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- जिम्मेदारी के बजाय
इसमें कोई दो राय नहीं कि देश भर में फैली महामारी के संकट के बीच केंद्र सरकार ने अपनी ओर से हालात पर काबू पाने के लिए यथासंभव कोशिश की है। लेकिन यह भी सच है कि घोषणा के बरक्स कुछ फैसलों पर अमल को लेकर जिस तरह की लापरवाही देखी गई, उसने समस्या को और बढ़ाया। इस महामारी से निपटने के क्रम में मौजूदा सीमाओं के तहत टीकाकरण को एक अहम उपाय के तौर पर देखा जा रहा है। शुरू में दो कंपनियों के टीकों के सहारे टीकाकरण अभियान की शुरुआत हुई, तब ऐसा लगा कि अब देश कोराना की वजह से उपजे संकट से पार पाने की दिशा में आगे बढ़ चुका है। अब तक टीके की सत्रह करोड़ से ज्यादा खुराक दी जा चुकी है। अभी इस दिशा में बहुत लंबा सफर तय करना बाकी है। लेकिन सच यह है कि अभी ही टीकाकरण अभियान की रफ्तार बेहद धीमी हो गई है। इसकी वजह टीकों की कमी है। सवाल है कि अगर टीके को इस बीमारी का एकमात्र इलाज बताया गया था तो जिस रास्ते यह मुहैया हो सकता था, उसे सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी किसकी थी?