सम्पादकीय

विडंबना : केरल में हिंसा की राजनीति के पीछे कौन

Neha Dani
23 Dec 2021 1:58 AM GMT
विडंबना : केरल में हिंसा की राजनीति के पीछे कौन
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गंभीर मुद्दों को संवेदनशीलता से निपटाना चाहिए। देवताओं का अपना देश केरल संकट से जूझ रहा है।

केरल को 'देवताओं का अपना देश' कहा जाता है, लेकिन पश्चिम बंगाल उससे अलग है। हाल ही में यूनेस्को ने प. बंगाल की दुर्गा पूजा को अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक विरासत का दर्जा दिया है। लेकिन इन दोनों राज्यों में एक बात समान है, वह है राजनीतिक हत्या। इसका सबसे ज्यादा नुकसान आरएसएस को हुआ है, जो हिंदुत्व का प्रचार करता है। इसी तरह वामपंथ की जड़ें इन दोनों राज्यों में गहरी हैं।

एक दशक पहले तक, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के शासन में आने से पहले मार्क्सवाद चरम पर था। लेकिन अब वह राज्य में निचले स्तर पर है। लेकिन केरल और पश्चिम बंगाल, दोनों राज्यों में पिछले कुछ दशकों में हजारों आरएसएस कार्यकर्ता मारे गए। केरल में साक्षरता दर सौ फीसदी है। केरल और बंगाल के लोगों की संस्कृति से राजनीति जुड़ी हुई है। तीन दशक से केरल के लोग रोजी-रोटी के लिए खाड़ी के देशों में जाते रहे हैं।
दूसरी ओर स्वतंत्रता संघर्ष में बंगालियों की भागीदारी प्रशंसनीय रही है। पिछले कुछ दिनों में केरल में कई आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है। जवाबी कार्रवाई में एसडीपीआई (द सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया) कार्यकर्ताओं को भी दक्षिणपंथी समर्थकों द्वारा निशाना बनाया जाता रहा है। केरल की सरकार चुप बैठी हुई है। चाहे कानून-व्यवस्था का मामला हो, या बारिश का प्रकोप या पुनर्वास का प्रबंध-राज्य सरकार शासन करने में अक्षम साबित हुई है।
राज्य की तीन प्रमुख पार्टियां बंटी हुई हैं। माकपा दो या तीन खेमों में बंटी है। कांग्रेस की स्थिति बहुत बुरी है। भाजपा तो सर्कस की तरह है, जिसमें लोग आते-जाते रहते हैं। लेकिन कट्टर हिंदू आरएसएस से जुड़े हुए हैं। केरल भाजपा नेता रणजीत श्रीनिवासन की अलापुझा में हत्या हुई। उसके कुछ ही घंटे बाद एसडीपीआई के नेता की हत्या की खबर सामने आई। श्रीनिवासन ओबीसी मोर्चा के राज्य सचिव और भाजपा राज्य समिति के सदस्य थे।
हमलावरों ने उनके घर में घुसकर उनकी हत्या की। 40 वर्षीय श्रीनिवासन अलापुझा निर्वाचन क्षेत्र से 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार थे। वह पेशे से वकील थे। स्वाभाविक रूप से एक भाजपा कार्यकर्ता की हत्या पर लोगों में काफी रोष था। इस हत्या पर टिप्पणी करते हुए पड़ोसी राज्य तमिलनाडु के भाजपा के अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने कहा कि भाजपा ने पिछले 60 दिनों में तीन नेताओं को खो दिया है।
उन्होंने यह कहते हुए केरल के मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग की कि केरल सांविधानिक विघटन का सामना कर रहा है। उन्होंने कहा कि 'यह निंदनीय है। मैंने केरल में माकपा के अत्याचारों के खिलाफ लगातार आवाज उठाई है। केरल में पिछले कुछ वर्षों में 260 से ज्यादा लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई है। पिछले 60 दिनों में भाजपा ने तीन नेताओं को खोया है। आज दुस्साहस देखिए... एक राज्य स्तरीय नेता के घर में घुसकर उनकी हत्या कर दी।
