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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2022
शालिनी सक्सेना।
संपादक का नोट: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2022 (International Women's Day 2022) पर News9 ने मिड से सीनियर लेवेल की भर्ती करने वाली कंसल्टेंसी सर्विस लक्ष्य एचआर के साथ ये जानने की कोशिश की कि आमतौर पर महिलाएं दफ्तरों में किस तरह की चुनौतियों का सामना करती हैं और क्या उन्होंने इन्हीं परेशानियों के कारण नौकरी छोड़ी. सर्वेक्षण के दौरान इस बात का भी जवाब खोजने की कोशिश की गई कि क्या पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के लिए नौकरी करने की स्थिति में सुधार हुआ है या कोरोना महामारी ने महिलाओं के लिए नौकरी की तलाश को और बदतर बना दिया है. सर्वेक्षण में कामकाजी महिलाओं के साथ नौकरी छोड़ने वाली महिलाओं ने भी हिस्सा लिया.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) और सेंटर फॉर इकोनॉमिक डेटा एंड एनालिसिस (CEDA) के एक बुलेटिन में कहा गया है कि 2019 और 2021 के बीच हर महीने सक्रिय रूप से काम करने वाली महिलाओं की संख्या में 30 लाख तक की कमी आई है. सीएमआईई के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत के शहरी क्षेत्रों में 2019 की तुलना में 2021 में 22.1 फीसदी कम महिलाएं कार्यरत हैं. 2019 में जहां 9.52 मिलियन महिलाओं ने सक्रिय रूप से हर महीने नौकरी की तलाश की, 2021 में यह घटकर केवल 6.52 मिलियन रह गई.
2021 में पुरुष और महिला को नौकरी मिलने में असंतुलन रहा
सीएमआईई की यह राज्यों के हिसाब से 2019 से लेकर वर्तमान तक की मासिक रोजगार के आंकड़े हैं. सीएमआईई आकड़ों के मुताबिक यह पुरुषों के काम करने की प्रवृत्ति के विपरीत है. 2021 में सक्रिय रूप से नौकरियों की तलाश करने वाले पुरुष कर्मचारियों की संख्या में भारत के शहरी क्षेत्र में 19.7 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में 14.9 प्रतिशत (2019 की तुलना में) की वृद्धि हुई.
कम महिलाओं में काम पर लौटने की प्रवृति शहरी और ग्रामीण दोनों ही इलाकों के महिलाओं में देखी गई. सीएमआईई के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत के शहरों में 2021 में हर महीने केवल 2.57 मिलियन महिलाओं ने सक्रिय रूप से नौकरियों की खोज की जो 2019 के 3.87 मिलियन (33.7 प्रतिशत की गिरावट) की तुलना में कम है. भारत के ग्रामीण इलाकों में 2021 में केवल 3.95 मिलियन महिलाओं ने नौकरी की तलाश की जो 2020 और 2021 की तुलना में 5.16 (23.5 प्रतिशत कम) कम रही.
2021 में लिंकडिन के एक अध्ययन ने दिखाया कि इस साल किस तरह से पुरुष और महिला को नौकरी मिलने में असंतुलन रहा. 15 सबसे तेजी से बढ़ने वाली नौकरियों में पुरुषों ने आईटी सेक्टर में 70 फीसदी नौकरियों पर कब्जा कर लिया. साइट रिलायबिलिटी इंजीनियर (79 फिसदी), मशीन लर्निंग इंजीनियर (78 फीसदी), मार्केटिंग और एडवरटाइजिंग (68 फीसदी) और मीडिया (67 फीसदी) में ज्यादातर पुरुष ही नौकरी पर रखे गए. महिलाओं को अधिकतर वेलनेस विशेषज्ञ (54 प्रतिशत), यूजर एक्सपीरिएंस रिसर्चर (60 प्रतिशत), रिक्रूटमेंट एसोसिएट (68 प्रतिशत) और स्ट्रेटेजिक एसोसिएट्स (60 प्रतिशत) के रूप में काम पर रखा गया.
