सम्पादकीय

क्या गुलाम नबी आजाद भी अमरिंदर सिंह की तरह कांग्रेस पार्टी को अलविदा कहने वाले हैं?

Rani Sahu
7 Dec 2021 7:27 AM GMT
क्या गुलाम नबी आजाद भी अमरिंदर सिंह की तरह कांग्रेस पार्टी को अलविदा कहने वाले हैं?
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कांग्रेस पार्टी (Congress Party) के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) के तेवर इन दिनों कुछ बदले बदले से हैं

अजय झा कांग्रेस पार्टी (Congress Party) के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) के तेवर इन दिनों कुछ बदले बदले से हैं, जो कांग्रेस पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं हैं. पिछले कुछ समय से वह जम्मू और कश्मीर (Jammu And Kashmir) का दौरा कर रहे हैं और कई रैली कर चुके हैं. उनका कहना है कि अगस्त 2019 में धारा 370 हटाए जाने के बाद से जम्मू और कश्मीर में जो राजनीतिक प्रक्रिया थम से गयी थी, उसे शुरू करना जरूरी है. आजाद की रैलियों से साफ़ दिख रहा है कि वह जम्मू और कश्मीर के आगामी विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) की अग्रिम तैयारी में जुट गए हैं. संभव है कि परिसीमन (delimitation) की चल रही प्रक्रिया की समाप्ति के बाद अगले वर्ष वहां विधानसभा चुनाव हों.

