांग्रेस के बगैर मुमकिन नहीं दिखाई पड़ती है. हालांकि कांग्रेस सबसे बुरे दौर से गुजर रही है, लेकिन इस बुरे दौर में भी लोकसभा चुनाव में देश के 19.46 प्रतिशत वोटर कांग्रेस के साथ थे. तकरीबन 12 करोड़ वोटरों का भरोसा कांग्रेस के साथ था. कांग्रेस को पूरी तरह नजरअंदाज कर विपक्षी मोर्चा नरेंद्र मोदी-अमित शाह की बीजेपी को टक्कर नहीं दे सकती. ऐसी लहर फिलहाल कहीं नजर नहीं आ रही है.
वैसे राजनीति के चाणक्य प्रशांत किशोर कहते हैं कि कांग्रेस पिछले दस सालों में 90 फीसदी चुनाव हारी है, इसलिए लोगों को ये विकल्प दिया जाना चाहिए कि वो विपक्षी नेता के तौर पर वर्तमान सरकार के मुखिया का विकल्प चुन सकें. लेकिन प्रशांत किशोर का गणित धरातल की राजनीति पर असर लाएगा ऐसी संभावना दूर दूर तक दिखाई नहीं पड़ती है.
कांग्रेस बगैर विपक्ष की राजनीति की हकीकत क्या है?
देश की सबसे पुरानी पार्टी हमेशा से केंद्र की सत्ता में रही है या फिर मुख्य विपक्ष की भूमिका में. कभी इन दो भूमिकाओं में कांग्रेस नहीं रही तो सरकार कांग्रेस के बाहरी समर्थन पर चली है. चौधरी चरण सिंह, एचडी देवगौड़ा, आईके गुजराल और चंद्रशेखर की सरकारें कांग्रेस की मदद से ही चली हैं. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए-1 और यूपीए-2 की सरकार में वो सभी पार्टियां शामिल थीं जो कभी गैर-कांग्रेस और गैर-बीजेपी राजनीति का दम भरा करती थीं
ममता के हमलों के पीछे का गूढ़ रहस्य क्या है?
ममता सीधे-सीधे कांग्रेस नेतृत्व को निशाने पर ले रही हैं. इशारों-इशारों में राहुल गांधी पर तीखा हमला बोलते हुए ममता ने कह दिया कि 'आधा समय विदेश में और आधा समय देश' में रहने वाले नेता बीजेपी को टक्कर नहीं दे सकते. दीदी के तीखे बयानों से कांग्रेस में बेचैनी है, लेकिन दीदी यह बात कर एक तीर से कई निशाने साध रही हैं. पहले कांग्रेस को तोड़ कई नेताओं को अपने पाले में ले रही हैं. वहीं कांग्रेस के विपक्ष के सिरमौर बनने से पहले ही उसे धाराशाई कर, डिफेंसिव कर देना चाहती हैं. लोकसभा में पार्टी के नेता और पश्चिम बंगाल के रहने वाले अधीर रंजन चौधरी ने ममता बनर्जी पर वापस हमला बोलते हुए बीजेपी को फायदा पहुंचाने का आरोप मढ़ दिया है लेकिन ममता अपने मकसद में कामयाब होती दिख रही हैं. ममता दीदी ने कहा, यूपीए क्या है? कांग्रेस नेता अधीर रंजन बोले- ये नया पागलपन शुरू कर दिया, बंगाल का मतलब भारत नहीं.
कांग्रेस के ज्यादातर नेता ममता पर तीखे हमले से क्यों बच रहे हैं?
ममता के बयान पर पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने ट्वीट किया, 'कांग्रेस के बिना यूपीए वैसा ही होगा जैसे आत्मा के बिना शरीर. यह वक्त विपक्षी एकता को दिखाने का है. कांग्रेस के दूसरे बड़े नेता दिग्विजय सिंह ममता बनर्जी पर पलटवार करते हुए सवाल करते हैं- कांग्रेस को छोड़कर देश की कौन सी ऐसी पार्टी है जो 1947 से लेकर अबतक बीजेपी के साथ मिलकर सरकार नहीं बनाईं. कांग्रेस नेता बीजेपी की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का जिक्र कर रहे हैं जिसमें ममता बनर्जी मंत्री थीं, उनकी पार्टी टीएमसी एनडीए का हिस्सा थी. दिग्विजय सिंह आगे कहते हैं कि सड़कों पर कोई बीजेपी का विरोध कर रहा है तो वह कांग्रेस पार्टी है.
ममता बनर्जी का मकसद क्या है?
बंगाल में जीत की हैट्रिक के बाद टीएमसी के विस्तार में ममता बनर्जी जुटी हैं. राष्ट्रीय स्तर पर ममता खुद को नरेंद्र मोदी के मजबूत विकल्प के तौर पर पेश करने के कोशिश में हैं. वह नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता की फोकल प्वाइंट बनना चाहती हैं और उनका मकसद है कि 2024 में बीजेपी को रोकने के नाम पर कांग्रेस मजबूर हो और ममता का नेतृत्व कबूल करे. ममता जिस राह पर बढ़ रही हैं वह एंटी-बीजेपी, एंटी-कांग्रेस की तरफ जाती है. लेकिन ऐसा प्रयास विफल होने पर एंटी-बीजेपी वोटों के बिखराव का ही कारक बनेगा.
देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर एक क्षेत्रीय पार्टी का नेतृत्व स्वीकार कर ले ऐसी उम्मीद नहीं है. लेकिन एंटी बीजेपी की दौर में जनता की नजरों में आगे घोषित कर कांग्रेस को मजबूर करने की कवायद जारी है. ज़ाहिर है इसी रणनीति के तहत ममता के चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर ने राग अलापना शुरू कर दिया है कि विपक्षी दलों को अपना नेता चुनने का अवसर मिले. प्रशांत किशोर पिछले 10 सालों में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन का हवाला दे रहे हैं.
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