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लालू के पुराने रंग और नीतीश के बदले तेवर क्या मोदी के लिए खतरे की घंटी है?
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | पंकज कुमार | लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) की राजनीति के कायल उनके धुर विरोधी भी हैं. लालू दिग्गज नेताओं से मुलाकात कर तीसरे विकल्प की बात खुल कर करने लगे हैं. लालू प्रसाद की मुलाकात शरद पवार, मुलायम सिंह, अखिलेश यादव समेत शरद यादव तक से हो चुकी है. ज़ाहिर है लालू प्रसाद की कोशिश बड़े नेताओं को एक मंच पर लाकर मोदी विरोधी राजनीति को तेज़ करने की है. लेकिन इस दरमियान नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के बदले तेवर ने बिहार सहित देश की राजनीतिक फिज़ा में बड़े बदलाव के संकेत देने शुरू कर दिए हैं.
लालू प्रसाद यूपी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Elections) से पहले समाजवादी दिग्गज नेता मुलायम सिंह और सपा के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से उनके घर जाकर मिल चुके हैं. बिहार और यूपी के इन तीन बड़े नेताओं की मुलाकात कई मायनों में अहम मानी जा रही है. कहा जा रहा है कि लालू प्रसाद जाति के आधार पर जनगणना के मुद्दे पर समान सोच रखने वाले नेताओं को एक मंच पर लाना चाहते हैं जो मंडल कमीशन को लागू किए जाने के बाद राजनीतिक जीवन के शीर्ष पर पहुंचे हैं.
लालू प्रसाद ने इस कड़ी में शरद यादव से आज यानि मंगलवार को उनके आवास पर मुलाकत की और कहा कि कई मुद्दों पर लालू, शरद यादव और मुलायम सिंह एक साथ मिलकर पहले भी संघर्ष कर चुके हैं. बिहार और यूपी की राजनीति के लिए इन नेताओं की मुलाकात बेहद अहम मानी जा रही है. लेकिन राष्ट्रीय फलक पर मोदी विरोधी माहौल असरदार हो इसलिए लालू प्रसाद ने शरद पवार से भी मुलाकात कर अपने इरादे साफ कर दिए हैं. ज़ाहिर है इन नेताओं को साथ लाकर लालू प्रसाद मोदी विरोधी राजनीति को तेज करने में जुट गए हैं.
नीतीश के बदले तेवर और लालू प्रसाद से इन मुद्दों पर सहमति के मायने?
नीतीश कुमार पेगासस मामले में जांच की मांग कर चुके हैं. वहीं जाति आधारित जनगणना के मुद्दे पर नीतीश और लालू प्रसाद के तेवर एक जैसे ही हैं. नीतीश कुमार इस बाबत पीएम मोदी को चिट्ठी भी लिखने वाले हैं. जाति आधारित जनगणना के मुद्दे पर बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव और सीएम नीतीश कुमार की मुलाकात भी हो चुकी है. इसलिए इस बात को लेकर कयास लगाए जाने लगे हैं कि नीतीश का ये व्यवहार सामान्य नहीं है.
पेगासस मामले पर नीतीश कुमार के बयान के बाद शिव सेना के संजय राउत ने कहा कि नीतीश सत्ता के साथ हैं लेकिन उनकी आत्मा विपक्ष के साथ ही भटकती है. ज़ाहिर है ऐसे बयान के अपने मायने हैं, लेकिन नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा उपेन्द्र कुशवाहा के उस बयान में भी झलकती है जिसमें उन्होंने नीतीश कुमार को पीएम मेटेरियल करार दिया है.
सवाल मुद्दों पर सहमति का है. पेगासस और जाति के आधार पर जनगणना के मुद्दे पर जेडीयू और आरजेडी की एक राय है. वहीं आरजेडी पहले भी कह चुकी है कि नीतीश कुमार केन्द्र की राजनीति करें बिहार को तेजस्वी के हवाले सौंप दें तो आरजेडी उनका समर्थन करेगी. ज़ाहिर है लालू की नई कोशिश में राजनीति कोई नया करवट ले ले इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है.
बीजेपी और जेडीयू में कई अन्य मुद्दों पर है तकरार
नीतीश कुमार जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे पर कानून बनाने के खिलाफ हैं और यूपी में हो रही गतिविधियों के खिलाफ आगे आकर बयान दर्ज करा चुके हैं. इतना ही नहीं इनेलो के नेता चौटाला से हाल के दिनों में नीतीश कुमार की मुलाकात कई मायनों में बीजेपी के लिए नाखुश करने वाली थी, लेकिन नीतीश और चौटाला की मुलाकात हाल ही में संपन्न हुई है. कहा जाता है कि साल 2025 तक बीजेपी सत्ता में काबिज होना चाहती है और हर हाल में बिहार में अपने सीएम को बिठाना चाहती है.
नीतीश कुमार ने बीजेपी की काट के लिए भूमिहार जाति के नेता राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को जेडीयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर बीजेपी के परंपरागत मतदाताओं में सेंधमारी की कोशिश की है. इसे इस रूप में देखा जा रहा है. ध्यान रहे बिहार के चुनाव में नीतीश जिसके साथ जाते हैं उसका पलड़ा भारी हो जाता है. यही वजह है कि साल 2015 में नीतीश लालू के साथ मिलकर चुनाव लड़े थे और बीजेपी 50 सीटों पर सिमट गई थी. लेकिन साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीयू को 40 में से 39 सीटें मिली थीं. इसलिए बिहार की राजनीति के लिए नीतीश कुमार की अहमियत पिछले बीस सालों से लगातार बनी हुई है. ऐसे में केन्द्र में महज एक कैबिनेट बर्थ मिलने से नाराज कहे जाने वाले नीतीश कुमार का रुख साल 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले पलट सकता है. इसको लेकर चर्चा जोरों पर है.