सम्पादकीय

दिमागी सेहत खराब कर रही है इंटरनेट की लत

Gulabi
27 Aug 2021 4:43 PM GMT
दिमागी सेहत खराब कर रही है इंटरनेट की लत
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इंटरनेट ने हमारे जीवन को कई मायनों में बदलकर रख दिया है

ब्लॉगर के बारे में, प्रदीप, प्रदीपतकनीक विशेषज्ञ।

इंटरनेट ने हमारे जीवन को कई मायनों में बदलकर रख दिया है. इसने हमारे जीवन स्तर को ऊंचा कर दिया है और कई कार्यों को बहुत सरल-सुलभ बना दिया है. सूचना, मनोरंजन और ज्ञान के इस अथाह भंडार से जहां सहूलियतों में इजाफा हुआ है तो वहीं इसकी लत भी लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गई है. फिलहाल देश और दुनिया की एक बड़ी आबादी इंटरनेट, स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के साइबर एडिक्शन का शिकार हो चुकी है.

पिछले साल गैर-सरकारी संस्था 'क्राई' के एक सर्वे से यह खुलासा हुआ था कि इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल लोगों की जीवन शैली को प्रभावित कर रहा है और उन्हें मानसिक रूप से कमजोर बना रहा है. इंटरनेट का नशा इस कदर लोगों के सिर पर चढ़ रहा है कि उनको मनोचिकित्सकीय उपचार और काउंसलिंग तक करानी पड़ रही है.
मस्तिष्क की अंदरूनी संरचना को बदल रहा है इंटरनेट
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययनों में पाया है कि इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल हमारे दिमाग की आंतरिक संरचना को तेजी से बदल रहा है, जिससे इंटरनेट उपयोक्ता (यूजर) का ध्यान, स्मरणशक्ति और सामाजिक दृष्टिकोण प्रभावित हो सकता है. दरअसल, यह बदलाव कुछ-कुछ हमारे तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) की कोशिकाओं की वायरिंग और री-वायरिंग जैसा है.
मनोरोग अनुसंधान की विश्व प्रसिद्ध पत्रिका 'वर्ल्ड साइकाइट्री' में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल हमारे दिमाग पर स्थाई और अस्थाई रूप से असर डालता है. इस अध्ययन में शामिल शोधकर्ताओं ने उन प्रमुख अवधारणाओं की जांच की जो यह बताते हैं कि किस तरह से इंटरनेट संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को बदल सकता है.
इसके साथ ही, शोधकर्ताओं ने इसकी भी पड़ताल की कि ये अवधारणाएं मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सा और न्यूरोइमेजिंग के हालिया अनुसंधानों के निष्कर्षों से किस हद तक समर्थित हैं. इंटरनेट मस्तिष्क की संरचना को कैसे प्रभावित करता है, इसके बारे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुए ज़्यादातर अध्ययनों का यही निष्कर्ष है कि इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल मस्तिष्क की संज्ञानात्मक गतिविधियों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है.
उदाहरण के लिए, इंटरनेट से लगातार आने वाले नोटिफिकेशन, पॉप-अप और सूचनाओं की असीम धारा हमें अपना ध्यान उसी ओर लगाए रखने के लिए प्रोत्साहित करती हैं. इसके फलस्वरूप किसी एक काम पर एकाग्र होने, उसे गहराई से समझने और आत्मसात करने की हमारी क्षमता में बहुत तेजी से कमी आती है.
मौलिकता और रचनात्मकता को खत्म कर रहा है इंटरनेट एडिक्शन
इंटरनेट की बदौलत आज सूचनाओं का आदान-प्रदान पलक झपकते होने लगा है, लेकिन इसके ज्यादा इस्तेमाल की वजह से आज यह साइबर एडिक्शन का कारण भी बन गया है. आज हालात यह है कि देश और दुनिया की एक बड़ी आबादी सूचनाओं के बोझ से दबी जा रही है और सोचने-समझने की उसकी क्षमता लगातार कम होती जा रही है.
