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जो वाकई में सभी को एकजुट करने वाला प्रयास होगा।
इंटरनेट आज आम आदमी की जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है। जैसे औद्योगिक युग में बिजली के इंजन ने सामाजिक और आर्थिक परिवेश को बदल दिया था, ठीक वैसे ही यह लोगों के निजी जीवन, संगठनों के आगे बढ़ने और राष्ट्रों की राजनीतिक रिवायतों को आकार देने में एक प्रमुख भूमिका अदा कर रहा है। लेकिन क्या इस डिजिटल दुनिया में हम वाकई आजाद हैं? या हम अब भी उन डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर निर्भर हैं, जो पश्चिमी देशों में बनाए गए हैं और भारत जैसे देशों में विचारों को पेश कर इन्हें आगे बढ़ा रहे हैं।
अन्य चीजों का जहां उत्पादन नियंत्रित होता है और दुरुपयोग को रोकने के लिए आपूर्ति राशन के मुताबिक की जाती है, सोशल मीडिया इससे उलट है और यह डाटा, कंटेंट और सूचना को लगातार विस्तार देने वाला संसार है। ऐसे प्लेटफॉर्म का स्वामित्व निजी हाथों में होता है। परिणामस्वरूप, यूजर्स के डाटा के दुरुपयोग के साथ-साथ विचारधारा, जाति, लिंग, धर्म जैसे विषयों पर दुष्प्रचार और एल्गोरिदम में हेरफेर की संभावनाएं रहती हैं। इसके अलावा, ऐसे प्लेटफार्म अपने मूल देश के कानूनों के अधीन होते हैं, जिससे उस देश की सरकार यूजर्स के डाटा तक आसानी से पहुंच सकती हैं, फिर चाहे वह डाटा विदेशी यूजर्स का ही क्यों न हो।
उदाहरण के लिए, अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के पास प्रिज्म नाम का एक ऐसा उपकरण है, जो गूगल, फेसबुक, एप्पल जैसी प्रमुख इंटरनेट और संचार कंपनियों के यूजर्स के डाटा को एकत्र करने के लिए संविधान के प्रोटेक्ट अमेरिका ऐक्ट, 2007 के तहत बनाया गया था। हालांकि प्रिज्म में शामिल शीर्ष कंपनियां और अमेरिकी सरकार इसके अस्तित्व को नकारती रही, लेकिन तकरीबन छह वर्षों तक, जब तक मीडिया में लीक रिपोर्ट्स के जरिये इसकी हकीकत सामने नहीं आई, तब तक प्रिज्म का अस्तित्व और विस्तार एक रहस्य बना रहा।
अब कई देशों के लिए यह मामला एक गंभीर चुनौती बन चुका है, अन्य देशों के प्रति प्रबंधन की जवाबदेही बेहद कम है और नतीजे तो उससे भी कम। इसके परिणामस्वरूप भारत में भी अपने स्वदेशी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की सख्त जरूरत महसूस हो रही है। क्या हम तकनीकी रूप से इस स्वदेशीकरण को हासिल करने में सक्षम हैं? निश्चित रूप से इसका जवाब हां है। वर्ष 2020 में, चीन के साथ तनाव के बीच केंद्र सरकार ने सुरक्षा और निजता का हवाला देते हुए टिकटॉक, शेयरइट और वीचैट जैसे मशहूर मोबाइल ऐप समेत कई चीनी ऐप्स पर पाबंदी लगा दी थी।
फिर जब भारत ने 321 चीनी ऐप्स को गैरकानूनी घोषित किया, तब आत्मनिर्भर भारत ऐप इनोवेशन चैलेंज की घोषणा की गई, जिसमें भारतीय तकनीकी उद्यमियों और स्टार्ट-अप्स से इनके वैकल्पिक ऐप्स डिजाइन करने के लिए कहा गया। इसमें कई स्वदेशी ऐप्स ने हिस्सा लिया और 6,000 से ज्यादा आवेदन मिले, जिनमें कई स्वदेशी कंपनियों ने तकनीक के जरिये अमिट छाप छोड़ी और फिर वह वक्त भी आ गया जब कू ऐप जैसे स्वदेशी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने वैश्विक स्तर पर अपना दम दिखाया।
एचएसबीसी ग्लोबल रिसर्च के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में भारत के इंटरनेट स्टार्ट-अप क्षेत्र में करीब 4.78 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया गया, जिसमें अकेले 2020 में लगभग 95 हजार करोड़ रुपये का निवेश हुआ है। सोशल मीडिया कंपनियों के लिए भारत एक बहुत बड़ा बाजार है। भारत में 26.5 करोड़ लोग अंग्रेजी बोलते हैं और 93.1 करोड़ लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं।
केवल एक स्वदेशी डिजिटल मंच ही इस विविधता पर अच्छी पकड़ बना सकता है। यह सभी संस्कृतियों के लोगों को उनकी परंपराओं, भाषाओं और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक मंच प्रदान कर उभर सकता है। इससे देश भर की भाषाओं के साथ, लोगों के प्रतिनिधित्व, ज्ञान और सीखने में कई गुना बढ़ोतरी होगी, जो वाकई में सभी को एकजुट करने वाला प्रयास होगा।
सोर्स: अमर उजाला
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