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सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने असहमतियों के दमन के संदर्भ में जो टिप्पणी की है, वह न सिर्फ लोकतंत्र की बुनियाद मजबूत करने वाली है, बल्कि एक सभ्य और सहिष्णु समाज के निर्माण के लिहाज से भी जरूरी है। भारत-अमेरिका कानूनी संबंधों पर साझा ग्रीष्मकालीन सम्मेलन को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा है कि नागरिक असहमतियों को दबाने के लिए आतंकवाद विरोधी कानूनों या आपराधिक अधिनियमों का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए। निस्संदेह, असहमति लोकतंत्र की आधारभूत विशेषता है और इस शासन प्रणाली के आदर्श रूप में इसकी काफी अहम भूमिका है। लेकिन दुर्योग से सत्ताधारी पार्टियां लोकतंत्र की इस बुनियादी खूबी को ही नकारने लगती हैं और अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज ही उन्हें नागवार गुजरती है। हाल के वर्षों में जिस पैमाने पर भारत में राजद्रोह कानून का दुरुपयोग हुआ है, वही इस बात की तस्दीक कर देता है। अभी पिछले महीने ही एक वरिष्ठ पत्रकार के खिलाफ दायर राजद्रोह के मुकदमे को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के दुरुपयोग पर अपनी नाखुशी जाहिर की थी।
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