मजेदार बात यह है कि आजाद की रैली कांग्रेस पार्टी के झंडे तले नहीं हो रही है, जिससे लगने लगा है कि आजाद भी शायद कैप्टन अमरिंदर सिंह की राह पर चलने की तैयारी कर रहे हैं और चुनाव आते-आते वह कांग्रेस पार्टी के बंधन से खुद को आजाद कर लेंगे. अभी कुछ ही दिनों पहले आजाद के कई समर्थकों ने, जिनमें कांग्रेस पार्टी के कुछ पूर्व मंत्री और विधायक भी शामिल हैं, प्रदेश अध्यक्ष पद से गुलाम अहमद मीर को हटाने की मांग नहीं माने जाने के विरोध में पार्टी के पदों से इस्तीफा दे दिया था. मीर पिछले सात सालों से प्रदेश अध्यक्ष हैं और राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं.
पार्टी में NO बोलने वाला Nobody बन जाता है
आजाद ने कांग्रेस पार्टी छोड़ने का शायद मन बना लिया है. इस बात के साफ़ संकेत जम्मू में रविवार को हुए एक प्रेस कांफ्रेंस में दिखे, जब एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता है, हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका पार्टी छोड़ने का फ़िलहाल कोई इरादा नहीं है. आजाद ने बिना गांधी परिवार के किसी सदस्य का नाम लिए पार्टी पर आरोप लगाया कि स्थिति आज ऐसी हो चुकी है कि कोई भी पार्टी में 'नो' नहीं कह सकता. अगर उसने ऐसा किया तो उसे दरकिनार कर दिया जाता है और उनकी अनदेखी होने लगती है.
आजाद ने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी का उदाहरण देते हुए कहा कि वह आलोचना और विरोध का सम्मान करते थे, पर अब पार्टी में सिर्फ Yes बोलने का चलन हो गया है, जो No बोलने की कोशिश करता है. वह पार्टी में Nobody बन जाता है. आजाद का उदाहरण सभी के सामने है. पिछले वर्ष अगस्त के महीने में आजाद और कपिल सिब्बल की अगुवाई में 35 नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिख कर पार्टी में आतंरिक चुनाव कराने की मांग की थी. उनका कहना था कि जब नीचे से ऊपर तक चुनाव होगा तब ही कांग्रेस पार्टी में नया नेतृत्व उभरेगा जिससे पार्टी में नई सोच आयेगी. फिर जा कर कांग्रेस पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को टक्कर दे पाएगी.
कांग्रेस पार्टी की हाल लगातार बेहाल हो रहा है
लेकिन इसे राहुल गांधी के नेतृत्व का विरोध माना गया. राहुल गांधी, कांग्रेस वर्किंग कमेटी के एक बैठक में चुनाव की मांग करने वाले नेताओं पर जम कर बरसे. यह कहते हुए कि जब सोनिया गांधी की तबियत ठीक नहीं है ऐसे में चुनाव की मांग करना अनुचित है. फिर पहले आजाद को पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से हटा दिया गया और इस वर्ष फरवरी में जब आजाद राज्यसभा के सदस्य के रूप में रिटायर हुए तो पार्टी ने उन्हें फिर से राज्यसभा में भेजने की नहीं सोची. अगले वर्ष जुलाई में कपिल सिब्बल का भी राज्यसभा सदस्य के रूप में 6 वर्षों का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा और उन्हें भी आजाद की तरह हाशिए पर धकेल दिया जायेगा.
इस बात में किसी शक की गुंजाइश नहीं है कि गांधी परिवार कांग्रेस पार्टी को अपनी निजी जायदाद मानती है. पिछले 23 वर्षों से पार्टी पर गांधी परिवार का कब्ज़ा है जिसमें लगभग 21 वर्ष सोनिया गांधी और दो वर्ष राहुल गांधी अध्यक्ष रहे हैं. 2014 में सत्ता खोने के बाद से कांग्रेस पार्टी लगातार रसातल की और लुढ़कती जा रही है, जिसका प्रमुख कारण है सोनिया गांधी का अस्वस्थ होना और राहुल गांधी में नेतृत्व क्षमता की कमी. सोनिया गांधी अपने घर से कम ही निकलती हैं और जनता में उनका जाना या जनता से उनका मिलना कई वर्षों से थम गया है, पिछले दो चुनावों में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाया गया और कांग्रेस पार्टी 2014 में 44 और 2019 में मात्र 52 सीट ही जीत पाई जो पार्टी का सबसे बुरा प्रदर्शन रहा. पर कांग्रेस पार्टी परिवारवाद से इस कदर घिर चुकी है कि एक बार फिर से राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाए जाने की जोर शोर से तैयारी चल रही है.
कांग्रेस पार्टी की सरकार अब सिर्फ तीन राज्यों में ही है और फरवरी में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव के बाद यह संख्या दो पर सिमट जाने की पूरी सम्भावना बनती जा रही है. पार्टी में जी हुजूरी और दरबारबाजी का बोलबाला है और जो राहुल गांधी को No बोलता है वह आजाद और अमरिंदर सिंह की तरह Nobody बन जाता है.
गुलाम नबी आजाद बनाएंगे अपनी पार्टी?
पहले मीर के खिलाफ आजाद के नजदीकी माने जाने वाले नेताओं का विद्रोह और अब आजाद का पार्टी पर हमला पार्टी के लिए हानिकारक हो सकता है. इस बात की सम्भावना बनती जा रही है कि आजाद चुनाव आते-आते अपनी स्वयं की पार्टी का गठन कर लें और अमरिंदर सिंह की ही तरह भारतीय जनता पार्टी से चुनावी समझौता कर लें. आजाद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी काफी करीबी माने जाते हैं. जिस भावुकता के साथ राज्यसभा में मोदी ने नम आंखों से आजाद को बिदाई दी, आजाद के नेतृत्व की तारीफ की, उस समय से ही कयास लगने लगा था कि या तो आजाद बीजेपी में शामिल होंगे और फिर अपनी पार्टी बना कर बीजेपी के सहयोगी बन जाएंगे.
और जिस तरह कृषि कानून वापस लिए जाने का सेहरा पंजाब में अमरिंदर सिंह के सिर पर बांधा जा रहा है, ठीक उसी तरह जम्मू कश्मीर को चुनाव के ठीक पहले पूर्ण राज्य का दर्ज़ा दिया जा सकता है जिसका सेहरा आजाद के सिर बंधेगा. जम्मू और कश्मीर में बीजेपी जम्मू क्षेत्र में मजबूत और कश्मीर में कमजोर है. आजाद के साथ गठबंधन बीजेपी और आजाद दोनों को मजबूती देगा. यह भी मान कर चलिए कि कांग्रेस पार्टी आजाद को मनाने की कोशिश नहीं करेगी क्योंकि कांग्रेस पार्टी से कहीं बड़ा राहुल गांधी का ईगो जो है.
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