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- 'नमक' पर अपमान
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By: divyahimachal
राष्ट्रपति के प्रत्यक्ष अपमान को 'दंडनीय' बना देना चाहिए। राष्ट्रपति का अपमान 'व्यक्तिगत' नहीं है, देश और संविधान का भी अपमान है, क्योंकि राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च, संवैधानिक पद है। यदि उसे किसी भी तरह अपमानित किया जाता है, तो निश्चित तौर पर भारत अपमानित होता है। राष्ट्रपति हमारे देश का प्रथम चेहरा भी हैं। उस पद पर लिंग, नस्ल, जाति आदि बेमानी हैं। कांग्रेस के दलित नेता उदित राज ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के संदर्भ में 'चमचागीरी' जैसे शब्द इस्तेमाल किए हैं और यहां तक टिप्पणी की है-'ऐसा राष्ट्रपति किसी भी देश को न मिले।…खुद नमक खाकर जि़ंदगी जिएं, तो पता चलेगा।' उदित से पहले अधीर रंजन चौधरी और अजॉय कुमार सरीखे कांग्रेस नेताओं ने भी राष्ट्रपति मुर्मू पर भद्दे और आपत्तिजनक बयान दिए थे। यह कांग्रेस की पुरानी आदत है कि जब उसके नेताओं की जुबान फिसलती है और वे कुछ अनर्गल बोल देते हैं, तो पार्टी अपना पिंड छुड़ा लेती है और बयान को 'निजी' करार दे दिया जाता है। क्या राष्ट्रपति पर कीचड़ उछालना और 'चमचागीरी' जैसे शब्दों का प्रयोग करना भी 'निजी' हो सकता है? राष्ट्रपति किसकी 'चमचागीरी' कर रही हैं, यह कथन ही निंदनीय और शर्मनाक है। वह चुनाव लडक़र और भारी मतों से जीत हासिल कर राष्ट्रपति पद पर आसीन हुई हैं। किसी की 'चमचागीरी' से मनोनीत नहीं हुई हैं। यदि उदित का संकेत प्रधानमंत्री मोदी की तरफ है, तो यह उनकी सियासी कुंठा है। लोकतंत्र में कोई न कोई, किसी प्रत्याशी का नाम प्रस्तावित करता ही है।
राष्ट्रपति चुने जाने के बाद द्रौपदी मुर्मू की क्या मजबूरी हो सकती है कि वह 'चमचागीरी' करें? बहरहाल ऐसे अपमान पर उदित राज की माफी ही पर्याप्त नहीं होगी, बल्कि उन्हें कानूनन दंडित किया जाना चाहिए। रास्ता खुद भारत सरकार और उसके विधि विशेषज्ञ निकालें कि उदित को किस तरह सबक सिखाया जा सकता है। उनकी जुबान और भाषा अक्सर फिसलती रही है। उन्होंने प्रधानमंत्री पर भी अशोभनीय टिप्पणियां की हैं। सवाल दलित और आदिवासी का नहीं है। दरअसल राष्ट्रपति ने गुजरात प्रवास के दौरान सिर्फ इतना कहा था-'गुजरात में देश का 76 फीसदी नमक बनाया जाता है। कहा जा सकता है कि देशवासी गुजरात का नमक खाते हैं।' राष्ट्रपति का यह बयान तथ्यात्मक और अविधा में है। उसके भावार्थ और लक्षणार्थ नहीं निकालने चाहिए। 'नमक खाना' एक मुहावरा भी है और उससे एक राष्ट्रीय आंदोलन, सत्याग्रह भी जुड़ा रहा है, लेकिन उदित का बयान सीधा-सपाट है और उसमें नफरत की गंध भी है। द्रौपदी मुर्मू किस आदिवासी पृष्ठभूमि से आती हैं और किन परिस्थितियों में उन्होंने खुद को एक 'राजनेता' के तौर पर स्थापित किया है, शायद उदित राज नहीं जानते! वह तो दलित नेता भी आधे-अधूरे हैं, लिहाजा उनकी राजनीतिक, वैचारिक स्वीकार्यता भी बेहद सीमित है। आपत्तिजनक व्यवहार के बावजूद वह जिद और अहं पर अड़े हैं कि वह दलित हैं, लिहाजा आदिवासी राष्ट्रपति से सवाल कर सकते हैं। यह कौन-सा विशेषाधिकार है? राष्ट्रपति मुर्मू गुजरात के औद्योगिक विकास पर बोल रही थीं। कल वह किसी अन्य राज्य में जाएंगी, तो उसकी खासियत और प्रगति पर बोल सकती हैं। वह राष्ट्रपति हैं, लिहाजा भारत उनका है।
उस नाते वह राज्यों के प्रवास करते हुए उनकी विशेषता पर वक्तव्य दे सकती हैं। उसमें क्या गलत है और कौन उन्हें ऐसा करने से रोक सकता है? ऐसा करते हुए वह किस-किस की 'चमचागीरी' करेंगी, क्या उदित उसका विश्लेषण पेश कर सकते हैं? आदिवासियों की देश में करीब 20 करोड़ आबादी है। गुजरात में उनके 14.75 फीसदी वोटर हैं और 26 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। हिमाचल में भी जनजाति के करीब 6 फीसदी मतदाता हैं। इन दोनों ही राज्यों में निकट भविष्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। यदि कांग्रेस ने उदित पर कोई टिप्पणी नहीं की या उन पर कोई कार्रवाई नहीं की, तो इन राज्यों में पार्टी को चुनावी नुकसान हो सकता है। भाजपा इस मुद्दे को खूब हवा देगी। अनुसूचित जनजाति के नाम 12 केंद्रीय योजनाएं हैं। भारत सरकार की नौकरियों में उसकी हिस्सेदारी 6.72 फीसदी की है। साक्षरता दर 47 फीसदी से बढक़र 70 फीसदी तक पहुंच चुकी है। बहरहाल, राष्ट्रपति का अपमान नहीं होना चाहिए।
Rani Sahu
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