नौकरीपेशा महिलाओं के लिए मातृत्व एक बड़ी चुनौती बन कर सामने आती है
महिलाएं वर्कप्लेस में शामिल होने से क्यों कतरा रही हैं? "हर कार्यस्थल में महिलाओं के लिए अनुकूल वातावरण नहीं होता है. पिछले कुछ वर्षों में अधिकांश मानव संसाधन नीतियां महिला समकक्षों की तुलना में पुरुषों के लिए अधिक मददगार साबित हुई हैं. यदि हम चाहते हैं कि अधिक महिलाएं हमारे कार्यबल में शामिल हों तो कार्यालय को सुरक्षित बनाने की आवश्यकता है," जेपी मॉर्गन चेस की एक वरिष्ठ मैनेजमेंट कर्मचारी नीतू आहूजा ने News9 को बताया. नीतू ने आगे बताया कि उनकी कंपनी में नौकरी छोड़ने वाली ज्यादातर महिला कर्मचारी थीं. "सबसे बड़ा कारण यह था कि महामारी ने महिलाओं के लिए केवल अपने नौकरी पर ध्यान केंद्रित करना असंभव बना दिया. वर्क फ्रॉम होम एक अवधारणा के हिसाब से तो सुविधाजनक था मगर इसका मतलब यह था कि महिलाओं को एक साथ कई तरह के काम करने पड़ते थे. जब वे उस तनाव को झेल नहीं पाती थीं तो नौकरी छोड़ देती थीं. क्या ऐसे कर्मचारियों को कंपनी में बनाए रखने के लिए कुछ किया गया? दुर्भाग्य से, नहीं!," नीतू ने कहा.
सर्वेक्षण से पता चला कि जो महिलाएं काम करना जारी रखना चाहती हैं उनके लिए मातृत्व एक बड़ी चुनौती बन कर सामने आती है. सैंपल की करीब 20 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि मातृत्व अवकाश के बाद घर पर उन्हें पर्याप्त समर्थन नहीं मिला इसलिए उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी. "बच्चा होने के बाद सबसे बड़ी चुनौती यही होती है कि नौकरी पर वापस आने पर तुरंत ही आपसे पहले की तरह अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिए जाने की अपेक्षा की जाती है. भले ही कंपनी आपको मैटरनिटी लीव दे दे, जैसे ही आप नौकरी पर वापस लौटती हैं आपसे पहले दिन से ही लीव से पहले की तरह काम करने की अपेक्षा की जाती है. किसी तरह का लचीलापन रुख नहीं अपनाया जाता. इससे महिला के लिए नौकरी जारी रखना असंभव हो जाता है, शीतल आहूजा ने कहा जिन्होंने 2021 में अपने बच्चे को जन्म देने के बाद नई दिल्ली में आईसीआईसीआई बैंक की अपनी नौकरी छोड़ दी थी.
अगर आप मातृत्व अवकाश का लाभ उठाती हैं तो आपको इंक्रिमेंट साइकिल से बाहर कर दिया जाता है. एक आईटी कंसल्टेंसी कंपनी में अपनी काफी ज्यादा वेतन वाली नौकरी छोड़ने वाली शेफाली जैन ने कहा, "जब मैं मैटरनिटी लीव के बाद अपना काम फिर से शुरू करने दफ्तर आई तो मुझे बताया गया कि मेरा वार्षिक अप्रैजल नहीं होगा. मेरी कंपनी ने इस तथ्य पर विचार नहीं किया कि मैं अपनी प्रेगनेंसी की तीसरी तिमाही तक दफ्तर में काम करती रही थी." महिलाओं के नौकरी छोड़ने के दूसरे कारण नई जगह शिफ्ट होना (18 प्रतिशत), अपनी स्वेच्छा से नौकरी छोड़ना (18 प्रतिशत), शादी (15 प्रतिशत) और उच्च शिक्षा (11 प्रतिशत) रहे.
