सम्पादकीय

जर्जर स्वास्थ्य ढांचे को सुधारने के बजाय मुफ्त टीकाकरण लोक-लुभावन कदम हो सकता है, लेकिन सुविचारित नहीं

Triveni
27 April 2021 1:19 AM GMT
जर्जर स्वास्थ्य ढांचे को सुधारने के बजाय मुफ्त टीकाकरण लोक-लुभावन कदम हो सकता है, लेकिन सुविचारित नहीं
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टीकाकरण के अगले चरण का समय जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है,

भूपेंद्र सिंह| टीकाकरण के अगले चरण का समय जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है, वैसे-वैसे विभिन्न राज्यों की ओर से मुफ्त टीका लगाने की घोषणाएं की जा रही हैं। यदि इन घोषणाओं का मतलब सभी पात्र लोगों का मुफ्त टीकाकरण है तो इसका औचित्य समझना कठिन है। एक मई से 18 वर्ष से अधिक आयु वालों को टीके लगने हैं। अभी 45 साल से अधिक उम्र वालों को टीके लग रहे हैं। चूंकि 18-45 आयु वर्ग के लोगों की आबादी कहीं अधिक है, इसलिए मुफ्त टीका लगाने में बड़ी धनराशि खर्च होगी। एक ऐसे समय जब देश के जर्जर स्वास्थ्य ढांचे की पोल खुल चुकी है, तब यह विचित्र ही नहीं, अस्वाभाविक भी है कि उसे सुधारने में पैसा खर्च करने के बजाय मुफ्त टीकाकरण की ओर कदम बढ़ाए जा रहे हैं। यह एक लोक-लुभावन कदम हो सकता है, लेकिन सुविचारित नहीं, क्योंकि मुफ्त टीकाकरण तो उन्हीं का किया जाना चाहिए, जो निर्धन हैं और जिनके लिए चार-छह सौ रुपये टीके पर खर्च करना कठिन होगा। आखिर राज्य सरकारें ऐसी कोई नीति क्यों नहीं बना सकतीं कि गरीब तबके को तो मुफ्त टीका लगे, लेकिन जो समर्थ हैं, उनसे उसका मूल्य चुकाने को कहा जाए? सक्षम तबका ऐसा खुशी-खुशी करने को तैयार होगा, क्योंकि उसके मन में कहीं न कहीं यह भाव होगा कि वह अपने को कोरोना संक्रमण से सुरक्षित करने के साथ ही शासन की मदद भी कर रहा है। नि:संदेह यह मदद होगी भी, क्योंकि टीके मुफ्त नहीं मिल रहे हैं।

कम से कम समाज के सक्षम वर्ग से तो टीके की लागत ली ही जानी चाहिए। बेहतर हो कि राज्य सरकारें सभी को मुफ्त टीका लगाने की अपनी नीति पर फिर से विचार करें और उन राजनीतिक दलों के फेर में न पड़ें, जो क्षणिक सहानुभूति हासिल करने अथवा जनता एवं मीडिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए सभी का टीकाकरण मुफ्त में करने की मांग कर रही हैं। यह मांग उस समाजवादी सोच की उपज है, जिसने देश और खासकर उसके स्वास्थ्य ढांचे का बेड़ा गर्क किया है। इन दिनों तो यह ढांचा पूरी तरह बेनकाब हो गया है। स्थिति यह है कि जहां प्राथमिक या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र किराये के भवनों में चल रहे हैं, वहीं बड़े सरकारी अस्पतालों में भी ऑक्सीजन प्लांट नहीं हैं। यह भी स्वास्थ्य ढांचे की दयनीय दशा का ही परिणाम है कि संक्रमण की जांच के लिए हर जगह लंबी कतारें हैं और जांच रपट मिलने में भी चार-चार दिन लग रहे हैं। जरूरत इस सबको ठीक करने की है, न कि जो पैसे देकर टीका लगवाने को तैयार हैं, उनका भी मुफ्त टीकाकरण कराने की घोषणा कर वाहवाही लूटने की।


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