सम्पादकीय

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस: डिजिटल दौर में मातृभाषा की चुनौतियां, खतरे में समृद्ध इतिहास

Rani Sahu
20 Feb 2022 9:53 AM GMT
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस: डिजिटल दौर में मातृभाषा की चुनौतियां, खतरे में समृद्ध इतिहास
x
वर्ष 2000 से यूनेस्को ने हर साल 21 फरवरी को भाषाई और सांस्कृतिक विविधता तथा बहुभाषावाद के विषय में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिये 'अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' मनाने की शुरुआत की

डॉ. ऐश्वर्या झा

वर्ष 2000 से यूनेस्को ने हर साल 21 फरवरी को भाषाई और सांस्कृतिक विविधता तथा बहुभाषावाद के विषय में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिये 'अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' मनाने की शुरुआत की। इस दिवस को मनाने का विचार कनाडा में रहने वाले बांग्लादेशी रफीकुल इस्लाम द्वारा दिया गया था। यह दिन बांग्ला भाषा के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए भी याद किया जाता है।वर्ष 1952 में ढाका यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा अपनी मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए 21 फरवरी को एक आंदोलन किया गया था। इसमें शहीद हुए युवाओं की स्मृति में यूनेस्को ने मातृभाषा दिवस के लिए इस दिन को चुना। साल 2022 के अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का विषय का थीम "बहुभाषी शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग: चुनौतियां और अवसर" रखा गया है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2022-2032 के दशक को स्वदेशी भाषाओं का अंतर्राष्ट्रीय दशक (International Decade of Indigenous Languages) के रूप में मनाया जाएगा।
बचपन में जिस भाषा से पहला परिचय होता है,जिस भाषाई परिवेश में हम रहते हैं, बढ़ते हैं वह भाषा मातृभाषा कहलाती है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व भर में बोली जाने वाली 6000 भाषाओं में से लगभग 2680 भाषाएं (43 प्रतिशत) समाप्तप्राय होती जा रही हैं। गायब होने की रफ्तार तीव्र है, तकरीबन हर महीने दो भाषा गायब हो जाती है, इस से क्षेत्रीय सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत नष्ट होने के कगार पर है। डिजिटल क्रांति में पिछड़ती छोटी भाषाएं अपना अस्तित्व नहीं बचा पा रही है। डिजिटल प्लेटफॉर्म में सौ से भी कम भाषाओं का उपयोग होता है।
वैश्विक स्तर पर छोटे छोटे देशों की मातृभाषाएं विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित हैं। वर्ल्ड डाटा इंफो के अनुसार भारत की राजभाषा होने के साथ-साथ हिन्दी सात देशों में मातृभाषा के रूप में प्रमुख स्थान रखती है। इनमें फिजी, न्यूजीलैंड, जमैका, सिंगापुर, ट्रिनिडाड टोबैगो, मॉरीशस आदि प्रमुख हैं। भारत में ''चार कोस पर बदले बानी'' तो है ही और यही विविधता इसकी पहचान भी है। पापुआ न्यू गिनी जैसा क्षेत्र उच्च भाषायी विविधता का उदाहरण है। यहां 3.9 मिलियन आबादी द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं की संख्या लगभग 832 है। ये भाषाएं 40 से 50 अलग-अलग भाषा परिवारों से सम्बन्ध रखते हैं। विश्व के तकरीबन 60 प्रतिशत लोग केवल 30 प्रमुख भाषाएं बोलते हैं।
भारत का बहुभाषी इतिहास भी खतरे में
भारत जैसे विशाल बहुभाषी देश में मातृभाषा के रूप में 19,569 भाषाएं या बोलियां बोली जाती हैं। 121 भाषाएं ऐसी हैं जो 10,000 या उससे अधिक लोगों द्वारा बोली जाती हैं, जिनकी आबादी 121 करोड़ है।
संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाएं भारत के 93.71 प्रतिशत लोगों की मातृभाषा है। भारत में 90 प्रतिशत भाषाएं बोलने वालों की संख्या एक लाख से कम है। 1365 मातृभाषाएं में से अधिकतर क्षेत्रीय भाषाएं हैं। भारत प्राचीन समय से बहुभाषी देश रहा है किंतु ये संस्कृति भी अब खतरे में है। भारत में 43 करोड़ हिंदी भाषी में केवल 12 फीसदी लोग द्विभाषी हैं, जबकि बांग्ला बोलने वाले 9.7 करोड़ लोगों में 18 फीसदी द्विभाषी हैं।
देश में राष्ट्रवाद का नाम पर लड़ाई करने वाले वर्ग को यह जान कर आश्चर्य होगा कि केवल 14 हजार लोगों की मातृभाषा संस्कृत है। अगर डिजिटल आंधी में हमने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से अब भी प्रयास नहीं किया तो शायद 22 अनुसूचित भाषा भी अपना अस्तित्व नहीं बचा पाएगी।
भारत का दुर्भाग्य है कि हमारे यहां लोग मातृभाषा में बात करने से कतराते हैं। कोई अगर अपनी मातृभाषा में बात करता है तो उसे गंवारु मान लिया जाता है, उसके कौशल को कम करके आंका जाता है। अंग्रेजी मानसिकता ने भाषा को सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है। अगर हम अपनी मातृभाषाओं को बढ़ावा नहीं देंगे तो भाषाई विविधता स्वयं ही समाप्त हो जाएगी।
शिक्षा के क्षेत्र की चुनौतियां
भारत जैसे देश में करोड़ों विद्यार्थियों की मातृभाषा और पढाई की भाषा समान नहीं होने के कारण शिक्षा अक्सर चुनौतीपूर्ण बन जाती है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति और सतत विकास लक्ष्य, दोनों का उद्देश्य सबके लिए उत्तम शिक्षा और आजीवन सीखने की सुविधा देना है। मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा से ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं एसडीजी को प्राप्त प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में दी जाए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह प्रावधान किया गया है। प्राथमिक शिक्षा के साथ, अदालत की कार्यवाही और उनसे जुड़े फैसलों में स्थानीय भाषाओं के उपयोग की भी आवश्यकता है। उच्च और तकनीकी शिक्षा में स्वदेशी भाषाओं के उपयोग में धीरे-धीरे बढ़ोतरी भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। मध्य प्रदेश सरकार ने जनवरी 2022 में राज्य में मेडिकल, इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी माध्यम से करवाने का भी फैसला लिया है।
इसके साथ ही हर किसी को अपने घरों में मातृ भाषा के उपयोग पर गर्व करना चाहिए और प्राथमिकता देनी चाहिए। मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में मातृभाषाओं में पढ़ाई की शुरुआत हो रही है। बहुभाषी समाज के लिए सरकार ने भी राष्ट्रीय अनुवाद मिशन, भारतवाणी परियोजना जैसी योजनाएं बनाई हैं। एक भारतीय भाषा विश्वविद्यालय और भारतीय अनुवाद और व्याख्या संस्थान की स्थापना भी सराहनीय कदम है।
मातृभाषा गौरव का परिचायक है। इस गौरव का भान तभी हो सकता है जब मातृभाषा में शिक्षा, संचार, नौकरी सुगम हो। भाषा का महत्व न सिर्फ राष्ट्रीय एकता में बल्कि देश की संस्कृति की मजबूती में निहित होता है। मातृभाषाएं हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान एवं हमारे सामूहिक ज्ञान और बुद्धिमत्ता का भंडार हैं। निरंतर उपयोग से ही भाषाएं समृद्ध होती हैं और हर दिन एक मातृभाषा दिवस होना चाहिए। एक दिन मनाने से भाषाओं को संरक्षित एवं जीवंत नहीं बनाया जा सकता है। घरों में बातचीत में शामिल कर ही इसे प्रशासन, तकनीकी क्षेत्रों तक पहुंचाया जा सकता है।
Next Story