सम्पादकीय

दिया मिर्जा को ट्रोल करने वाले इस समाज के मर्दवादी पूर्वाग्रहों का पब्लिक पोस्‍टर हैं

Gulabi
5 April 2021 3:50 PM GMT
दिया मिर्जा को ट्रोल करने वाले इस समाज के मर्दवादी पूर्वाग्रहों का पब्लिक पोस्‍टर हैं
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2003 में इटैलियन डायरेक्‍टर मार्को तूलियो जोरदाना ने एक छह घंटे लंबी फिल्‍म बनाई

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मनीषा पांडेय। 2003 में इटैलियन डायरेक्‍टर मार्को तूलियो जोरदाना ने एक छह घंटे लंबी फिल्‍म बनाई- 'द बेस्‍ट ऑफ यूथ.' इस फिल्‍म का एक सीक्‍वेंस है, जिसमें फिल्‍म के दो प्रमुख किरदार निकोला और जूलिया पैरेंट्स बनने वाले हैं. जूलिया प्रेग्‍नेंट है. 1966 का समय है. दोनों लिबरल एक्टिविस्‍ट हैं और उन्‍होंने शादी नहीं की है. जब निकोला के मां-बाप बच्‍चे के जन्‍म के बाद अपनी पोती से मिलने आते हैं तो निकोला की मां अपने पति से कहती है, "बिना शादी बच्‍चा पैदा करने के बारे में कुछ मत कहना. अब कोई इन बातों पर ध्‍यान नहीं देता. वक्‍त बदल गया है."

ये 1966 का इटली है.
एक और 2018 की फ्रेंच सीरीज है नेटफ्लिक्‍स पर- 'द हूकअप प्‍लान.' तीन न्‍यूज एज औरतों की कहानी. उनमें से एक प्रेग्‍नेंट है और अपने बॉयफ्रेंड के साथ रहती है. ऐन डिलिवरी से पहले जब उसका बॉयफ्रेंड वेडिंग रिंग देकर लड़की से पूछता है कि क्‍या वो उससे शादी करेगी तो लड़की पलटकर उसे ऐसे देखती है, मानो वो अचानक फ्रेंच बोलते-बोलते हिब्रू में बात करने लगा हो. एकदम आश्‍चर्य से आंखें फाड़कर और फिर कहती है, "पता नहीं, अभी मैंने इस बारे में कुछ सोचा नहीं."

हमारे लिए इससे ज्‍यादा कल्‍चरल शॉक कुछ हो नहीं सकता. बिना शादी साथ रहना और बच्‍चा पैदा कर लेना भी ठीक है, लेकिन बच्‍चा पैदा करने के बाद भी शादी करने से इनकार कर देना तो अलग से लेवल की बात है. मैं भी ये देखते हुए आश्‍चर्य से मुंह फाड़े इस बात को पचाने की कोशिश ही करती रही.

ये दोनों तो यूरोप की कहानियां हैं. एक और कहानी है, थोड़ा पिछड़े, थोड़ा कम अमीर, थोड़ा कम आधुनिक देश मैक्सिको की. 2006 में आई एलजांद्रो गोन्‍जालिज एनिआइतु की फिल्‍म 'बेबेल' में रिसर्च और सूसन के घर में एक महिला काम करती है एमीलिया. एमीलिया मैक्सिको की रहने वाली है. जब वह अपनी बेटी की शादी में मैक्सिको जाती है तो फिल्‍म देखते हुए मैं ये देखकर हैरान रह गई कि सफेद रंग के खूबसूरत वेडिंग गाउन और फूलों में सजी वो लड़की सात महीने प्रेग्‍नेंट है. उसकी शादी में पूरा परिवार और कुनबा शामिल है. कई साल बाद फेसबुक से दोस्‍त बनी एक एक मैक्सिकन लड़की ऐंड्रियाना नॉर्टन ने भी जब अपनी शादी की तस्‍वीरें साझा की तो मैंने पाया कि उसके वेडिंग गाउन में से फूला हुआ पेट दिखाई दे रहा था. शादी के तीन महीने बाद वह खूबसूरत जुड़वा बच्‍चों की मां बनी. उसकी शादी भी पूरे बाजे-गाजे के साथ, परिवार और दोस्‍तों के बीच हुई थी
ये बात सिर्फ इटली, फ्रांस या मैक्सिको की नहीं है. पश्चिमी दुनिया की अनेक संस्‍कृतियों में अनब्‍याही मां होना कोई टैबू नहीं है. बच्‍चा पैदा करने और शादी करने का कोई डायरेक्‍ट कनेक्‍शन भी नहीं है. बहुत सारे लोग साथ रहते हैं, उनके बच्‍चे भी होते हैं और जरूरी नहीं कि वो शादीशुदा हों ही. शादी वो परिवार बनाने के बहुत साल बाद भी कर सकते हैं या कभी नहीं कर सकते. कुल मिलाकर बात ये है कि समाज का इस चीजों को लेकर कोई रूढ़ नियम नहीं है. उस समाज में कोई बच्‍चा अवैध नहीं है. हर बच्‍चा देश का नागरिक है, हर बच्‍चा राज्‍य की जिम्‍मेदारी है. चाइल्‍ड केयर लीव से लेकर आर्थिक मदद तक हर स्‍त्री को बराबर मिलती है. पति हो, चाहे न हो.