कार्यस्थल में पहले के मुकाबले महिलाओं के लिए चीजें बेहतर हुई हैं
ज्यादातर उत्तर देने वालों ने कार्यस्थल पर दोबारा नहीं जाने पर 'ब्रेक के कारण शॉर्टलिस्ट नहीं होने' वाले विकल्प को चुना. "जिस क्षण हमारे रिज्यूमे में गैप होता है हमसे इसके बारे में सवाल पूछे जाते हैं. हमारी नेगोशिएट करने की शक्ति (प्रोफाइल के साथ वेतन के लिए) को बेरहमी से छीन लिया जाता है. हमें या तो कम वेतन पर कार्यस्थल पर लौटने का विकल्प दिया जाता है या कंसल्टेंट के रूप में काम करने को कहा जाता है, "मुंबई की एक मीडिया प्रोफेश्नल मेघा गुप्ता ने कहा. वह मार्च 2021 से नौकरी की तलाश में है.
आईटी सेक्टर में नई भर्ती वाली एक महिला भी इसी तरह की परेशानी का सामना कर रही हैं. "मुझसे स्पष्ट रूप से पूछा गया है कि क्या मैं नौकरी के दौरान छुट्टी लेती रही हूं. अगर वह कंपनी उन्हें नौकरी पर रख लेती है तो क्या मैं यह गारंटी दूंगी कि मैं छुट्टी नहीं लूंगी. कई बार ब्रेक व्यक्तिगत कारणों से लिया जाता है और कई बार मैं इंटरव्यू लेने वाले को वो बात बता नहीं सकती. अगर मैं नहीं बताती तो वो तुरंत संदेह की नजर से देखने लगते हैं. या तो मुझे नौकरी बिल्कुल नहीं मिलती या मिलती है तो बहुत कम पैकेज पर समझौता करने के बाद. मैं 18 महीने से बगैर नौकरी के हूं," शैलजा सेन ने कहा (वह पहले आईबीएम के साथ काम कर रही थी). महिलाओं ने जिन दूसरे विकल्पों को चुना उनमें 'नौकरी की अनुपलब्धता' और 'समर्थन की कमी' प्रमुख रहे.
सर्वेक्षण में लगभग 85 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि उनके कार्यस्थल में पहले के मुकाबले महिलाओं के लिए चीजें बेहतर हुई हैं. "अगर मैं 2004 की अपनी स्थिति देखती हूं जब मैंने नौकरी शुरू की थी तो निश्चित रूप से अब स्थिति काफी बेहतर है. अब महिलाएं अपने अधिकारों के बारे में जानती हैं और पैसे, वेतन वृद्धि, बोनस, लचीले समय, प्रोफाइल आदि के बारे में अपने मन-मुताबिक मांग साफ-साफ रखने लगी हैं. वो अपने मामले को खुद आगे बढ़ाने को तत्पर हैं. ऐसे में एचआर विभाग ने भी इसे नोटिस में लेना शुरू कर दिया है. यह एक दुष्चक्र है. कार्यस्थल को लेकर कुछ नई नीतियां भी लागू की गई हैं. वे काफी हद तक महिलाओं का समर्थन करती हैं. इससे महिलाओं के लिए दफ्तर में चीजों को बेहतर बनाने में मदद मिली है," नोएडा में एक आईटीईएस कंपनी की एडमिन हेड रितु डिसूजा ने कहा. जिन 15 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि चीजें बेहतर हो सकती हैं वह भी महसूस करती हैं कि कार्यस्थल का वातावरण सेक्सिज्म से भरा और दमघोटूं है. इनके कारण महिला कर्मचारियों के लिए दफ्तर में पनपना और बढ़ना असंभव सा हो गया है.
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखिका के निजी हैं.)
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