सम्पादकीय

17 महीने से बंद स्कूलों को क्या खोलने का समय आ गया है?

Rani Sahu
21 Oct 2021 1:00 PM GMT
17 महीने से बंद स्कूलों को क्या खोलने का समय आ गया है?
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कोरोना महामारी (Corona Pandemic) के कारण भारत में 17 महीने से स्कूल बंद है

ज्योतिर्मय रॉय कोरोना महामारी (Corona Pandemic) के कारण भारत में 17 महीने से स्कूल बंद है. महामारी के चलते लॉकडाउन से प्रभावित शिक्षा व्यवस्था की हाल-हकीकत जानने के लिए बिहार के बीजेपी सांसद सुशील कुमार सिंह (Sushil Kumar Singh) ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री के समक्ष कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए हैं. प्रश्न इस प्रकार थे– क्या कुछ राज्यों में वैश्विक महामारी से पहले के वर्ष की तुलना में निजी स्कूलों में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या में भारी गिरावट देखी गई है? सरकार छात्रों के इस वर्ग के शिक्षा के अवसर में हुए नुकसान से निपटने के लिए किस तरह प्रयास कर रही है? 2019-20 और 2020-21 में सरकारी और निजी स्कूल से छात्रों द्वारा स्कूल छोड़ने की राज्यवार दर कितनी है? क्या सरकार या उसके प्रशासनिक नियंत्रण में किसी अन्य निकाय में सरकारी स्कूल के छात्रों विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में भारत में 'डिजिटल विभाजन' के स्तर को मापने की कोशिश की है?

शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 2 अगस्त को लोकसभा में इन प्रश्नों के जवाब देते हुए कहा, भारत में स्कूल छोड़ने की दर प्राथमिक के लिए 1.5 प्रतिशत (लड़कों के लिए 1.7 प्रतिशत और लड़कियों के लिए 1.2 प्रतिशत), उच्च प्राथमिक के लिए 2.6 प्रतिशत (लड़कों के लिए 2.2 प्रतिशत और लड़कियों के लिए 3 प्रतिशत) और माध्यमिक स्तर पर 16.1 प्रतिशत (लड़के 17.0 प्रतिशत, लड़कियां 15.1 प्रतिशत) हैं.
महामारी के कारण शिक्षा जगत को पुनः पूर्वस्थिति में लाने के लिए अभी कुछ साल और लगेंगे
मंत्री के कहे अनुसार, 7 जनवरी को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने हर राज्य को स्पष्ट दिशा-निर्देश भेजे हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्कूल बंद रहने के दौरान 6-18 वर्षीय छात्रों, यहां तक कि विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की शिक्षा किसी भी तरह से बाधित न हो. इस संबंध में दूसरी दिशा निर्देश 4 मई, 2021 को जारी किया, जिनमें यह कहा गया है की गांवों और कस्बों में नोडल समूह, हेल्प-डेस्क स्थापित किए जाएंगे और छात्रों की विभिन्न शैक्षिक आवश्यकताओं को गंभीरता से लिया जाएगा.
लेकिन यह सभी जानते हैं कि दिशा-निर्देशों में कहने के लिए बहुत कुछ है, पर सच तो यह है की, महामारी के कारण शिक्षा जगत में आए बिखराव को पुनः पूर्वस्थिति में लाने के लिए अभी भी कुछ साल और लगेंगे. बिना मूल्यांकन के परीक्षा परिणाम से छात्रों के भविष्य अंधेरे में है. कई प्रतिष्ठित कंपनियां उन छात्रों के क्षमता पर प्रश्न उठा रही हैं.
पैसे की कमी के चलते छात्रों ने छोड़े प्राइवेट स्कूल
बकाया फीस नहीं दे पाने के कारण निजी स्कूलों ने 'तबादला प्रमाणपत्र' जारी नहीं किया, जिसके कारण 26 प्रतिशत छात्र सरकारी स्कूलों में दाखिला नहीं ले पाए. 6 सितंबर को 'स्कूल चिल्ड्रन ऑनलाइन और ऑफलाइन लर्निंग' नाम से एक सर्वे रिपोर्ट सामने आई है. केंद्र सरकार के आंकड़ों को झूठा साबित करते हुए 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 'लॉक्ड आउट इमरजेंसी रिपोर्ट ऑन स्कूल एजुकेशन' सर्वेक्षण से पता चला है कि ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 8 प्रतिशत छात्र (शहरी क्षेत्रों में 24 प्रतिशत) ऑनलाइन अध्ययन करने में समर्थ हो पाए हैं. पैसे कि कमी के कारण 26 प्रतिशत छात्रों ने प्राइवेट स्कूल छोड़ कर सरकारी स्कूल का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन बकाया फीस देने में असमर्थता के लिये निजी स्कूलों ने उन्हें 'तबादला प्रमाणपत्र' नहीं दिए, जिसके कारण 26 प्रतिशत छात्र सरकारी स्कूलों में दाखिला नहीं ले पाए.
साक्षरता दर गिरी है
पिछले 17 महीनों में, ग्रामीण क्षेत्र में 36 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 19 प्रतिशत छात्र पूरी तरह शिक्षा से दूर रहे हैं. गांव के 42 प्रतिशत छात्र एक भी शब्द को ठीक से नहीं पढ़ पा रहे हैं. 9 प्रतिशत शहरी छात्र और 6 प्रतिशत ग्रामीण छात्र इंटरनेट डेटा के लिए एक पैसा नहीं जुटा पाएं. शहरी क्षेत्र में 14 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में 43 प्रतिशत तक ऑनलाइन अध्ययन सामग्री नहीं पहुंच पाया है. केवल यही नहीं, इंटरनेट कनेक्टिविटी समस्या ने 57 प्रतिशत शहरी और 65 प्रतिशत ग्रामीण छात्रों को प्रभावित किया है. 78 प्रतिशत शहरी और 79 प्रतिशत ग्रामीण माता-पिता सोचते हैं कि लॉकडाउन के कारण पहली से पांचवीं कक्षा की शिक्षा पूरी तरह नकारात्मक हो गयी है. 10-14 वर्ष छात्रों कि साक्षरता दर शहरी क्षेत्रों में 98 प्रतिशत से घटकर 74 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 66 प्रतिशत रह गई है. दलितों और आदिवासियों के मामले में यह मूल्य घटकर 61 प्रतिशत रह गया है.
स्कूल बंद होने से बालश्रम बढ़ा है
5 फीसदी शहरी और 12 फीसदी ग्रामीण शिक्षक अपने छात्र के बारे में पूछताछ करने या पढ़ाई में मदद करने के लिए उनके घर गए, कई जिम्मेदार शिक्षकों ने आदर्श स्थापित करते हुए छात्रों को पढ़ाई के लिए अपने मोबाइल फोन उधार दिए हैं. केवल यही नहीं, आवश्यकता पड़ने पर बेहद गरीब छात्रों के मोबाइल को रिचार्ज कर करवाया है. छोटे-छोटे समूहों में विभाजित होकर उन्होंने खुले में या घर पर शिक्षा दी गई है. यद्यपि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के कुछ छात्र ऑनलाइन अध्ययन में भाग लेने में सक्षम हुए, लेकिन दूरदर्शन द्वारा शिक्षा कार्यक्रम में ग्रामीण छात्रों के 1 प्रतिशत ने भी भाग नहीं लिया. स्कूलों के बंद होने से गांवों या शहरों में बाल श्रम बढ़ गया है. 97 प्रतिशत अभिभावक चाहते हैं कि स्कूल जल्द से जल्द शुरू हो.
स्कूल शुरू करने से पहले छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है
स्कूल शुरू करना है कहने से क्या स्कूल शुरू करना संभव है? सबसे पहले छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करना की अति आवश्यक है. कोविड की तीसरी लहर का खतरा अभी भी सर पर लटक रहा है. स्कूल के बच्चों में अभी वैक्सीनेशन नहीं हुआ है. वैक्सीन से वंचित लोगों के लिए कोविड की तीसरी लहर निस्संदेह आपदा हो सकती है. ऐसे में टीके के बिना बच्चों या युवा छात्रों को संक्रमित होने की संभावना थोड़ी अधिक होती है. इसलिए स्कूल खोलने की प्राथमिक शर्त यह होना चाहिए की, सभी शिक्षकों, शिक्षक कर्मचारियों और छात्रों का अनिवार्य टीकाकरण किया गया हो.
27 अगस्त, 2021 को, अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) ने अपनी रुग्णता और मृत्यु दर साप्ताहिक रिपोर्ट (MMWR) में, कैलिफ़ोर्निया की मार्टिन काउंटी के एक शिक्षक के बारे में एक कहानी प्रकाशित की, वह शिक्षक मास्क नहीं पहनते थे और टीका भी नहीं लगवाया था. उस शिक्षक ने 26 मासूम बच्चों (प्राथमिक छात्रों) को संक्रमित किया था.
वैज्ञानिकों ने बार-बार सुझाव दिया है कि, बंद कमरों में रहने वालों की तुलना में खुली हवा में रहने वाले, कोविड-19 संक्रमण से कई गुना अधिक सुरक्षित होते हैं. इसलिए स्कूल खुलने के दौरान कक्षा की सभी खिड़कियां और दरवाजे खुले होने के साथ-साथ, पर्याप्त रोशनी और वेंटिलेशन की व्यवस्था करने की आवश्यकता है. अन्यथा, HEPA फ़िल्टर होना ज़रूरी है. एक दिन छोड़कर, स्कूल की एक निश्चित कक्षा में केवल एक निश्चित संख्या में छात्र बैठेंगे, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि किसी को बुखार न हो. यदि मोबाइल कैमरे से प्रभारी शिक्षक प्रतिदिन छात्रों की उपस्थिति की तस्वीरें खींचकर रखते हैं तो जरूरत पड़ने पर कोविड के लिये 'कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग' करना संभव होगा.
सप्ताह में एक दिन स्कूल में सभी के लिए रैपिड एंटीजन टेस्ट की व्यवस्था किया जाना चाहिए. कोविड को परास्त करने के लिए वैक्सीनेशन के साथ-साथ 'ब्रेक द चेन' पर ध्यान देना आवश्यक है. स्कूल के आसपास के क्षेत्र में संक्रमण बढ़ने पर स्कूल को बंद कर देना चाहिए. स्कूल में सभी के लिए मास्क पहनना अनिवार्य होना चाहिए.
विश्व में अभी तक 5 से 18 साल के बच्चों के लिए टीकों का विधिसम्मत परीक्षण नहीं किया गया है. फाइजर-मॉडर्न वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स के तौर पर 17-18 वर्ष की आयु वर्ग में 5,000 लोगों में से 1 को मायोकार्डिटिस और पेरिकार्डिटिस (जटिल हृदय रोग) से पीड़ित पाया गया है. आश्चर्य तौर पर, कम आयु वर्ग में इंटरफेरॉन-गामा और इंटरल्यूकिन-17 की प्रचुरता और रिसेप्टर एमडिएफ 5 ने कोरोना को बढ़ने नहीं देता है. टीके, मास्क और वयस्कों का जिम्मेदार व्यवहार ही बच्चों को स्कूल के अंदर और बाहर सुरक्षित रख सकता है. क्या सरकार और स्कूल प्रशासन इन सुझावों का क्रियान्वयन कर पाएगा?


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