दुनिया की इन तमाम संस्‍कृतियों को जानने, समझने और करीब से देखने के बाद जब हम दिया मिर्जा को सोशल मीडिया पर इसलिए ट्रोल होते देखते हैं क्‍योंकि उन्‍होंने शादी के महज डेढ़ महीने बाद बेबी बंप के साथ सोशल मीडिया पर अपनी तस्‍वीर पोस्‍ट की तो ऐसा लगता है मानो हमारे विकास की सूई समय में कहीं फ्रीज हो गई है और हमने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया है.

इंटरनेट के नागरिक दिया मिर्जा की उस तस्‍वीर पर सिर्फ सवाल ही नहीं कर रहे, वो अपनी तरफ से फैसला भी सुना रहे हैं, उनका मजाक भी उड़ा रहे हैं. बता रहे हैं कि कैसे वो भारतीय संस्‍कृति और भारतीय स्‍त्री, दोनों के नाम पर कलंक है. वो शादी से पहले ही प्रेग्‍नेंट हो गई थी, मानो ये कोई गंभीर अपराध हो.

ये कहा जा सकता है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया पर लिखी जा रही बातों को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं. ट्रोल करना और ट्रोल होना ही इंटरनेट का चरित्र है. ये बात कुछ हद तक सही होते हुए भी हम इस सच से इनकार नहीं कर सकते कि सोशल मीडिया पर जो हो रहा है, वो भी हिंदी पब्लिक स्‍फीयर की डिबेट और डिस्‍कोर्स का ही हिस्‍सा है.

इंटरनेट पर लोग जिस भाषा में और जिस तरह से बात कर रहे हैं, वो हमारे समाज का एक सामूहिक सांस्‍कृतिक चरित्र है. पहले जो बातें लोग अकेले में और अपने दोस्‍तों के समूह में किया करते थे, वही अब सोशल मीडिया पर हजारों लोगों के सामने सार्वजनिक तौर पर कर रहे हैं. यहां अपना चेहरा, नाम और पहचान छिपाने की सुविधा है.

सोशल मीडिया पर किसी फेक नाम और आईडी के खोल में बैठकर आप कुछ भी अनर्गल प्रलाप कर सकते हैं, किसी के बारे में कुछ भी कह सकते हैं. भले ऐसा करने से आपकी पहचान उजागर नहीं हो रही है, आपकी सार्वजनिक छवि को धक्‍का भी नहीं लग रहा, लेकिन फिर भी आपके ये विचार इस समाज के मर्दवादी पूर्वाग्रहों और विचारों का एक डीटेल्‍ड डेटाबेस तो हैं ही. विचार के पीछे कोई चेहरा नहीं है, लेकिन इसके पीछे पूरा एक समाज है. सोशल मीडिया और यहां के ट्रोल भारतीय समाज के पिछड़ेपन, उसकी जड़ों तक जमे बैठे मर्दवाद और रूढि़वाद का पब्लिक पोस्‍टर हैं.

दिया मिर्जा पर सोशल मीडिया की टिप्‍पणियां इस पब्लिक पोस्‍टर का एक छोटा सा उदाहरण भर है.
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