सम्पादकीय

बीमे का बोझ

Subhi
13 Aug 2022 5:36 AM GMT
बीमे का बोझ
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कैग के लेखा परीक्षण में जानकारी दी गई है कि सरकारी बीमा कंपनियों को स्वास्थ्य बीमा कारोबार में भारी घाटा हो रहा है। इसके लिए इसकी प्रीमियम दर बढ़ाने का सुझाव दिया गया।

Written by जनसत्ता: कैग के लेखा परीक्षण में जानकारी दी गई है कि सरकारी बीमा कंपनियों को स्वास्थ्य बीमा कारोबार में भारी घाटा हो रहा है। इसके लिए इसकी प्रीमियम दर बढ़ाने का सुझाव दिया गया। जबकि प्रीमियम दर बढ़ाना सरासर अनुचित होगा। हमारे यहां स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम दर पहले ही बहुत अधिक है और कई स्थितियों में सामान्य व्यक्ति की पहुंच के बाहर है।

स्वास्थ्य बीमा पालिसी में आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है। अभी बीमा दावा के लिए तृतीय पक्ष नियुक्त है, जिन्हें कंपनी प्रीमियम का छह फीसद भुगतान करती है। जबकि कंपनी के पास उचित संख्या में स्थायी कर्मचारी नियुक्त हैं। कर्मचारियों का वेतन एवं तृतीय पक्ष के खर्च का दोहरा भार है।

प्रीमियम अधिक होने से भी पालिसी विक्रय कम होता है। इसलिए लाभ भी कम होता है। दर कम होने से पालिसी का ज्यादा विक्रय होगा और लाभ भी बढ़ेगा। कुछ जगहों पर अस्पतालों व तृतीय पक्ष की मिलीभगत से दावा भुगतान में भ्रष्टाचार होने की खबरें भी मिलती है। मेडिक्लेम बीमा होने पर अस्पताल में दर एकदम बढ़ा दी जाती है।

क्लेम की सूचना मिलने पर सक्षम अधिकारी को तुरंत अस्पताल जाकर जांच करना चाहिए। इससे फर्जी क्लेम पर अंकुश लगेगा। प्रीमियम दर बढ़ाने के बजाय तृतीय पक्ष खत्म करना चाहिए। फर्जी क्लेमों को रोकना चाहिए एवं पालिसी का विक्रय बढ़ाकर घाटा कम किया जा सकता है। सही प्रचार-प्रसार की भी आवश्यकता है। कई जन सामान्य को पालिसी की जानकारी भी नहीं है।


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