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- जांच की दिशा-दशा:...
टूलकिट विवाद में गिरफ्तार पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को जमानत देते हुए अदालत ने उन विवादित मुद्दों पर दृष्टि स्पष्ट करने का प्रयास किया है जिन पर हाल के वर्षों में देशव्यापी गहन विमर्श जारी है। अदालत ने स्पष्ट किया कि लोकतंत्र में असहमति को राजद्रोह की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। अदालत ने तल्ख टिप्पणी की कि मतभेद, असहमति, वैचारिक भिन्नता, असंतोष व अस्वीकृति राज्य की नीतियों में निष्पक्षता लाने के जरूरी अवयव हैं।
न्यायाधीश ने कहा कि एक सचेतन और मुखर नागरिक एक उदासीन व विनम्र नागरिक की तुलना में जीवंत लोकतंत्र का परिचायक है। मंगलवार को पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि की जमानत के बाद तिहाड़ जेल से रिहाई हो गई। पुलिस ने अदालत में दिशा की पेशी के वक्त कहा था कि वह 26 जनवरी को लालकिला हिंसा की योजना को दर्शाने वाले टूलकिट डॉक्यूमेंट की एडिटर हैं, जिसे बनाने व प्रसारित करने में उसकी भूमिका रही है। इस बाबत एडिशनल सेशन जज धर्मेंद्र राणा ने माना कि लगता नहीं कि व्हाट्सएप समूह बनाना अथवा किसी को हानि न पहुंचाने वाले टूलकिट का संपादन करना कोई अपराध है।
जज ने इस टूलकिट के अंतर्राष्ट्रीय संस्था पीजेएफ से जुड़ाव को भी आपत्तिजनक नहीं माना। ऐसे में व्हाट्सएप समूह से उस बातचीत को हटाना, जिनका संबंध टूलकिट व पीजेएफ से था, अपराध की श्रेणी में नहीं आता। साथ ही संचार माध्यम को भौगोलिक बाधाओं से परे बताया और उसे नागरिक अधिकार माना, जिसे वह संवाद करने के लिए प्रयुक्त भी कर सकता है। साथ ही अदालत ने कहा कि पुलिस ऐसे कोई साक्ष्य पेश नहीं कर पायी है, जिससे पता चले कि दिशा रवि का संबंध पीजेएफ व खालिस्तानी समर्थकों से रहा है। साथ ही इस बात का भी कोई साक्ष्य नहीं है कि दिशा का संबंध 26 जनवरी को हुई हिंसा से रहा है। अत: आपराधिक रिकॉर्ड न रखने वाली दिशा को अधूरे सबूतों के चलते एक लाख के पर्सनल बॉन्ड पर रिहा कर दिया गया।