साइबर एडिक्‍शन के चलते, काम में मौलिकता का अभाव स्पष्ट रूप से दिख रहा है. वजह यह है कि आज लोगों को हर समस्या का समाधान इंटरनेट पर आसानी से मिल जाता है, इसलिए वह अपने सोचने और समझने की क्षमता खो देते हैं. लिहाजा दिमागी कसरत कम हो जाता है और इंटरनेट रचनात्मकता को खत्म कर देता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) द्वारा साल 2018 में जारी दिशानिर्देशों के मुताबिक छोटे बच्चों (2-5 वर्ष की आयु) को प्रति दिन एक घंटे से ज्यादा स्क्रीन के संपर्क में नहीं आना चाहिए. अभिभावकों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके बच्चे डिजिटल डिवाइस या इंटरनेट पर ज्यादा समय तो नहीं बिता रहे हैं.
डबल्यूएचओ के अनुसार, माता-पिता को बच्चों के अन्य महत्वपूर्ण विकासात्मक गतिविधियों जैसे कि सामाजिक संपर्क और शारीरिक क्रियाकलापों पर अधिक ध्यान देना चाहिए, ताकि बच्चों को इंटरनेट एडिक्शन का शिकार होने से बचाया जा सके.
दिमागी सर्किटों की नए सिरे से वायरिंग कर रही है इंटरनेट की लत
आज हमें यह समझने की जरूरत है कि इंटरनेट की बदौलत जहां वैश्विक समाज एकीकृत हो रहा है, वहीं यह पूरी दुनिया (बच्चों से लेकर बूढ़ों तक) को साइबर एडिक्ट भी बना रहा है. इंटरनेट की लत वैसे ही लग रही है, जैसे शराब या सिगरेट का. इंटरनेट की लत से जूझ रहे लोगों के मस्तिष्क के कुछ खास हिस्सों में गामा अमिनियोब्यूटरिक एसिड (जीएबीए) का स्तर बढ़ रहा है.
जीएबीए का मस्तिष्क के तमाम कार्यों मसलन जिज्ञासा, तनाव, नींद आदि पर बड़ा असर होता है. जीएबीए स्तर का असंतुलन अधीरता, बेचैनी, तनाव और अवसाद (डिप्रेशन) को बढ़ावा देता है. इंटरनेट की लत दिमागी सर्किटों की बेहद तेजी से और पूर्णत: नए तरीकों से वायरिंग कर रही है! इंटरनेट के शुरवाती दौर में हम निरंतर कनेक्टेड होने की बात किया करते थे और आज यह नौबत आ गई कि हम डिजिटल जहर-मुक्ति की बात कर रहे हैं!
भारत में साइबर एडिक्शन को लेकर किए गए एक सर्वे के मुताबिक, 18 से 30 साल के बीच 5 में से 3 युवा ऐसे हैं, जो अपने स्मार्टफोन के बगैर इस तरह बेचैन होने लगते हैं, जैसे उनके शरीर का कोई हिस्सा गायब हो गया हो. इनमें 96 प्रतिशत सुबह उठकर सबसे पहले फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर पर जाते हैं. 70 प्रतिशत युवाओं का मानना है कि वे ई-मेल और सोशल मीडिया को चेक किए बगैर जी नहीं सकते.
प्रसिद्ध लेखक निकोलस कार ने मस्तिष्क पर इंटरनेट से पड़ने वाले प्रभावों पर लिखी अपनी बेस्टसेलर किताब 'द शैलोज' में ठीक ही कहा है कि 'इंटरनेट हमें सनकी बनाता है, हमें अवसादग्रस्त करता है और हमें उस ओर ले जाता है जहां हम इस पर ही निर्भर हो जाएं.'
मुद्दा बने इंटरनेट की लत
शराब या अन्य मादक पदार्थों से अलग इंटरनेट की लत या व्यसन की कोई सर्वमान्य वैज्ञानिक परिभाषा अभी तक नहीं बन पाई है. चिंता की बात यह है कि समाज और सरकार अभी भी इसे गंभीरता से नहीं ले रही है. उन्हें अब तक यह अंदाजा भी नहीं है कि यह भी एक समस्या है! अब वक्त आ गया है कि इसका समुचित समाधान खोजा जाए. इंटरनेट एडिक्शन से छुटकारा पाने के लिए सरकार के साथ-साथ हमें सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर भी पहल करनी होगी. अस्तु!
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

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