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जब धर्म की रक्षा की बात आती है तो क्या पहले हम अधिक सहिष्णु और सहज थे और आज हम छोटी-छोटी बातों पर भड़क उठते हैं
बिक्रम वोहरा।
जब धर्म की रक्षा की बात आती है तो क्या पहले हम अधिक सहिष्णु और सहज थे और आज हम छोटी-छोटी बातों पर भड़क उठते हैं. 1971 में आशा भोंसले ने ज़ीनत अमान के लिए 'दम मारो दम' गीत गाया जो कि पूरी तरह ड्रग्स और नशे में धुत लोगों पर फिल्माया गया था. ये गीत इतना प्रसिद्ध हुआ कि इसे करीब-करीब भजन का दर्जा मिल गया. इसके मुखड़े की पंक्ति थी 'हरे कृष्णा हरे राम'. लेकिन इससे न तो किसी की भावनाएं आहत हुईं और न ही किसी ने देव आनंद को परेशान किया. उषा उत्थुप के हर कंसर्ट में ये गीत समां बांध देता था. आज भी ये गीत चर्चित माना जाता है और हमारी पीढ़ी में किसी को भी ये आपत्तिजनक नहीं लगा. मैं बस यही जानना चाहता हूं कि आखिर हमारी पीढ़ी की भावनाएं आहत क्यों नहीं होती थीं? अब इसकी तुलना सनी लियोनी के 'मधुबन' गीत से करते हैं जिसने कई लोगों को नाराज कर दिया है, उनकी आपत्ति है कि इसमें एक सुंदर गीत का कर्कश रीमिक्स कर दिया गया. लेकिन इस तरह से भी अगर हम भगवान का गुणगान ही कर रहे हैं तो ये गलत कैसे हो सकता है?
जब हम बच्चे थे तो माखनचोर नटखट कृष्ण की कहानियां हमें काफी मोहित करती थीं. हमने भी बचपन में ऐसी शरारतें की ही थीं. आपका नहीं पता, लेकिन मैंने तो की थीं. गोपियों के साथ कृष्ण की रासलीला की कहानियों से हम अपने आपको जोड़ लेते थे और इससे कृष्ण की छवि हमारे मन में जीवंत हो उठती थी. एक किशोर के रूप में यह काफी आनंददायक था. क्या अब मैं ये सब कुछ कहने से या इन किंवदंतियों पर कोई गीत बनाने से डरूंगा? मैं सच में नहीं जानता.
नरोत्तम मिश्रा राजनेता से ज्यादा एक धार्मिक पहरेदार बन गए हैं
मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने सनी लियोनी के इस म्यूजिक वीडियो पर नाराजगी जताई और साफ कर दिया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से अगर इसे नहीं हटाया गया तो अभिनेत्री समेत वीडियो के निर्माताओं पर कार्रवाई की जाएगी. अब इस म्यूजिक वीडियो को हटा दिया गया है. ये शक्ति का प्रदर्शन नहीं है तो क्या है! उनके मापदंड से 'सिद्धार्थ' में सिमी ग्रेवाल के उत्तेजक पोज कहर बरपा देते, लेकिन सत्तर के दशक में दर्शकों ने उसे काफी पसंद किया. अगर मैं गलत नहीं हूं तो सिमी के ड्रॉइंग रूम में इसका एक ब्लैक एंड व्हाइट लाइफ साइज वर्जन लगा होता था.
