सम्पादकीय

अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस 10 दिसंबर: भारतीय और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में मानवाधिकार

Gulabi
10 Dec 2021 10:34 AM GMT
अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस 10 दिसंबर: भारतीय और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में मानवाधिकार
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अधिकारों की श्रृंखला में मानवाधिकार को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है
अधिकारों की श्रृंखला में मानवाधिकार को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार मानवाधिकार वे अधिकार हैं जो हमारे पास केवल इसलिए हैं, क्योंकि हम मानव है वे किसी भी राज्य द्वारा प्रदान नहीं किए गए हैं। राष्ट्रीयता, लिंग, जातीय मूल, रंग, धर्म, भाषा, या किसी अन्य के कारण भेदभाव किए बिना, ये सार्वभौमिक अधिकार हम सभी के लिए प्रकृति प्रदत्त हैं। सैद्धांतिक तौर पर इन अधिकारों का अतिक्रमण,विश्व के किसी भी देश या किसी भी सरकार के द्वारा नहीं किया किया जाना चाहिए । यह भ्रांत धारणा है कि मानवाधिकार की अवधारणा का सूत्रपात द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पश्चिमी देशों के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र के अस्तित्व में आने के बाद हुआ। इस धारणा को स्वीकृति देना प्राचीन आदिम सभ्यता के महान सभ्यताओं में उसकी उपस्थिति को नकारना होगा।
एशिया विशेषतः भारत, अफ्रीका सहित विश्व के अन्य भागों में भी मानवाधिकार सिद्धांत रहे हैं इसलिए सिर्फ इसे पश्चिमी सिद्धांत मानना उचित नहीं है। ऋग्वेद में 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' की ऋचा प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मानवाधिकार की उपस्थिति को दर्शाती है।
भारतीय संस्कृति के आचार-विचार में सदियों से बीमार, लाचार, वृद्ध माता-पिता की देखभाल, अतिथिदेवो भवः आदि हमारी सभ्यता के हिस्से रहे हैं जो पश्चिमी देशों में कम ही पाया जाता है। हां, ये माना जा सकता है कि भारतीय और पश्चिमी परिवेश का अंतर मानवाधिकार के मानकों में फर्क ला सकते हैं।
कहने का अर्थ यह है कि मानव अधिकार सिद्धांत की संकल्पना सदियों पुरानी प्राचीन काल से चली आ रही है किन्तु व्यवहारिक दृष्टि से इसका प्रारंभ द्वितीय विश्व युद्ध के भयंकर परिणाम के बाद हुआ जब अंतर्राष्ट्रीय शांति स्थापित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसंबर 1948 को मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को अंगीकृत किया।
वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के लिए चेतना जागृत करने में इस घोषणा का महत्वपूर्ण योगदान है। इसके पश्चात 1966 की अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदाएं, यूरोपीय कन्वेंशंस,सिंगापुर घोषणा पत्र ,संयुक्त राष्ट्र चार्ट में निहित घोषणाएं, जैसे विधानों ने इस सिद्धांत को और पुष्ट किया इन दस्तावेजों में अधिकार के साथ साथ कर्तव्यों की भी चर्चा हुई है जिसमें अधिकार के साथ मनुष्य का उस समुदाय के प्रति कर्तव्य है जिसमें उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का उन्मुक्त विकास हो सके।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में संयुक्त राष्ट्र महासभा से चुने 47 सदस्य देश जिसमें अफ्रीका से 13, एशिया पैसिफिक क्षेत्र से 13, दक्षिण अमेरिका-8, कैरिबियाई देशों - 8 , पश्चिमी यूरोप-7 और पूर्वी यूरोप से 6 सदस्यों का चुनाव किया जाता है। वर्ष 2006 से मानवाधिकार परिषद संयुक्त राष्ट्र का सर्वोच्च निकाय है जो विश्वभर में मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए काम करता है। इससे पूर्व संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग इस काम को करता था। स्विट्जरलैंड के जिनेवा में स्थित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के 2022-24 कार्यकाल के लिए छठवीं बार भारत को फिर से निर्वाचित किया गया।
हाल के कुछ वर्षों में भारत में मानवधिकार की परिभाषा पर जुबानी जंग छिड़ी हुई है। भारत सरकार के मंच से आधिकारिक रूप से मानवाधिकार पर वैश्विक खास कर पश्चिमी नजरिए को खुली चुनौती मिली है, कहा जा रहा है कि भारतीय सन्दर्भों के मानव अधिकार को अंतर्राष्ट्रीय चश्मे से नहीं देखा जा सकता। 12 अक्टूबर 2019 को 26वें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग स्थापना दिवस पर बोलते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि भारत के संदर्भ में मानवाधिकार का पैमाना पश्चिमी देश नहीं हो सकते हैं।
