सम्पादकीय

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2022: वुमेन्स आर चैंपियन्स ऑफ चेंज

Rani Sahu
7 March 2022 8:54 AM GMT
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2022: वुमेन्स आर चैंपियन्स ऑफ चेंज
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भारतीय महिलाओं को नए भारत के उभरते परिदृश्य में एक सशक्त हस्तक्षेप के रूप में देखने के पर्याप्त कारण हैं

डॉ. राकेेेेश राणा

भारतीय महिलाओं को नए भारत के उभरते परिदृश्य में एक सशक्त हस्तक्षेप के रूप में देखने के पर्याप्त कारण हैं। महिलाओं से जुड़े नियम, कानून, संवैधानिक प्रावधान, मीडिया, सरकार की नीतियां व कार्यक्रम, पंचायतों व विधान सभाओं तथा संसद में उनका प्रतिनिधित्व, जेंडर बजटिंग, उद्यमिता व कौशल विकास कार्यक्रम तथा बैंकिंग एवं लघु ऋण योजनाएं, स्व-सहायता समूह और मनरेगा जैसे प्रयास मिल-जुलकर महिलाओं के नए भारत में मददगार बने हैं।
उन्हें अपना एक आधुनिक राष्ट्र बनाने में ये सब सहायक सिद्ध हुए हैं। महिलाएं विकासशील देशों में नए प्रवर्तनों की वाहक बनी हैं। हाल के चुनाव में 17वीं लोकसभा 78 महिला सांसदों के साथ शुरू हुई। जिनमें भारतीय जनता पार्टी की ही अकेले 34 सांसद चुनी गईं, जबकि 724 महिला उम्मीदवार चुनावी समर में उतरी। यह अच्छा संकेत है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट बताती है कि विश्व के चालीस प्रतिशत से भी अधिक रोजगारों में महिलाएं कार्यरत हैं। सरकारी रिपोर्ट्स बताती हैं कि देश की कुल श्रम शक्ति में ग्रामीण महिलाओं का बड़ा योगदान है। लैंगिग समानता पर मैकेंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट की हालिया रिपोर्ट का एक अनुमान है-
भारत अपनी अर्थव्यवस्था में लैंगिक संतुलन स्थापित कर लेता है तो अगले दस वर्षों में अपने सकल घरेलू उत्पाद में सात अरब डॉलर तक जोड़ सकता है।
अनुभव यह भी बताते हैं कि किसी भी उद्यम में महिला पुरुष मिश्रित बोर्ड का परिणाम कई गुना सकारात्मक पड़ता है। मात्र 10 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी 70 प्रतिशत तक का मुनाफा बढ़ा देती है। उद्यमिता के आंकडे़ बताते हैं कि मात्र 14 प्रतिशत महिलाओं को ही यह अवसर प्राप्त हुआ है।
कारोबार क्षेत्र में बढ़ता महिलाओं का योगदान
देश के 6 करोड़ उद्यमियों में मात्र 80 लाख महिलाएं हैं। महिलाओं के द्वारा संभाले जा रहे कारोबार में 83 प्रतिशत लघु उद्योगों का है जो कि लगभग 80 प्रतिशत स्ववित्तपोषित हैं। मात्र 4.4 प्रतिशत ने ही कहीं से ऋण लिया है। महिला उद्यमियों में 60 प्रतिशत वंचित समुदायों से आती हैं। 60 फीसदी कारोबार को एस0सी0/एस0टी0 महिलाएं संभाल रही हैं।
अप्रैल 2013 में फिक्की के महिला संगठन ने "सभी विषमताओं के विरुद्ध उद्यमिता" नाम से एक रिपोर्ट 150 महिला उद्यमियों के सफल जीवन संघर्ष की कहानियों के रुप में प्रकाशित की। रिपोर्ट साहसी, दृढ-प्रतिज्ञ और स्त्री शक्ति की उद्यमी सामर्थ्य का दस्तावेज है। कैसे धीरे-धीरे महिला उद्यमी अपने संघर्ष से पुरुष प्रधान समाज में अपना स्थान बना रही हैं।
महिला उद्यमिता को मजबूत करने के लिए बहुस्तरीय रणनीति की जरूरत है जिसमें सरकार, वित्तीय संस्थाएं, विशेषज्ञ समूह, व्यवसाय और उद्योग संघ तथा सफल महिला उद्यमियों के अनुभव का लाभ उनकी प्रत्यक्ष साझेदारी के साथ लिया जाए। ताकि उद्यमिता क्षमतावर्धन और जागरूकता तथा कौशल विकास सृजन को उभरती कॉरपोरेट अर्थव्यवस्था का आधार बनाया जाए और हम गर्व से कहें "वुमेन्स आर चैम्पियंस ऑफ चेंज"।
