सम्पादकीय

Iran-Israel Tension: ईरान परमाणु समझौते पर अमेरिका से क्यों चिढ़ा है इजरायल?

Gulabi
27 May 2021 1:17 PM GMT
Iran-Israel Tension: ईरान परमाणु समझौते पर अमेरिका से क्यों चिढ़ा है इजरायल?
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Iran-Israel Tension

ओम तिवारी। इजरायल और हमास के बीच 11 दिनों तक चले खूनी संघर्ष पर विराम लगने के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन मध्य-पूर्व देशों में दो दिनों के दौरे पर थे. इस दौरान उनकी इजरायल, फिलिस्तीन और अरब मित्र देशों से शांति समझौते पर बात तो हुई. लेकिन कोई बात नहीं बनी. लिहाजा इस मिशन में इजरायल और फिलिस्तीन के बीच टकराव के मूल मुद्दों को हल करने का कोई रास्ता बनता तो नजर नहीं आया, लेकिन ईरान परमाणु समझौते का मसला जरूर उछल गया. खुद इजरायल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू ने ब्लिंकन के सामने इस डील पर कड़ी आपत्ति दर्ज कर दी.

'हमारी कई क्षेत्रीय मुद्दों पर बात हुई, लेकिन ईरान से बड़ा कोई और मसला नहीं है,' जेरूसलम में ब्लिंकन के साथ बातचीत के बाद नेतन्याहू ने कहा. आगे उन्होंने उम्मीद जताई कि अमेरिका ईरान के साथ परमाणु समझौते नहीं करेगा. नेतन्याहू ने कहा इजरायल को पूरा यकीन है कि इस डील से ईरान के लिए एटमी ताकत बनने का रास्ता साफ हो जाएगा और साथ में उसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता भी हासिल होगी.
गौर करने की बात यह है कि इजरायल का यह बयान ऐसे समय में आया है जब वियना में अमेरिका, ईरान और 2015 की न्यूक्लियर डील में शामिल देशों की बातचीत पांचवें और निर्णायक दौर में पहुंच चुकी है. बहुत संभावना है कि अमेरिका के साथ सभी दूसरे देश 6 साल पुराने इस समझौते से दोबारा जुड़ जाएं, क्योंकि यह डील अमेरिका राष्ट्रपति जो बाइडेन की प्राथमिकताओं में से एक है.
2015 में परमाणु समझौते की वजह से ओबामा और नेतन्याहू के रिश्ते बिगड़े
यही वो डील है जिसकी वजह से कभी अमेरिका और इजरायल के रिश्तों में खटास बढ़ गई थी. तब अमेरिका के राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा और नेतन्याहू के बीच संबंध बिगड़ गए थे. फिर 2018 में जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस डील से बाहर निकलने का ऐलान किया तो इजरायल इसकी बड़ी माना जा रहा था. क्योंकि खुद को इजरायल समर्थक बताकर ट्रंप अपने इरादों की भनक फरवरी 2016 में अपने प्रेसिडेंशियल कैंपेन के दौरान ही दे चुके थे.
अब इस डील पर नेतन्याहू के सार्वजनिक बयान के बाद माना जा रहा है कि अमेरिका और इजरायल के बीच सियासी खींचतान बढ़ सकती है. खास कर तब जब इजरायल के राजनीतिक हालात लगातार अस्थिर बने हैं और सरकार के अल्पमत में आने के बाद बेन्यामिन नेतन्याहू अपनी सियासी अस्तित्व बचाने में लगे हैं. हालांकि उन्हें उम्मीद है कि हमास के हमलों का करारा जवाब देकर उन्होंने अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत कर ली है. जिसका आने वाले चुनाव में उन्हें फायदा हो सकता है.
जानकारों का मानना है कि ईरान के मुद्दे पर कड़ा रुख अख्तियार कर नेतन्याहू अपनी सियासी स्थिति और सुदृढ़ करना चाहते हैं. इजरायल में अपने राजनैतिक विरोधियों से पहले इस मुद्दे पर मोर्चा तैयार कर वो अपने पक्ष में जनसमर्थन बना लेना चाहते हैं.
क्योंकि अमेरिकी दबाव की वजह से इजरायल और हमास के बीच संघर्ष विराम का ऐलान तो हो गया, लेकिन गाजा पट्टी से हमास के रॉकेट हमले और कट्टरपंथी लड़ाकों को ईरान से मिलने वाले समर्थन से इजरायली लोगों में खासा नाराजगी रही है.
रिपब्लिकन सीनेट सदस्यों ने किया परमाणु समझौते का विरोध
अमेरिका में विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी भी इस मुद्दे पर अपनी खीझ जाहिर कर चुकी है. मई के दूसरे हफ्ते में 44 सीनेट सदस्यों ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को चिट्ठी लिखकर उन्हें ईरान से एटमी डील पर बातचीत बंद करने की सलाह दी थी. इस चिट्ठी में उन्होंने याद दिलाया कि ईरान हमेशा से हमास को आर्थिक और सामरिक सहायता मुहैया कराता रहा है.
