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- असर-बेअसर के बीच...
दिल्ली के दर पर डटे किसानों का आंदोलन चौथे महीने में प्रवेश कर रहा है। सरकार से उनकी बातचीत टूटे भी एक महीना बीत चुका है। वे जब आए थे, तब सर्दियां शुरू हो रही थीं, अब गरमी दस्तक दे रही है। मौसम बदल गया, पर हालात नहीं। यह 'डेडलॉक' कब तक चलेगा? क्या इसीलिए किसान 'भारत बंद' और 'रेल रोको आंदोलन' के जरिए दिल्ली के सत्ता-सदन पर दबाव बढ़ाना चाहते थे, ताकि रुकी हुई गाड़ी आगे बढ़ सके? हालांकि, अखिल भारतीय स्तर पर न 'भारत बंद' सफल हो सका और न 'रेल रोको आंदोलन'। क्या इससे दोबारा साबित नहीं हुआ कि यह संघर्ष महज कुछ उत्तर भारतीय प्रदेशों के किसानों का है? यह ठीक है कि तमिलनाडु, तेलंगाना और महाराष्ट्र के भूमिपुत्रों में भी इसी तरह का आक्रोश है, पर वे अभी तक सड़कों पर नहीं उतरे हैं। उधर, गाजीपुर, सिंघु और टिकरी सीमाओं पर भी भीड़ पहले के मुकाबले कम हो चली है। क्या इससे यह ध्वनि नहीं निकलती कि तीन महीने पुराना अहिंसक और अनूठा आंदोलन अपनी आब खो रहा है? इस निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी।