सम्पादकीय

क्या किसान नेता राकेश टिकैत का मन बदलने वाला है? यूपी चुनावों में किस दल को कर सकते हैं सपोर्ट?

Rani Sahu
2 Jan 2022 8:44 AM GMT
क्या किसान नेता राकेश टिकैत का मन बदलने वाला है? यूपी चुनावों में किस दल को कर सकते हैं सपोर्ट?
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पंजाब (Punjab) के बदलते सियासी समीकरण ने अब उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में भी असर दिखाना शुरू कर दिया है

संयम श्रीवास्तव पंजाब (Punjab) के बदलते सियासी समीकरण ने अब उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में भी असर दिखाना शुरू कर दिया है. दरअसल जब से पंजाब के किसान नेताओं ने विधानसभा चुनाव (Assembly Election) में कूदने की ठानी है, तब से उत्तर प्रदेश के किसान नेताओं को भी राजनीतिक पार्टियों से ऑफर आने लगे हैं. हालांकि उत्तर प्रदेश के किसान नेताओं का एक ही प्रमुख चेहरा है, वो हैं भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष राकेश टिकैत (Rakesh Tikait). माना जा रहा है कि राकेश टिकैत भी 2022 के विधानसभा चुनाव में हिस्सा लेंगे और एसपी या फिर बीजेपी का सिरमौर बनेंगे.