केरल में भाजपा कार्यकर्ताओं का जीवन सुरक्षित नहीं है, मैं केरल के मुख्यमंत्री से इस्तीफा देने और इसे हत्या का मैदान न बनाने का अनुरोध करूंगा। नई पार्टी को सत्ता में आने दें और वहां के लोगों की रक्षा करें।' लेकिन सिर्फ भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या होती हो, ऐसा नहीं है। माकपा और एसडीपीआई कार्यकर्ता भी मारे जाते हैं। आखिर ऐसा प्रतिशोध क्यों? इसका उत्तर सरल है-केरल में जैसे को तैसा की राजनीति चल रही है।
केरल में एक दर्दनाक घटना में, एसडीपीआई के राज्य सचिव केएस शान की अलापुझा में अज्ञात हमलावरों ने हत्या कर दी। गौरतलब है कि एसडीपीआई नेता की हत्या मुख्यमंत्री विजयन के नेतृत्व वाले राज्य में भाजपा नेता रंजीत श्रीनिवासन सहित 10 घंटे के भीतर दो राजनीतिक हत्याओं के बाद सामने आई है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह संभवतः जनवरी में राज्य के दौरे पर आने वाले हैं। भाजपा कार्यकर्ता उनके साथ बैठक की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
वह भाजपा कार्यकर्ताओं को निर्देश देंगे। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी वरिष्ठ आरएसएस नेताओं की एक टीम को केरल में हुई हत्या का अध्ययन करने के लिए तैनात किया है और संभवतः वे इस मामले को केंद्र सरकार के समक्ष उठाएंगे। नेताओं के बीच ट्विटर युद्ध भी तनाव पैदा कर रहा है। एसडीपीआई प्रमुख एम. के. फैजी ने ट्वीट किया, 'यह राज्य में सांप्रदायिक हिंसा पैदा करने और सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने के लिए संघ परिवार के एजेंडे का हिस्सा है।
आरएसएस के आतंकवाद की निंदा करें। केरल पुलिस का उदासीन रवैया आरएसएस को बढ़ावा देता है।' वहीं हत्याओं की निंदा करते हुए केंद्रीय मंत्री वी. मुरलीधरन ने आरोप लगाया कि केरल में गुंडा राज व्याप्त था, जिसने राज्य को हत्या का मैदान बना दिया। किसी को इस बात पर आश्चर्य हो सकता है कि राजनीतिक हिंसा क्यों होनी चाहिए, जब आप हमेशा चुनाव लड़ और जीत सकते हैं तथा इस तरह अपने विरोधी पर वर्चस्व हासिल कर सकते हैं।
लेकिन केरल और प. बंगाल इसके अपवाद हैं। पश्चिम बंगाल में हिंसा की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए माकपा, कांग्रेस, तृणमूल और भाजपा-सभी समान रूप से दोषी हैं। केरल में मुख्यतः माकपा और आरएसएस के बीच हिंसा होती है। जिस राज्य में कहा जाता है कि आरएसएस की सबसे ज्यादा शाखाएं हैं, वहां इस तरह की हिंसा से पता चलता है कि वे अपनी विचारधारा की ताकत को लेकर सुनिश्चित नहीं हैं।
इसी तरह माकपा, जो यह दावा करती है कि मार्क्सवाद ज्ञान का अंतिम शब्द है, भी अपनी वैचारिक शक्ति को लेकर सुनिश्चित नहीं है। उन दोनों को अपनी हताशा को समझने की जरूरत है और दोनों को अपने अनुयायियों से यह पूछने की जरूरत है कि हिंसा के इस चक्र को क्यों नहीं खत्म किया जा सकता। केरल के लोग तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, लेकिन इस मामले में बंगाली अस्थिर होते हैं। दोनों राज्यों को समझौता करना होगा।
आधुनिक युग में ऐसी राजनीतिक हत्याओं पर रोक लगनी चाहिए। जब भाजपा के पास लोकसभा में अपार बहुमत है, तो वह एसडीपीआई, पीएफआई और अन्य चरमपंथी संगठनों पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगा सकती है? केरल और पश्चिम बंगाल में हत्याएं रुकनी चाहिए। बेगुनाहों की जान की कुर्बानी नहीं देनी चाहिए। गंभीर मुद्दों को संवेदनशीलता से निपटाना चाहिए। देवताओं का अपना देश केरल संकट से जूझ रहा है।


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