हालांकि ज्यादातर जानकारों का मानना है कि इजरायल के साथ चले 11 दिनों के संघर्ष के दौरान ईरान हमास की पीठ जरूर थपथपाता रहा, लेकिन इसमें उसकी कोई सक्रिय भूमिका नहीं रही. लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि ईरान गाजा पट्टी में मौजूद हमास और फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (PIJ) जैसे चरमपंथी संगठनों को सालों से मदद पहुंचाता रहा है. इ्न्हें रॉकेट और हथियार बनाने की ट्रेनिंग भी ईरान से ही मिली. जिसके बूते गाजा पट्टी की सीमाएं सील होने और असलहा की तस्करी वाले सुरंगों के बंद होने के बावजूद हमास ने इजरायल पर हमले के लिए रॉकेट तैयार कर लिया था.
अपनी चिट्ठी में रिपब्लिकन सीनेटर्स ने राष्ट्रपति जो बाइडेन को खुलकर कहा कि इजरायल के दुश्मनों की ताकत बढ़ाने वाले कदमों से अमेरिका को बचना चाहिए और ईरान उन देशों में शामिल है जो इजरायल की बर्बादी चाहते हैं.
यहां गौर करने की बात यह है कि 2015 में बराक ओबामा के शासन में ईरान के साथ अमेरिकी डील को जब डोनाल्ड ट्रंप ने 2018 में निरस्त कर दिया तो ईरान ने तमाम आर्थिक पाबंदियों के न्यक्लियर डील की सभी शर्तों को किनारे कर यूरेनियम संवर्धन की रफ्तार तेज कर दी थी. जिसने पूरे विश्व की चिंता बढ़ा दी थी.
क्या परमाणु समझौते के बाद ईरान मध्य-पूर्व क्षेत्र में अस्थिरता फैला सकता है?
कुछ जानकारों की राय यह है कि मध्य पूर्व में एटम बम से ज्यादा अस्थिरता ईरान के मिसाइल, रॉकेट और ड्रोन जैसे हथियार पैदा कर सकते हैं, और दोबारा समझौता होने के बाद एटम बम ना बनाने के एवज में ईरान को जो आर्थिक मदद मिलेगी उससे वो अपने हथियारों का जखीरा और मजबूत करेगा.
ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि अगर ईरान ने अमेरिकी डील से फायदा उठाकर अपनी जंगी ताकत बढ़ाई तो असर पूरे मध्य-पूर्व क्षेत्र पर होगा. इससे इजरायल की मुश्किलें भी बढ़ेंगीं. हालांकि नेतन्याहू के सख्त बयान के ठीक बाद प्रेस कांफ्रेंस में उनके साथ खड़े अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भरोसा दिया कि वियना में होनी वाली बातचीत को लेकर बाइडेन प्रशासन लगातार इजरायल के संपर्क में रहेगा. ब्लिंकन ने साफ कर दिया कि इस क्षेत्र को अस्थिर करने वाली किसी भी ईरानी कार्रवाई का अमेरिका और इजरायल मिल कर सामना करेंगे.
इधर, इजरायल भी नहीं चाहता कि अमेरिका के साथ दोबारा ओबामा शासनकाल में बने हालात की नौबत आए. लेकिन जाहिर है नेतन्याहू की चिंता यह है कि डील के बावजूद कहीं ईरान एटमी ताकत बनने में कामयाब न हो जाए. साथ ही इजरायल चाहता है कि अमेरिका यह सुनिश्चित करे कि हमास और लेबनान के हिजबुल्ला जैसे चरमपंथी संगठनों को ईरान से मिलने वाली मदद बंद हो.
क्या ईरान में चुनाव से पहले परमाणु समझौता हो सकता है?
न्यूक्लियर डील वियना में होने वाली बातचीत के साथ ईरान की सियासत पर भी निर्भर करता है. जहां अगले महीने राष्ट्रपति का चुनाव होने वाले हैं और सात उम्मीदवारों के नाम सामने आ चुके हैं. गौर करने वाली बात यह है कि दावेदारों में राष्ट्रपति हसन रूहानी के दो ऐसे साथी भी मौजूद थे जिन्होंने पिछली बार एटमी डील में अहम किरदार निभाया था. लेकिन सात उम्मीदवारों की लिस्ट से उनके नाम गायब थे. साफ है कवायद इस बात की है कि ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई के करीबी किसी रूढ़िवादी कट्टरपंथी चेहरे को अगला राष्ट्रपति बनाया जाए.
जानकारों का मानना है कि इसी वजह से ईरान के चुनाव से पहले ही न्यूक्लियर डील को अमली जामा पहनाया जा सकता है. क्योंकि ईरान में राष्ट्रपति चुनाव के बाद समझौते की शर्तों को लेकर बातचीत में नई मुश्किलें आ सकती हैं.
इजरायली प्रधानमंत्री ने इस डील को लेकर अपनी आशंका जरूर जाहिर कर दी है, लेकिन वो हर हालात से निपटने के लिए तैयार नजर आ रहे हैं. सोमवार को मोसाद एजेंट्स को सम्मानित किए जाने वाले एक समारोह के दौरान नेतन्याहू ने अपनी मंशा जाहिर कर दी. उन्होंने कहा, 'डील हो या न हो, इजरायल किसी भी हाल में ईरान को एटमी हथियार हासिल नहीं करने देगा, क्योंकि यह हमारे अस्तित्व का सवाल है.'
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