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बिना दवा के मन और शरीर को निरोग रखने वाली पद्धति ‘योग’ की शक्ति का आज सारी दुनिया लोहा मान रही है
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
International Yoga Day 2022: बिना दवा के मन और शरीर को निरोग रखने वाली पद्धति 'योग' की शक्ति का आज सारी दुनिया लोहा मान रही है. सन् 2014 में जब संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिवर्ष 21 जून को योग दिवस मनाने की घोषणा की तो वह एक तरह से योग की उपयोगिता की वैश्विक मान्यता थी.
योग हजारों वर्षों से भारतीय जीवन दर्शन, धर्म तथा अध्यात्म का हिस्सा रहा है. पांच हजार वर्ष पुरानी यह अभिनव विधि स्वस्थ जीवन के लिए दुनिया को भारत का अद्वितीय तथा अचूक उपहार है. चिकित्सा विज्ञान ने पिछली दो शताब्दियों में अभूतपूर्व प्रगति की है.
एलोपैथी से चिकित्सा के क्षेत्र में क्रांति आई और असाध्य रोगों का बेहतर इलाज होने लगा लेकिन इलाज की इस नई प्रणाली की बहुत बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ रही है. एलोपैथी में प्रयुक्त होने वाली दवाओं के दुष्परिणाम (साइड इफेक्ट) बहुत गंभीर होते हैं. एक बीमारी से छुटकारा पाने के लिए जो दवाएं दी जाती हैं, वह कुछ नई बीमारियां दे जाती है.
दूसरे शब्दों में कहें तो एलोपैथी अगर किसी एक बीमारी पर अंकुश लगाती है तो दूसरी नई बीमारियों को भी हमारे शरीर में बसा देती है. इसके बावजूद इलाज के लिए आज एलोपैथी पर ही सबसे ज्यादा भरोसा किया जाता है क्योंकि इसके तत्काल परिणाम मिलते हैं, और योग जैसी विलक्षण पद्धति सदियों तक भारत में साधु-संतों तक ही सिमट कर रही तथा दुनिया के बाहर उसका ज्यादा प्रचार नहीं हुआ.
प्राचीन भारत में बौद्ध भिक्षु जब धर्म प्रचार के लिए दक्षिण-पूर्वी एशिया में गए तो अपने साथ योग को भी ले गए लेकिन उसका व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं हुआ. पांच हजार साल बाद योग न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में आम जनजीवन का हिस्सा बनता जा रहा है. औद्योगिक, तकनीकी तथा दूरसंचार क्रांति ने पिछले कई दशकों से आम आदमी की जीवनशैली बदल दी है.
जब सोने का वक्त होता है, तब आदमी जागता है और जब चैतन्य रहने का प्राकृतिक समय रहता है तब वह सोता है. काम का स्वरूप भी मानसिक तनाव का बड़ा कारण बन गया है. जब आदमी मानसिक व्याधियों का शिकार होता है तो शारीरिक व्याधियों को उसके शरीर में प्रवेश करने में देर नहीं लगती.
खुद को स्वस्थ रखने के लिए उसे अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति में ही समाधान नजर आता है. योग का आज ऐसे ही दुनिया में डंका नहीं बज रहा है. लोग साइड इफेक्ट देने वाली दवाओं से ऊबने के साथ-साथ चितिंत भी होने लगे हैं. दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने इस तथ्य को समझा और उनका ध्यान शरीर को निरोगी रखने वाली भारतीय पद्धति योग पर गया.
जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, नीदरलैंड, अमेरिका, आस्ट्रिया, आस्ट्रेलिया, नाॅर्वे, स्वीडन समेत दुनिया के सौ से ज्यादा देशों में योग पर अनुसंधान चल रहा है. कई अनुसंधानों में वैज्ञानिक रूप से योग की उपयोगिता प्रमाणित हो चुकी है. अस्सी और नब्बे के दशक में दुनिया के कई वैज्ञानिकों ने योग पर शोधपत्र प्रकाशित कर इस प्राचीन भारतीय पद्धति की चिकित्सकीय उपयोगिता को निर्विवाद रूप से साबित किया.
भारत के कई आध्यात्मिक गुरुओं ने भी योग की विभिन्न प्रणालियों का दुनिया भर में प्रचार-प्रसार किया और इससे योग के महत्व को लोगों ने जाना. योग आज धीरे-धीरे दुनिया के जन-जीवन का हिस्सा बनता जा रहा है. तन और मन को बिना औषधि के स्वस्थ रखने की अभूतपूर्व क्षमता के कारण योग निकट भविष्य में इलाज की नई पद्धति के रूप में स्थापित हो जाए तो आश्चर्य नहीं.

Rani Sahu
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