महिलाओं ने जहां-जहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है वहां-वहां लैंगिक असमानता अपने आप कमजोर हुई है। विज्ञान, तकनीकी, चिकित्सा, खेलकूद, मीडिया और मनोरंजन उद्योग में महिलाओं ने जिस तरह अपने आन को स्थापित किया वह लैंगिक असमानता जैसी स्थायी बिमारियों का एकमात्र हल है।
ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं का बड़ा योगदान
ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि से लेकर मछली पालन, पशुपालन, चाय उद्योग में महिलाओं ने अद्वितीय योगदान दिया है। आंकड़े बताते हैं-
कृषि क्षेत्र में महिलाओं का योगदान 80 प्रतिशत तक दर्ज होता है। फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन का अध्ययन बताता है कि हिमालय क्षेत्र में प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष पुरुष का कार्य करने का औरत रहता है 1212 घंटे और महिलाओं का औसत 3485 घंटे है।
वहीं महिलाएं कृषि के साथ-साथ दूसरे कृषि सहायक कार्यों पशुपालन और मत्स्य आदि और घरेलू कार्यों में जो श्रम करती है, वह अलग है। देश की गरीबी को कम करने में जो एकमात्र बड़ा योगदान है वह भारतीय महिलाओं का है। मनरेगा के आंकड़े भी यही कहानी बयान करते हैं। पुरुषों से कहीं ज्यादा काम महिलाएं कर रही हैं।
महिलाओं की श्रम-शक्ति का 90 प्रतिशत हिस्सा मजदूरी और कृषि कार्यों में खप जाता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की ओर से नौ राज्यों में शोध किया गया जिससे पता चला कि फसल उत्पादन में महिलाओं की हिस्सेदारी 75 प्रतिशत रहती है। बागवानी में 80 प्रतिशत तक और इन सबके निष्पादन कार्यों का 51 प्रतिशत महिलाओं द्वारा सम्पन्न किया जाता है।
पशुपालन में 60 प्रतिशत तो मछली पालन में 95 प्रतिशत तक महिला श्रम लगता है। कृषि में हिमाचल प्रदेश सबसे ज्यादा महिलाओं पर निर्भर करता है। महिलाओं को एक अनुकूल वातावरण बने और उनके लिए सहयोगात्मक व्यवस्था सृजित की जाए, जिसमें विज्ञान और तकनीक उनकी सहयोगी बने तो देश के विकास में महिला शक्ति नए कीर्तिमान स्थापित करेगी।
अभी कई चुनौतियां
भारतीय संविधान के 74वें संशोधन के साथ महिलाओं को जो भागीदारी राजनीतिक संस्थाओं में मिली उससे बड़े बदलाव समाज में आए। शिक्षा और आर्थिक मजबूती ने निसंदेह महिलाओं को पहचान दी है। किन्तु बिना राजनीतिक पहचान के इसमें स्थायित्व नहीं आएगा। अश्विनी शास्त्री की पुस्तक "भारतीय राजनीति की 50 शिखर महिलाएं" भारतीय महिलाओं के जीवन संघर्ष के साथ ही राजनीति में उनके महान योगदान को बताती है।
यह पुस्तक बताती है कि विधायी निकायों में पुरुषों और महिलाओं के संतुलित प्रतिनिधित्व से जटिल सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को प्रभावी तरीके से हल किया जा सकता है। अब दुनिया को यह समझ आने लगा है कि किसी देश की स्थिति वहां की महिलाओं की सामाजिक स्थिति से बनती है।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों के क्रम में जो सतत विकास लक्ष्य-5 उल्लेखित किया है वह इसीलिए कि बिना महिलाओं की सहभागिता के दुनिया विकास नहीं कर सकती है।
यदि कोई भी राष्ट्र सही दिशा में संतुलित और सतत् विकास चाहता है तो लैंगिक असमानता को दूर करना ही होगा। दुनिया के देशों में महिलाओं की स्थिति ही भविष्य के विश्व की उन्नति और समृद्धि तय करेगी। भारतीय महिलाओं ने अपनी दुनिया अपने संघर्षों के बल पर बनाई है।
नई सदी की नई भारतीय नारी ने जिस नई सोच, नई नैतिकता, नए मूल्यों, नए प्रतिमानों, कीर्तिमानों और नए क्षैतिजों के साथ नये भारत का सपना देखा है वह एक सशक्त, समरस, शांति और न्यायपूर्ण भारत होगा जिसकी उम्मीद विश्व समाज को हमसे है।

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