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पांच राज्यों में होने वाला विधानसभा चुनाव कई छोटे और बड़े दलों के लिए भविष्य की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण साबित होने वाला है
अजय झा.
पांच राज्यों में होने वाला विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) कई छोटे और बड़े दलों के लिए भविष्य की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण साबित होने वाला है. दो बड़े दल हैं भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी. वहीं दो छोटे दल हैं आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) और तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress). पंजाब के सिवा बाकी चारों राज्यों में वर्तमान में बीजेपी की सरकार है. इस दृष्टि से बीजेपी के लिए आगामी चुनावी दौर अहम है, क्योंकि साल के आखिरी महीनों में दो और बीजेपी शासित राज्य हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव होने वाला है. पांच राज्यों में परिणाम का असर इन दो राज्यों, खास कर हिमाचल प्रदेश में सीधा पड़ सकता है.
सही शब्दों में 2017 में हुए चुनाव में बीजेपी की जीत इन पांच राज्यों में से सिर्फ उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में ही हुई थी. गोवा और मणिपुर में खंडित जनादेश, जिसमें कांग्रेस पार्टी बीजेपी से आगे थी, होने के बावजूद बीजेपी बेहतर राजनीतिक प्रबंधन और चतुर नीति का परिचय देते हुए सरकार बनाने में सफल रही थी. देखना होगा कि इस जोड़-तोड़ की नीति से बनी सरकार से दोनों राज्यों की जनता खुश थी.
कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना होगा
पिछले कुछ वर्षों में बीजेपी की नीति में एक अमुलभूत परिवर्तन आया है. जहां पूर्व में स्पष्ट जनादेश नहीं मिलने की स्थिति में बीजेपी विपक्ष में रहना पसंद करती थी और विरोधियों को मिलीजुली सरकार बनाने का अवसर दे कर अगले चुनाव की तैयारी में जुट जाती थी, और उसे इसका फल भी मिलता था. अब बीजेपी किसी भी स्थिति में सरकार बनाने में उत्सुक्त रहती है. गोवा और मणिपुर के अलावा इस सूची में कर्णाटक और मध्य प्रदेश का नाम भी शामिल है, जहां बीजेपी ने विपक्ष की सरकार गिरा कर लेकिन दल बदल कानून के दायरे में रह कर सरकार बनाई थी. कर्णाटक और मध्य प्रदेश उन नौ राज्यों में शामिल हैं जहां 2023 में विधानसभा चुनाव होगा. अगर बीजेपी गोवा और मणिपुर में सरकार बनाने में असफल रही तो 2017 में जनादेश उसके पक्ष में नहीं होना उसकी ढाल नहीं बन सकती है. इस परिस्थिति में बीजेपी की छवि को इससे ठेस पहुंच सकती है. वैसे अभी तक तो ऐसा ही लगता है कि बीजेपी एक बार फिर से गोवा और मणिपुर में सरकार बनाने में सफल रहेगी.
वहीं कांग्रेस पार्टी की चुनौती अलग है. पिछले पांच वर्षों में कांग्रेस पार्टी और भी कमजोर होती चली गयी. ना सिर्फ गोवा और मणिपुर में सरकार बनाने का सुनहरा अवसर हाथ से जाता रहा, बल्कि मध्य प्रदेश में आतंरिक कलह को रोकने में असफलता का परिणाम रहा बीजेपी की सत्ता में वापसी. कांग्रेस पार्टी की सरकार अब तीन प्रदेशों में सिमट कर रह गयी है, जिसमे से पंजाब एक है. अगर पंजाब में सत्ता हाथ से निकल गई तो कांग्रेस पार्टी और खास कर गांधी परिवार को इससे काफी बड़ा झटका लग सकता है. कांग्रेस के लिए बेहद जरूरी है कि ना सिर्फ वह पंजाब में चुनाव जीते बल्कि कम से कम किसी एक अन्य राज्य में बीजेपी को पछाड़ते हुए सत्ता में वापसी करे. अगर ऐसा नहीं हुआ तो कांग्रेस पार्टी की और दुर्गति हो सकती है और गांधी परिवार के नेतृत्व के विरोध में माहौल गर्म हो सकता है.