भावनाओं का आहत होना आज इतना आम हो गया है कि अगर संयुक्त अरब अमीरात की तरह बाकायदा एक सहिष्णुता मंत्रालय (Ministry Of Tolerance) नहीं बनाया जाए तो कम-से-कम एक आधिकारिक प्लेटफॉर्म जरूर हो जहां पर हम किसी बात से आहत होने पर शिकायत कर सकें या राहत की मांग कर सकें. नरोत्तम मिश्रा की तत्परता देखकर लगता है कि वो इस मंत्रालय या प्लेटफॉर्म का प्रमुख बनने की पूरी काबलियत रखते हैं, क्योंकि अब वो एक राजनेता से ज्यादा एक धार्मिक पहरेदार बन गए हैं, या कहें कि उनके धार्मिक पहरेदार बनने से उनके राजनीतिक करियर को ताकत मिल रही है. एक ऐड में मंगलसूत्र को लेकर उन्हें इतनी आपत्ति हुई उन्होंने फैशन डिजाइनर सब्यसाची की ऐसी-तैसी कर दी. उन्होंने मध्य प्रदेश में कमेडियन वीर दास के कार्यक्रम पर पाबंदी लगा दी और डाबर को एक क्रीम ऐड में करवा चौथ के सीन पर कानूनी कार्रवाई की धमकी दे डाली. जब तक वो इस तरह के मंत्रालय के प्रमुख रहेंगे तब तक सभी महफूज रहेंगे और कोई अपनी सीमा लांघने की कोशिश नहीं करेगा!
पहले के मुकाबले अब लोगों की भावनाएं ज्यादा आहत होती हैं
सच तो ये है कि शिकायत करने वालों की कभी कमी नहीं होगी. हमारे स्पोर्ट्स के सितारों को, खास कर क्रिकेट के सितारों को, लगातार आहत किया जाता है. विराट, हार्दिक और हर हाल में अश्विन! जबकि राजनेताओं की भावनाएं आहत हो जाएं वो उसे जाहिर करने में कोई कसर नहीं छोड़ते, बल्कि वो पूरा एक अभियान छेड़ देते हैं. अल्पसंख्यक अपनी आहत हुई भावनाओं को लेकर बेचैन रहते हैं. जबकि बहुसंख्यक समुदाय बात-बात पर आहत हो जाता है.
जब लोगों की भावनाओं को ठेस लगती है तब एडवरटाइजिंग एजेंसी और कॉरपोरेट दबाव में झुक जाते हैं और उन विज्ञापनों को वापस ले लेते हैं. सब्यसाची, तनीषा और फैबइंडिया सभी को लग रहा था कि वो एकजुटता और सेक्यूलरिज्म, जो आज एक बुरा शब्द बन कर रह गया है, को बढ़ावा दे रहे थे. हमारे स्टैंड-अप कॉमेडियन डर के साये में जीते हैं कि कब उन पर कार्रवाई हो जाए, फिल्म बनाने वाले फूंक-फूंक कर कदम रखते हैं. उन्हें जोधा अकबर, पद्मावती और करण जौहर के 'ऐ दिल है मुश्किल' फिल्म में पाकिस्तानी अभिनेता को लेने के वाकये याद आते हैं.
नकली धर्म प्रचारक नेता और नेता धर्म प्रचारक बनते जा रहे हैं
सचमुच, पुराने दिनों में सोशल मीडिया के नहीं होने और त्वरित फैसलों के अभाव में लोगों की भावनाएं उतनी आहत नहीं होती थीं और वो ज्यादा हल्ला-गुल्ला नहीं मचाते थे. मगर आज जब हम सब इतने अतिसंवेदनशील और असुरक्षित हैं कि नेता लोग धर्म से जुड़े मुद्दे उठा कर हमारी भावनाओं का फायदा उठा रहे हैं. जैसे-जैसे नकली धर्म प्रचारक नेता और नेता धर्म प्रचारक बनते जाएंगे, हम संभवतः आगे और भ्रमित होते चले जाएंगे. लोग इस वक्त इतने संवेदनशील हो गए हैं कि कोई उनकी भावना को ठेस पहुंचाए तो वो तुरंत धर्म के रक्षक बन जाते हैं.
चूंकि हमें अब नरेत्तम मिश्रा जैसे लोगों के मानदंड से मापा जा रहा है, इसलिए वो स्वयं आगे आकर इस संभावित मंत्रालय को बनाएं, उसकी आचार संहिता और क्या करें या क्या नहीं करें इसकी सूची भी बनाएं, ताकि हर कोई 'अच्छा व्यवहार' कर सके और इस चक्कर में सृजनात्मकता को आहत नहीं पहुंचे. या शायद हमें सृजनात्मकता को खत्म ही कर देना चाहिए जो वैसे भी बची नहीं है.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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