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- क्या असहाय है भारत?
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पहले वास्तविक नियंत्रण रेखा से आगे बढ़ कर भारतीय इलाके पर कब्जा किया। वहां से उसके लौटने का कोई संकेत नहीं है। अब उसने भारत के पूर्वोत्तर इलाके की जल सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती पैदा कर दी है। इन तमाम चुनौतियों के मद्देनजर भारत असहाय दिखता है। गुजरे छह महीनों में वह एलएसी पर अपने इलाके खाली नहीं करा पाया। अब चीन की ताजा चुनौती का जवाब देने का भी उसके पास कोई तरीका है, इसका कोई संकेत नहीं है।
जबकि चीन के अरुणाचल प्रदेश से सटे इलाके में ब्रह्मपुत्र नदी पर एक विशाल बांध बनाने के फैसले ने भारतीय जनता और विशेषज्ञों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। भारत ने इसके बारे में चीन से सिर्फ अपनी चिंता जाहिर की है। लेकिन चीन भारतीय चिंता का कितना ख्याल करता है, अब इस बारे में शायद ही कोई भ्रम में हो। गौरतलब है कि गलवान घाटी के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच जारी तनातनी के साथ ही चीन ने पूर्वोत्तर में कई और परियोजनाएं भी शुरू की हैं।
इनमें रेलवे समेत कई आधारभूत परियोजनाएं शामिल है। चीन तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर अब तक का सबसे बड़ा बांध बनाने जा रहा है। अगले साल से इस परियोजना पर काम शुरू हो जाएगा। चीन की सरकारी मीडिया ने हाल में इस परियोजना का ब्योरा दिया। इसके मुताबिक बांध बन जाने पर दक्षिण एशियाई देशों से चीन के सहयोग के रास्ते खुलेंगे। साथ ही इस परियोजना के तैयार हो जाने पर चीन की आंतरिक सुरक्षा मजबूत होगी।
चीन में पानी की उपलब्धता भी बढ़ेगी। इस बांध का निर्माण तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के मेडॉग इलाके में किया जाना है, जो अरुणाचल प्रदेश सीमा पर नियंत्रण रेखा से सटा है। भारतीय सीमा से लगे तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में इंसानों की आखिरी बस्ती मेडॉग को हाल में ही चीन ने हाइवे के जरिए देश के बाकी हिस्सों से जोड़ा है। प्रस्तावित बांध बांग्लादेश के लिए भी चिंता का विषय है। भारत और बांग्लादेश ब्रह्मपुत्र के पानी का इस्तेमाल करते हैं। भारत ने चीन को अपनी चिंताएं बताई जरूर हैं, लेकिन चीन ने इन चिंताओं को यह कहते हुए खारिज करते हुए कह दिया कि वह दोनों देशों के हितों का ध्यान रखेगा।
जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि चीन के इस विशालकाय बांध की वजह से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और बांग्लादेश में सूखे जैसी स्थिति पैदा हो सकती है।