सम्पादकीय

आईपीएल : नीलामी में क्यों बिकने चाहिए क्रिकेटर

Neha Dani
20 Feb 2022 1:38 AM GMT
आईपीएल : नीलामी में क्यों बिकने चाहिए क्रिकेटर
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टके सेर खाजा का आभास देती है। क्रिकेट प्रेमियों को अपना प्रेम दर्शाना होगा, क्योंकि यह हमारा खेल है।

आज इस देश में बहस के लिए मुद्दों की कोई कमी नहीं है। लोकतंत्र में चुनाव उत्सव माने जाते हैं, क्योंकि चुनाव के जरिये समाज से सही और सच्चे को चुनने की उम्मीद लगाई जाती है। ठीक उसी तरह उद्योग या बाजार पर समभाव की आर्थिक व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी रहती है। यह सही है कि बाजार हमारे समाज का अहम हिस्सा है, जो खरीदार की मांग से चलता है।

लेकिन इंडियन प्रीमियर लीग या आईपीएल में वस्तु की जगह व्यक्ति या खिलाड़ी बिकते हैं। क्रिकेट खिलाड़ियों को धनी बनाने के लिए उनकी नीलामी होती है। अमुक खिलाड़ी इतने में बिका या उतने में खरीदा गया। या अमुक खिलाड़ी को किसी भी मालिक ने नहीं खरीदा। यानी बहस जारी है, लेकिन विचार गायब है। पिछले दिनों बेंगलुरु में इंडियन प्रीमियर लीग में खिलाडि़यों की मंडी सजी थी।
कुल 10 फ्रैंचाइजी टीम मालिक दुनिया भर के करीब 600 क्रिकेट खिलाड़ियों की नीलामी में जुटे थे। वहां बोली लगी और खिलाड़ियों को खरीदने-बेचने का खेल शुरू हुआ। टीवी पर सीधे प्रसारण में खेल फिर शर्मसार हुआ। खेल प्रेमियों को यह जताया जाता रहा है कि नीलामी ही वह व्यवस्था है, जिससे क्रिकेट खिलाड़ियों को खूब धन दिलाया जा सकता है।
इससे क्रिकेट प्रेमियों को बरगलाया जाता है। जबकि दुनिया भर में किसी भी खेल में खिलाड़ियों की नीलामी नहीं होती है। अन्य खेलों के खिलाड़ी अपनी खेल प्रतिभा और मैदान पर अच्छा खेलने से धन कमाते हैं। प्रतिभा और अच्छे खेल से धन कमाना सरेआम नीलाम होने से कहीं ज्यादा सम्मानजनक सौदा है। नीलामी दरअसल वह प्रक्रिया है, जिसमें वस्तु को खरीदने-बेचने के लिए या कैसी भी सेवा प्रदान करने के लिए बोली लगाई या ली जाती है।
किसी भी वस्तु को सबसे उंची बोली लगाने वाले को बेचा जाता है। या सबसे नीची बोली लगाने वाले से खरीदा जाता है। नीलामी में टीम मालिकों के सामने क्रिकेट खिलाड़ियों को व्यक्ति के बजाय वस्तु माना जाता है। क्रिकेट खिलाड़ियों को नीलामी असम्मानजनक आखिर क्यों नहीं लगती है? और क्रिकेट प्रेमी अपने चहेते खिलाड़ियों को नीलाम होने ही क्यों दे रहे हैं? क्रिकेट का भरपूर आनंद और रोमांच देने वाले बेहद लोकप्रिय आइपीएल में नीलामी वस्तुतः एक काला धब्बा है।
घोड़े जरूर नीलाम होते हैं, लेकिन कमाई के धन की समझ घोड़े को नहीं होती। उसके दौड़ने की प्रतिभा या कला-कौशल से भी उसका कोई लेना-देना नहीं रहता। सवाल है कि क्या टीम मालिक खरीदे गए क्रिकेट खिलाडि़यों को घुड़दौड़ के घोड़ों के रूप में देखते हैं। यह माना कि कलाकारी बिकती है, लेकिन क्या कलाकार भी बिकने चाहिए? क्रिकेट का खेल भी एक कला है।
जब क्रिकेट के खिलाड़ी नीलामी में बिक रहे हैं, तो फिर खेल खरीदने-बिकने से किस तरह बचा रह सकता है? खेल समृद्ध होता है, तभी तो खिलाड़ी भी संपन्न होते हैं। सवाल यह है कि खेल को समृद्ध बनाने के लिए खिलाड़ी को नीलाम करना क्यों जरूरी है। दुनिया की सबसे समृद्ध फुटबाल की इंग्लिश प्रीमियर लीग में सभी खिलाड़ी संपन्न हैं, लेकिन वहां कोई भी खिलाड़ी नीलाम नहीं होता।
पिछले साल कोरोना काल में इस लीग के टीम मालिकों के बीच साठगांठ हुई और टीवी कंपनी से मिलकर एक अलग यूरोपीय लीग कराने का फैसला लिया गया। वैसे में नजर अंदाज किए गए फुटबॉल प्रेमी जब विरोध में सड़कों पर उतरे, तब लीग रद्द हुई। तब टीम मालिक और आयोजकों को समझ में आया कि असल खेल चलाने वाले तो फुटबॉल प्रेमी ही हैं।
पहले मैदान पर क्रिकेट देखने आने वाले खेल प्रेमियों से खेल चलता था। उसके बाद क्रिकेट को टीवी पर दिखाया जाने लगा। लोकप्रिय खेलों को टीवी पर दिखाने के लिए प्रायोजकों का प्रचार होने लगा। क्रिकेट चलाने में उद्योग या बाजार का धन लगने लगा। खेलों में धन आया, तो खिलाड़ी भी संपन्न हुए। मगर बाजार के मुनाफे के मकसद भी बनाए गए। बाजार खुद को खेल और खिलाड़ियों का मालिक मानने लगा।
फिर खिलाड़ी और मालिकों के बीच गठजोड़ हुआ, तो खेल प्रेमी सिर्फ टीवी के दर्शक भर ही रह गए। आज उद्योग के धन और बाजार के प्रयोजन से ही क्रिकेट का खेल होता है। आईपीएल में क्रिकेटरों की नीलामी को सही ठहराने वाले लोग कहते हैं कि खिलाड़ियों को उनके खेल जीवन-यापन के लिए जरूरी धन इसी तरह मिल सकता है। लगन से, मेहनत कर, जी-जान लगाने वाले खिलाड़ियों को उनकी प्रतिभा, कौशल और अच्छा खेलने के लिए खूब धन मिलना ही चाहिए।
खेल की उम्र चूंकि जीवन की उम्र से छोटी होती है, इसलिए खिलाड़ियों के खूब कमाने में किसी को नाक-भौं नहीं सिकोड़नी चाहिए। लेकिन नीलामी के धन से खेलने की नैतिकता तय नहीं होती। खेल का कौशल तय नहीं होता। इससे खिलाड़ी की सही कीमत या मूल्य भी तय नहीं होता। हां, धन के गुलाम खिलाड़ियों पर मालिकाना हक जरूर तय होता है। नीलामी सिर्फ अंधेर नगरी, चौपट राजा/ टके सेर भाजी, टके सेर खाजा का आभास देती है। क्रिकेट प्रेमियों को अपना प्रेम दर्शाना होगा, क्योंकि यह हमारा खेल है।

सोर्स: अमर उजाला


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