सम्पादकीय

स्टूडेंट्स की जगी रूचि

Triveni
31 July 2021 2:29 AM GMT
स्टूडेंट्स की जगी रूचि
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विदेशी स्टूडेंट्स को भारत आकर पढ़ाई करने को प्रोत्साहित करने के लिए शुरू की गई योजना एसआईआई (स्टडी इन इंडिया) में इस साल बढ़ी हुई भागीदारी उत्साहवर्धक है।

विदेशी स्टूडेंट्स को भारत आकर पढ़ाई करने को प्रोत्साहित करने के लिए शुरू की गई योजना एसआईआई (स्टडी इन इंडिया) में इस साल बढ़ी हुई भागीदारी उत्साहवर्धक है। चार साल पहले यानी 2018-19 में शुरू की गई इस योजना में विदेशी स्टूडेंट्स को भारत में रहकर शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कॉलरशिप देने का प्रावधान है। आंकड़े बताते हैं कि जहां पिछले साल इसके लिए 20659 आवेदन आए थे, वहीं इस साल 50,739 आवेदन आए। यानी करीब 146 फीसदी की बढ़ोतरी। यही नहीं आवेदन करने के बाद ऑनलाइन टेस्ट में शामिल होने वाले स्टूडेंट्स में भी इस बार पिछले साल के मुताबिक 23.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

योजना का नाम इस बार बदलकर प्रगति (परफॉरमेंस रेटिंग ऑफ ऐप्लिकेंट्स थ्रू ग्लोबल ऐप्टिट्यूड टेस्ट फॉर इंडियन इंस्टिट्यूट्स) जरूर किया गया है, लेकिन इसकी इस कामयाबी का श्रेय नए नामकरण को नहीं दिया जा सकता। इसके पीछे उन खास बदलावों की भूमिका है, जो विदेशी स्टूडेंट्स की जरूरत और उनकी मानसिकता को समझते हुए इस योजना में किए गए हैं। पहले इस योजना में उन्हीं संस्थानों को शामिल किया गया था, जिन्हें एनएएसी (नैशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल) से 3.26 ग्रेड और एनआईआरएफ की 100 रैंकिंग हासिल हो। यह ऐकडेमिक रैंकिंग है, लेकिन विदेशों से आने वाले स्टूडेंट्स की इकलौती चिंता रैंकिंग की नहीं होती। उन्हें हॉस्टल, ट्रांसपोर्ट, सुरक्षा आदि की सहूलियतें भी देखनी होती हैं।
इसलिए इस बार इस योजना में रैंकिंग के साथ-साथ स्टूडेंट्स की पसंद को भी शामिल किया गया और नतीजा सामने है। यह बताता है कि किसी भी योजना की कामयाबी के लिए उन लोगों की स्थिति, सोच और जरूरत को ध्यान में रखा जाना सबसे जरूरी होता है, जिनके लिए वह योजना लाई गई हो। बहरहाल, इस खास योजना की कामयाबी और उसमें निहित संदेश की अहमियत स्वीकार करते हुए भी यह मानना पड़ेगा कि भारत को विदेशी स्टूडेंट्स के लिए हायर एजुकेशन हब बनाने का हमारा लक्ष्य अभी बहुत दूर है। भारत आकर पढ़ाई करने वाले कुल विदेशी स्टूडेंट्स की संख्या उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक 2019-20 में 49,348 थी, जो 2018-19 के 47,427 से कुछ ही ज्यादा थी। इस साल उसमें कितनी बढ़ोतरी होती है यह देखना पड़ेगा, लेकिन जो भी बढ़ोतरी हो इसे दो लाख स्टूडेंट तक पहुंचाने का लक्ष्य अभी काफी दूर है।
हालांकि 168 देशों के स्टूडेंट्स यहां पढ़ने आते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा हिस्सा (करीब 45 फीसदी) अब भी पड़ोसी देशों- नेपाल, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और भूटान- से आने वाले स्टूडेंट्स का ही है। जाहिर है भारत को विदेशी स्टूडेंट्स का पसंदीदा डेस्टिनेशन बनाने के लिए के लिए स्कॉलरशिप स्कीम ही काफी नहीं है। सेशन और सिलेबस से लेकर फैकल्टी और इन्फ्रास्ट्रक्चर तक कई स्तरों पर काम करना पड़ेगा। अच्छी बात यह है कि नैशनल एजुकेशन पॉलिसी के जरिए इस दिशा में कुछ अहम सुधार प्रस्तावित किए गए हैं लेकिन उन पर अमल कैसा और कितना हो पाता है यह देखने के लिए इंतजार करना होगा।


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