- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- क्या मध्यप्रदेश में...
x
मध्यप्रदेश में पिछले कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है कि सरकार और नौकरशाही के बीच तलवारें खिंची हुई हैं
गिरीश उपाध्याय। मध्यप्रदेश में पिछले कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है कि सरकार और नौकरशाही के बीच तलवारें खिंची हुई हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि नौकरशाही की तलवार बहुत बारीकी और बिना आवाज के चल रही हैं, जबकि सरकार की तलवार मार भले ही न कर रही हो, पर आवाज बहुत कर रही है. राजनीतिक उठापटक तो राज्य में पिछले यानी 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही चल रही है, लेकिन अब राजनीति और नौकरशाही के बीच उठापटक का नया दौर शुरू हो गया है.
आमतौर पर मजबूत सरकारों और सरकारों के मजबूत नेतृत्व को अपनी नौकरशाही को धमकाने या चमकाने की जरूरत नहीं होती. अब तक यही माना जाता रहा है कि नौकरशाही एक घोड़ा है, जिस पर राजनीतिक नेतृत्व सवारी करता है. और जाहिर है जो सवारी करता है लगाम भी उसी के हाथ में होती है. लेकिन, यदि घोड़ा बेलगाम हो जाए तो सवार को मुश्किल में डाल देता है. ऐसे बिगड़ैल घोड़े बातों से नहीं मानते, उन्हें चाबुक की जरूरत होती है.
सत्ता संचालन में ऐसे चाबुक बहुत चुपचाप चलाए जाते हैं, जो मार तो करते हैं पर दिखते नहीं. मगर मध्यप्रदेश में चाहे सत्ता हो या संगठन, इन बिगड़े घोड़ों को बिगड़े बोलों से काबू में करने का जतन कर रहे हैं.
सीएम की चेतावनी और नौकरशाही
सबसे पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ही लें. प्रदेश में हुए अप्रत्याशित राजनीतिक परिवर्तन के बाद जब से वे चौथी बार मुख्यमंत्री बने हैं, नौकरशाही के प्रति उनका सार्वजनिक रवैया तल्खी वाला ही रहा है. कई लोग इस बात को शिवराज की राजनीतिक शैली में परिवर्तन के रूप में भी देख रहे हैं. लेकिन, यह परिवर्तन हकीकत में उतना असरकारी नजर नहीं आ रहा, जितना वह मंचीय भाषणों में आग उगलता नजर आता है.
शिवराज सिंह ने अपने पिछले कई कार्यक्रमों में लापरवाह और अकर्मण्य नौकरशाही को सार्वजनिक रूप से लटका देने, देख लेने की बात कही है. वे अफसरों को सार्वजनिक मंचों से कई बार यह चेतावनी दे चुके हैं- 'मैं ऐसे लोगों को छोड़ूंगा नहीं…' चाहे मंचीय भाषण हों या फिर मंत्रालय में होने वाली विभागों की बैठकें या फिर कलेक्टर, कमिश्नर कांफ्रेंस, शिवराज के ये तेवर हर जगह नजर आ रहे हैं. लेकिन आश्चर्य की बात है कि इसके बावजूद नौकरशाही की बिगड़ैल चाल में कोई अंतर दिखाई नहीं दे रहा.
पिछले दिनों भोपाल के एक कार्यक्रम में तो मुख्यमंत्री के एक बयान ने सभी को चौंका दिया. राजधानी में 22 सितंबर को वाणिज्य उत्सव 2021 के तहत आयोजित 'मध्यप्रदेश इंडियाज इमर्जिंग एक्सपोर्ट टाइगर कॉन्क्लेव' में शिवराज ने कहा कि 'मंत्रालय में कुर्सी पर बैठो तो ऐसी रंगीन पिक्चर पेश होती है कि महाराज की जय हो. चारों तरफ आनंद की वर्षा हो रही है. लेकिन, जब जनता के बीच जाते हैं, तो पता चलता है कि वह कथित आनंद कितना, कहां पहुंच रहा है.'
सरकार की सख्ती का नौकरशाही पर असर
यह बयान साफ बताता है कि प्रदेश की नौकरशाही उच्च राजनीतिक नेतृत्व को किस हद तक गुमराह कर रही है. सूखे में हरियाली दिखाने का नौकरशाही का यह उपक्रम सरकार को राजनीतिक रूप से कितना भारी पड़ सकता है, यह शिवराज अच्छी तरह जानते हैं और शायद इसीलिये उनका गुस्सा और उनकी विवशता आए दिन रह रहकर सार्वजनिक रूप से प्रकट हो रही है. ऐसा नहीं है कि शिवराज ने सिर्फ कहा भर हो… उन्होंने कई मामलों में सख्त कार्रवाई की भी है, लेकिन ऐसा लग रहा है कि उन तमाम कार्रवाइयों का नौकरशाही पर कोई खास असर नहीं हुआ है.
शिवराज का गुस्सा सिर्फ नौकरशाही की अक्षमता और भ्रष्टाचार पर ही नहीं निकल रहा, सरकारी योजनाओं पर अमल ठीक से हो, इसके लिए भी वे अफसरों को अलग ही अंदाज में फटकार रहे है. गत जनवरी में भोपाल में बन रहे ग्लोबल स्किल पार्क के निरीक्षण के दौरान उन्होंने अफसरों को चेतावनी भरे लहजे में कहा था- 'दो साल में काम पूरा हो जाए और गुणवत्ता में कोई कमी न हो. जैसा प्रेजेंटेशन मैंने देखा है, प्रोजेक्ट भी वैसा ही बने, जरा भी गड़बड़ हुई तो टांग दूंगा, बिलकुल साफ कह रहा हूं. मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट है सारा काम ठीक से होना चाहिए.'
नौकरशाही पर प्रदेश भाजपा के बड़े नेताओं का गुस्सा सिर्फ शिवराज के जरिये ही नहीं निकल रहा. प्रदेश के कई मंत्री और अन्य नेता भी सार्वजनिक कार्यक्रमों में मंच से इस तरह के गुस्से और क्षोभ का इजहार कर रहे हैं. गत जनवरी माह में ही गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने अपने गृह जिले दतिया के बड़ौनी में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान एक तहसीलदार को मंच से सस्पेंड करने का ऐलान कर दिया था. मंत्री को राशन की पात्रता पर्ची वितरण में गड़बड़ी की शिकायत मिली थी. नरोत्तम मिश्रा ने मंच पर बैठे-बैठे ही तीन बार तहसीलदार को पुकारा, तहसीलदार हाजिर नहीं हुए तो उन्होंने तहसीलदार को सस्पेंड करने की घोषण कर दी.
राजनीति और नौकरशाही के रिश्ते कितने तल्ख
प्रदेश में राजनीति और नौकरशाही के रिश्ते कितने तल्ख हो चले हैं इसका एक और उदाहरण प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी की फायरब्रांड नेता मानी जाने वाली उमा भारती का है. उमा भारती ने इसी माह मीडिया से बात करते हुए कह डाला था कि- 'नौकरशाही क्या है, वो तो हमारी चप्पलें उठाती है…' उमा के इस बयान पर बहुत बवाल हुआ था और बाद में उन्हें अपनी 'असंयत' भाषा के लिए माफी मांगनी पड़ी थी.
ऐसा ही एक प्रसंग शनिवार को छतरपुर जिले में हुआ. वहां एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान कुछ दिव्यांग बच्चों ने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा से शिकायत की थी कि जब भी वे अपनी समस्याओं को लेकर अफसरों के पास जाते हैं तो अफसर अपने दफ्तर में नहीं मिलते. इस शिकायत से गुस्साए शर्मा ने मंच से ही अफसरों को चेतावनी दी कि 'या तो वे अपना रवैया बदल लें, समय पर दफ्तर आएं और दफ्तर में बैठें, वरना नौकरी छोड़ दें. अधिकारी इतने बेलगाम नहीं हो सकते, हम ऐसे अफसरों को बर्दाश्त नहीं करेंगे, चाहे कितना भी बड़ा अफसर हो, उसको नहीं छोड़ेंगे.'
नौकरशाही से जुड़ा एक और मुद्दा भ्रष्टाचार का है. कुछ समय से प्रदेश के अलग अलग अंचलों से लगातार भ्रष्ट अफसरों के रिश्वत लेते हुए पकड़े जाने की खबरें आ रही हैं. अखबारों की सुर्खियां बन रही ये खबरें सरकार के लिए बदनामी का सबब बन रही हैं. विपक्ष को भी इनके जरिये सरकार को घेरने का मौका मिल रहा है. सरकार की दिक्कत ये है कि एक तरफ तो नौकरशाही से जनता को ठीक रिस्पांस नहीं मिल रहा और दूसरी तरफ रिश्वत और भ्रष्टाचार की खबरें लगातार बढ़ रही हैं. ये स्थितियां जनता के बीच यह भाव पैदा कर रही हैं कि प्रदेश की नौकरशाही सरकार के हाथ से फिसल रही है या फिर सरकार के नियंत्रण से बाहर हो गई है.
जब सीएम ने मंच से सस्पेंड किए अधिकारी
ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री और सरकार के अन्य मंत्रियों या फिर संगठन को इस बात का अहसास न हो. अफसरशाही को लगातार चेतावनियां दी जा रही हैं. इसी महीने मुख्यमंत्री ने अपने दो सार्वजनिक कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री आवास आवंटन में गड़बड़ी और भ्रष्टाचार की शिकायत मिलने पर मंच से ही सीएमओ, इंजीनियर और तहसीलदार को सस्पेंड करने का ऐलान कर दिया था.
इतना ही नहीं 20 सितंबर को हुई कलेक्टर-कमिश्नर और आईजी-एसपी कॉन्फ्रेंस में भी उन्होंने कहा था कि- 'मुझे पता लगा है कि प्रधानमंत्री आवास योजना में अधिकारियों ने लोगों से पैसे ले लिए. मैं ऐसे लोगों को नहीं छोडूंगा. घटिया और गुणवत्ताहीन काम किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं होंगे. मैं औचक निरीक्षण करूंगा. गड़बड़ी मिली तो बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. भ्रष्टाचार के मामले में हमारी नीति जीरो टालरेंस की है.'
जाहिर है सरकार और भाजपा का संगठन नौकरशाही के रवैये के राजनीतिक परिणाम को लेकर चिंतित है. पर बड़ा सवाल ये है कि इस तरह सार्वजनिक रूप से अफसरशाही को गरियाने से क्या व्यवस्था सुधर जाएगी, क्या उससे सुशासन के वांछित परिणाम और राजनीतिक लाभ पाए जा सकेंगे? क्योंकि नौकरशाही ऐसा घोड़ा है जो लगाम ढीली करने पर सवार को अनसुना कर देता है और लगाम कसने पर बिदकने लगता है. ऐसे बिगड़ैल घोड़े को साधना सरकार के लिए आसान नहीं होगा.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
Next Story