उसके कई कारण हैं. आपको याद होगा जब लखीमपुर का कांड हुआ था तो उस वक्त भी मौके पर पहुंच कर राकेश टिकैत ने कैसे मामले को संभाल लिया था और उसे ज्यादा बढ़ने नहीं दिया था. जबकि उस मामले को विपक्षी पार्टियों ने खूब भुनाने की कोशिश की. अगर उस वक्त टिकैत भी बीजेपी को घेरने के मूड में होते तो फिर विधानसभा चुनाव में उसके लिए मुसीबत खड़ी हो जाती. इसके साथ ही खबर है कि योगी सरकार ने हाल ही में राकेश टिकैत को पुलिस सुरक्षा भी मुहैया कराई है. सबसे बड़ी बात कि जिस चीज को लेकर राकेश टिकैत बीजेपी का विरोध कर रहे थे, यानि तीन नए कृषि कानून उन्हें भी भारतीय जनता पार्टी ने वापस ले लिया है. और अब राकेश टिकैत की सारी शिकायतें बीजेपी से दूर होती नजर आ रही हैं. पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी बीजेपी ने इसी दांव के सहारे साधा है.
टिकैत की आगे की रणनीति पर सबकी नज़र
राकेश टिकैत विधानसभा चुनाव को लेकर अपने आगे की रणनीति पर साफ कह चुके हैं कि वह आचार संहिता लागू होने के बाद ही अपने पत्ते खोलेंगे. दरअसल इस वक्त यूपी में राकेश टिकैत के पास समाजवादी पार्टी और बीजेपी दोनों पार्टियों का विकल्प है. हालांकि जिस पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राकेश टिकैत का प्रभाव है, वहां समाजवादी पार्टी ने आरएलडी से गठबंधन कर लिया है. और राकेश टिकैत से जब एक बार पूछा गया था कि क्या वह अखिलेश यादव के साथ 2022 के विधानसभा में जा सकते हैं, तो उन्होंने साफ कहा था कि वह कहीं नहीं जा रहे हैं. लेकिन अगर बीजेपी के साथ राकेश टिकैत आते हैं तो इससे टिकैत और बीजेपी दोनों को फायदा होगा.
क्योंकि पश्चिमी यूपी में जहां आरएलडी से मुकाबला करने के लिए बीजेपी के पास जाट और किसान नेता राकेश टिकैत होंगे, वहीं बीजेपी भी राकेश टिकैत को वही अहमियत देगी जो एसपी आरएलडी को इस वक्त दे रही है. लेकिन एक बात यहां मैं साफ कर दूं की राकेश टिकैत ने चुनाव लड़ने को लेकर साफ कहा है कि वह या उनके परिवार का कोई भी सदस्य चुनवा नहीं लड़ेगा. हालांकि वह किसी पार्टी को भारतीय किसान यूनियन की ओर से समर्थन भी नहीं देंगे इस पर टिकैत ने कुछ भी साफ नहीं किया है.
पश्चिमी यूपी में जाट वोट बैंक पर होगा असर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 71 विधानसभा सीटें आती हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को यहां से 51 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. इस भारी जीत की सबसे बड़ी वजह जाट वोटबैंक था. लेकिन इस बार किसान आंदोलन के चलते और आरएलडी+एसपी गठबंधन के चलते पश्चिमी यूपी में जाट+मुस्लिम वोटबैंक का समीकरण एक हो रहा है, जो बीजेपी के लिए किसी भी तरह से फायदेमंद नहीं है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों की आबादी लगभग 17 फीसदी है, बीजेपी इसी को अपने पाले में फिर से लाना चाहती है. राकेश टिकैत इसी समुदाय से आते हैं और किसान आंदोलन का चेहरा होने के नाते उनका कद जाटों में और बढ़ गया है. इसलिए अगर राकेश टिकैत 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी का समर्थन करते हैं तो इससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी का ग्राफ फिर से ऊपर चला जाएगा. दूसरी बात यह है कि राकेश टिकैत कभी नहीं चाहेंगे जाटों का नेतृत्व जयंत के हाथों में चला जाए. इसके पीछे कई स्थानीय कारण हैं.
राजनीति में हमेशा फेल रहे हैं राकेश टिकैत
राकेश टिकैत ने विधानसभा चुनाव ना लड़ने की बात ऐसे ही नहीं की है. दरअसल साल 2007 में उन्होंने पहली बार यूपी विधानसभा का चुनाव लड़ा था. राकेश टिकैत ने मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था. लेकिन उन्हें जीत नहीं मिली. इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में टिकैत ने फिर से राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर अमरोहा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और यहां भी उन्हे हार मिली. हालांकि अब किसान आंदोलन की वजह से राकेश टिकैत देश में एक बड़ा नाम बन चुके हैं. उन्हें किसानों का एक बड़ा चेहरा माना जाने लगा है, जैसा कभी उनके पिता महेंद्र टिकैत को माना जाता था. इसलिए राकेश टिकैत सीधे चुनावी दंगल में कूदने से बच रहे हैं ताकि उनकी यह छवि धूमिल ना हो.
अगर किसी दल के साथ नहीं जाते हैं तो भी बीजेपी को ही फायदा
राकेश टिकैत अगर किसी भी दल के साथ नहीं जाने की बात बार-बार मीडिया से करते रहे हैं. हो सकता है कि चुनावी आचार संहिता लागू होने के बाद भी वो किसी दल के साथ जाने का मन न बना पाएं. अगर ऐसा होता है तो भी बीजेपी को बहुत सुकून मिलने वाला है. क्योंकि पश्चिमी यूपी में समाजवादी पार्टी और आरएलडी का गठजोड़ पहले ही बीजेपी नेताओं को परेशान किए हुए है. अगर राकेश टिकैत भी इस गठबंधन को सपोर्ट कर देते हैं तो पक्का बीजेपी का डैमेज होना तय हो जाएगा. राकेश टिकैत का किसी को न सपोर्ट करना बीजेपी के सपोर्ट के बराबर ही हो जाएगा. मेरठ पिछले 4 दशकों से पत्रकारिता कर रहे प्रेमदेव शर्मा कहते हैं कि राकेश टिकैत अगर आगामी विधानसभा चुनावों में साइलेंट रहते हैं तो किसानों का एक बहुत बड़ा तबका बीजेपी को वोट कर सकता है. दरअसल पश्चिमी यूपी में बड़े पैमाने पर हो रहे कंस्ट्रक्शन वर्क जैसे हाईस्पीड रेल नेटवर्क, सुपर हाईवे आदि को देखकर लोगों को लगता है आजादी के बाद पहली बार इतनी द्रुत गति से विकास कार्य हो रहा है. ये रुकना नहीं चाहिए.
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