टीएमसी और आप में कांग्रेस की जगह लेने का मुकाबला शुरू है
अब नज़र डालते हैं दो छोटी पार्टियों पर जिनके इरादे काफी बड़े हैं. कांग्रेस पार्टी की लोकप्रियता में लगातार हो रही गिरावट के कारण केंद्र की राजनीति में एक सशक्त विपक्षी दल के लिए जगह बनती जा रही है. वामदलों का हाल इनदिनों कांग्रेस से भी बुरा है. कोई ऐसा राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दल नहीं है जो कांग्रेस की जगह ले सके. उस रिक्त स्थान की पूर्ति में आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस में एक रेस शुरू हो गई है, ताकि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव तक वह सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बन जाए और अगर 2024 में नहीं तो 2029 में वह केंद्र में सरकार बनाने में सफल हो सके.
आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के काफी समानता है. दोनों दल व्यक्ति विशेष के इर्दगिर्द घूमते हैं और दोनों दलों के सर्वोच्च नेता मुख्यमंत्री भी हैं. अरविंद केजरीवाल दिल्ली के और ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की. ममता बनर्जी पिछले साल लगातार तीसरी बार भारी बहुमत से सरकार बनाने में सफल रहीं, वहीं 2012 में आम आदमी पार्टी के गठन के बाद केजरीवाल ने मुड़ कर वापस नहीं देखा है. 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में पहले प्रयास में ही सबसे बड़ी पार्टी बनना और फिर 2015 और 2020 के चुनावों में एक तरफा जीत, 2017 में पंजाब में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन जाना, अपने आप में काफी सराहनीय है. दो और समानता है केजरीवाल और ममता बनर्जी में – दोनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के धुर विरोधी हैं और दोनों की महत्वाकांक्षा है देश का प्रधानमंत्री बनने की है. एक और बात, दोनों नेताओं ने अपने प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को शून्य पर ला कर खड़ा कर दिया. इस दृष्टि से पांच राज्यों में होने वाला चुनाव केजरीवाल और ममता बनर्जी और उनके दलों के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.
आप तेजी से आगे बढ़ रही है
भले ममता बनर्जी सुर्खियों में ज्यादा रहती हों पर तृणमूल कांग्रेस की तुलना में आम आदमी पार्टी आगे बढ़ती दिख रही है. तृणमूल कांग्रेस को दूसरे राज्यों में अपने आप को साबित करना है. पश्चिम बंगाल से बाहर निकल कर तृणमूल कांग्रेस त्रिपुरा और गोवा में पैर ज़माने की कोशिश कर रही है, जबकि आम आदमी पार्टी पंजाब में स्थापित हो चुकी है. अगर चुनाव पूर्व सर्वेक्षण को देखें तो आम आदमी पार्टी पंजाब में सरकार बनाने की कगार तक पहुंच चुकी है. यही नहीं, इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर गोवा में आम आदमी पार्टी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर सामने आए. उत्तराखंड में भी आम आदमी पार्टी का इस बार खाता खुल सकता है, हालांकि उत्तर प्रदेश में आम आदमी पार्टी को आशातीत सफलता शायद ना मिले.
इसमें ताज्जुब नहीं होना चाहिए अगर अगले वर्ष के अंत में गुजरात विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन जाए. पिछले वर्ष गुजरात में हुए नगर निगम चुनावों में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन शानदार रहा था और वह कांग्रेस पार्टी से कोसों आगे निकल गयी थी. हाल ही में हुए चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में तो आम आदमी पार्टी सबसे अधिक सीट जीतने में सफल रही थी. यह अलग बात है कि कम सीट होने के बावजूद चंडीगढ़ में बीजेपी का मेयर चुना गया जो बीजेपी के राजनीतिक प्रबंध और चतुरता का प्रमाण है.
अगर यह संकेत है तो यह माना जा सकता है कि ममता बनर्जी की तुलना में अरविंद केजरीवाल आगे निकलने लगे हैं. इस सम्भावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस पार्टी के बीच इस बात पर बढ़ते तकरार पर कि संयुक्त विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद चेहरा राहुल गांधी का होगा या ममता बनर्जी का, अरविंद केजरीवाल सर्वसम्मत प्रधानमंत्री पद दावेदार के रूप में सामने आ जाए. बहुत कुछ यह इस पर निर्भर होगा कि क्या पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बन पाएगी और अन्य राज्यों के मतदाता उसे कितना पसंद करेंगे.
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