सम्पादकीय

गैर-जिम्मेदाराना राजनीति: दो आतंकियों की गिरफ्तारी पर अखिलेश यादव ने कहा- मुझे यूपी पुलिस पर भरोसा नहीं

Triveni
13 July 2021 7:31 AM GMT
गैर-जिम्मेदाराना राजनीति: दो आतंकियों की गिरफ्तारी पर अखिलेश यादव ने कहा- मुझे यूपी पुलिस पर भरोसा नहीं
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आतंकवाद निरोधक दस्ते की ओर से लखनऊ में अलकायदा के दो आतंकवादियों की गिरफ्तारी पर सपा नेता अखिलेश यादव ने यह कह कर आतंकियों की ही तरफदारी की कि उन्हें उत्तर प्रदेश पुलिस पर भरोसा नहीं।

भूपेंद्र सिंह| आतंकवाद निरोधक दस्ते की ओर से लखनऊ में अलकायदा के दो आतंकवादियों की गिरफ्तारी पर सपा नेता अखिलेश यादव ने यह कह कर आतंकियों की ही तरफदारी की कि उन्हें उत्तर प्रदेश पुलिस पर भरोसा नहीं। क्या वह यह कहना चाहते हैं कि उन्हें भरोसा उन पर है, जिन्हें आतंकी हमले की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया अथवा जो उन्हें बेगुनाह बता रहे हैं? क्या यह अजीब नहीं कि अखिलेश यादव दोबारा उत्तर प्रदेश की सत्ता में आना चाहते हैं, लेकिन उसकी पुलिस पर भरोसा नहीं करना चाहते। क्या मुख्यमंत्री बनने की सूरत में वह पुलिस को भंग कर देंगे? क्या पुलिस उसी समय तक भरोसेमंद थी, जब वह मुख्यमंत्री थे? क्या वह यह चाहते हैं कि पुलिस को आतंकियों को गिरफ्तार नहीं करना चाहिए या फिर उनसे पूछकर ही उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी? पता नहीं वह क्या चाहते हैं, लेकिन उनका बयान गैर जिम्मेदारी की पराकाष्ठा है। इस पर हैरत नहीं कि अखिलेश यादव की तरह से मायावती ने भी अलकायदा आतंकियों की गिरफ्तारी पर यह कहा कि चुनाव करीब आने पर पुलिस की इस तरह की कार्रवाई संदेह पैदा करती है। क्या चुनाव करीब हों तो पुलिस को आतंकियों की पकड़-धकड़ करने के बजाय हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाना चाहिए और चुनाव खत्म होने का इंतजार करना चाहिए?

माना कि उत्तर प्रदेश में चुनाव करीब आ रहे हैं, लेकिन ऐसी कल्पना करना कठिन है कि वोट बैंक की राजनीति के तहत नेता आतंकियों की पैरवी और पुलिस को हतोत्साहित करते दिखेंगे। क्या आतंकवाद से इस तरह लड़ा जाएगा? अखिलेश और मायावती के जैसे बयान सामने आए, उसके बाद मुस्लिम तुष्टीकरण की ताक में रहने वाले नेताओं की ओर से ऐसी प्रतिक्रिया आए तो हैरानी नहीं कि उनकी ओर से गिरफ्तार आतंकियों को कानूनी सहायता प्रदान की जाएगी। जो भी हो, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि हमारे देश में नेताओं का एक वर्ग ऐसा है, जो हर मसले पर सबसे पहले यह देखता है कि समुदाय विशेष के तुष्टीकरण में मदद मिलेगी या नहीं? इसी कारण उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से जनसंख्या नीति जारी होते ही इस तरह के बेतुके बयान सामने आ गए कि इसका मकसद मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाना है। आखिर इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचा गया? क्या यह जनसंख्या नीति केवल मुस्लिम समुदाय पर लागू होगी या फिर इस नीति के विरोधियों की ओर से यह मान लिया गया कि यही वह समुदाय है, जिसे परिवार नियोजन की कोई फिक्र नहीं? वास्तव में यही वह गैर जिम्मेदाराना और तुष्टीकरण की गंदी राजनीति है, जो तमाम गंभीर समस्याओं के समाधान में बाधा बनकर खड़ी होती है।


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