सम्पादकीय

अंतर धार्मिक विवाह सामाजिक दूरियों को पाटने और बेहतर समाज बनाने का करते हैं काम

Gulabi
21 Nov 2020 9:35 AM GMT
अंतर धार्मिक विवाह सामाजिक दूरियों को पाटने और बेहतर समाज बनाने का करते हैं काम
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मध्य प्रदेश के बाद उत्तर प्रदेश में भी कथित लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने की तैयारी ने इस मामले में पहले से जारी बहस को और तेज करने का काम किया है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मध्य प्रदेश के बाद उत्तर प्रदेश में भी कथित लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने की तैयारी ने इस मामले में पहले से जारी बहस को और तेज करने का काम किया है। जहां कुछ और राज्य ऐसे ही कानून बनाने की बात कर रहे हैं वहीं कई राजनीतिक दल इस तरह की कवायद को अनुचित बताते हुए उसे प्यार पर पहरे का नाम दे रहे हैं। नि:संदेह बालिगों के अंतर धार्मिक विवाह पर कोई रोक-टोक नहीं होनी चाहिए। ऐसे विवाह सामाजिक दूरियों को पाटने और बेहतर समाज बनाने का काम करते हैं, लेकिन तभी जब विवाह छल-कपट के जरिये और खासकर पहचान छिपाकर न किया जाए। यह भी नहीं होना चाहिए कि विवाह के बाद युवक या युवती को अपना धर्म बदलने के लिए विवश होना पड़े। जब किसी युवक-युवती को ऐसा करने के लिए बाध्य होना पड़ता है तो फिर उस विवाह को अंतर धार्मिक विवाह नहीं कहा जा सकता। ऐसा विवाह तो अंतर धार्मिक विवाह की मूल भावना के ही खिलाफ है।

यह हकीकत है कि तमाम अंतर धार्मिक विवाहों के मामले में यह सामने आता है कि युवती को युवक के धर्म को स्वीकार करना पड़ता है। कई मामलों में तो इसके बगैर विवाह ही नहीं हो पाता। चूंकि ऐसा आम तौर पर हिंदू, ईसाई युवतियों की ओर से मुस्लिम युवकों से विवाह के मामले में होता है, इसलिए इन दोनों समाजों के संगठन आपत्ति जताते चले आ रहे हैं। इस आपत्ति को निराधार अथवा कोरी कल्पना बताना वस्तुस्थिति से मुंह मोड़ना है। यह एक तथ्य है कि अभी हाल में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने साफ तौर पर कहा कि सिर्फ विवाह करने के उद्देश्य से किया गया धर्म परिवर्तन स्वीकार्य नहीं। आखिर ऐसे किसी विवाह को प्रेम विवाह कैसे कहा जा सकता है, जिसमें धर्म बदलना अनिवार्य शर्त हो?

चूंकि सभी मामलों में ऐसा नहीं होता, इसलिए हर मामले को एक ही तराजू में भी नहीं तौला जा सकता, लेकिन यदि कहीं कोई विसंगति है तो उसे दूर किया जाना चाहिए, ताकि अंतर धार्मिक विवाहों की गरिमा बनी रहे। यह गरिमा बनाने का काम अलग-अलग धर्म वाले कई युगलों ने किया भी है। ऐसे युगल विवाह बाद न केवल अपना-अपना धर्म बनाए रखते हैं, बल्कि अपने बच्चों को इसकी स्वतंत्रता भी प्रदान करते हैं कि वे जिस धर्म का चाहें, अनुसरण करें। यही आदर्श स्थिति है और इसे कायम करने के लिए, जो कुछ जरूरी हो, वह किया जाना चाहिए। जब विशेष विवाह अधिनियम अलग-अलग धर्मों को मानने वाले युगल को अपनी-अपनी धार्मिक आस्थाओं को बनाए रखते हुए विवाह की अनुमति देता है तो फिर विभिन्न मामलों में आस्था बदलने का काम क्यों हो रहा है?

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