मानवाधिकारों के मानकों को भारतीय मुद्दों पर आंख बंद करके लागू नहीं किया जा सकता है। उन्होंने सरकार द्वारा नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार के प्रयासों जैसे औरतों के लिए शौचालय, खाना पकाने का सुरक्षित तरीका गैस चूल्हा आदि को मानवाधिकार का मुद्दा मानना की वकालत की।
कोरोना काल के बाद हुए 28वें स्थापना दिवस समारोह में 12 अक्टूबर 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हाल के वर्षों में मानवाधिकार की व्याख्या कुछ लोग अपने-अपने तरीके से, अपने-अपने हितों को देखकर करने लगे हैं। चयनित तरीके से आचरण करते हुए कुछ लोग मानव अधिकारों के हनन के नाम पर देश की छवि को भी नुकसान पहुंचाने का प्रयास करते हैं और ऐसे लोगों से देश को सतर्क रहना है।
आजादी के बाद स्वतंत्र और निष्पक्ष न्याय प्रणाली, सक्रिय मीडिया, सक्रिय नागरिक समाज और एनएचआरसी जैसे संगठन मानवाधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए हैं। न्याय प्रणाली तक पहुंच आसान बनाने के लिए ई-अदालतों की संख्या में बढ़ोतरी और राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड को मजबूत बनाने जैसे कदमों को भी मानवाधिकार के रूप से देखने की जरुरत है।
स्मरण रहे कि वर्ष 2018 में भारत के मानवाधिकार आयोग के 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार आयोग ने ये दावा किया कि 25 वर्ष (1993-2018 तक) 17 लाख से अधिक मामलों का निपटारा, मानवाधिकार उल्लंघन के पीड़ितों को 100 करोड़ रुपये से अधिक का मुआवजा दिया गया। मानव अधिकारों के उल्लंघन की शिकायत पर 750 से अधिक स्थान पर आयोग की जाँच टीम भेजी, पूरे देश में मानवाधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 200 से अधिक सम्मेलन किये गए।
मानवाधिकार के लिए काम करने वाले स्वतंत्र संगठन के नजरिये सें मानवाधिकार आयोग के रिपोर्ट या काम करने के तरीके को देखें तो अधिकांश मामलों में केस को सम्बंधित कार्यालय भेजने अथवा पुलिस से रिपोर्ट मांगने तक सीमित है जो मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों के प्रति सही रुख नहीं है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में 25 वर्ष के वार्षिक रिपोर्ट के अवलोकन से यह भी पता चलता है कि हिरासत में 31 हजार से अधिक मौतें दर्ज हुई हैं। ये भारतीय या पश्चिमी देशों के मानवाधिकार के नजरिये का फर्क का मसला नहीं है यह आज़ाद मुल्क़ के आज़ाद नागरिक का पहला अधिकार है।
मानवाधिकार का मुद्दा अपनी डफली अपना राग का नहीं है। इसकी व्याख्या अपने हितों या अपने तरीके से नहीं की जा सकती। मानवाधिकार शाश्वत मूल्य हैं। इसे व्यक्तिगत हित साधन में उपयोग में लाना वैश्विक और भारतीय दोनों ही दृष्टि से उपयुक्त नहीं है।
आदर्श वैश्विक मानक के रूप में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार सार्वभौमिक घोषणा पत्र (कुल 30 अनुच्छेद) जिसमें समता का अद्भुत सामंजस्य स्थापित किया गया है, को लक्ष्य माना जा सकता है। इसमें नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के साथ साथ आर्थिक और सामाजिक अधिकारों को भी लिया गया है।
भारतीय संविधान के भाग 3 में मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है और राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख भाग 4 में किया गया है। संभवतः संसार के किसी भी संविधान में मूल अधिकारों का इतना व्यापक और विशद वर्णन नहीं किया गया है। प्राचीन ग्रंथों से लेकर सम्राटों और बादशाहों ने मानवाधिकारों को किसी न किसी रूप में अपनाया। सम्राट अशोक की समानाधिकारवादी, सार्वभौमिक सहनशीलता की सोच हो या बादशाह अकबर की सर्वधर्म समभाव एवं स्वतंत्रता का विचार। भारतीय समाज और राजनीति हमेशा से मानवाधिकारों के हर रूप का समर्थक रही है।
पहली बार 10 दिसंबर 1948 को यू एन द्वारा मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी कर व्यक्ति के अधिकारों का मुद्दा उठाया गया था, इसलिए इस दिवस को हर वर्ष मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।इस वर्ष का थीम "एकता, सामाजिक-आर्थिक नवीनीकरण और राष्ट्र निर्माण का वर्ष" है मानवाधिकार पर भारतीय और वैश्विक परिप्रेक्ष्य के अंतर को पाटने की कुंजी है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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