सम्पादकीय

असहमतियों की जगह

Triveni
14 July 2021 3:22 AM GMT
असहमतियों की जगह
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सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने असहमतियों के दमन के संदर्भ में जो टिप्पणी की है,

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने असहमतियों के दमन के संदर्भ में जो टिप्पणी की है, वह न सिर्फ लोकतंत्र की बुनियाद मजबूत करने वाली है, बल्कि एक सभ्य और सहिष्णु समाज के निर्माण के लिहाज से भी जरूरी है। भारत-अमेरिका कानूनी संबंधों पर साझा ग्रीष्मकालीन सम्मेलन को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा है कि नागरिक असहमतियों को दबाने के लिए आतंकवाद विरोधी कानूनों या आपराधिक अधिनियमों का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए। निस्संदेह, असहमति लोकतंत्र की आधारभूत विशेषता है और इस शासन प्रणाली के आदर्श रूप में इसकी काफी अहम भूमिका है। लेकिन दुर्योग से सत्ताधारी पार्टियां लोकतंत्र की इस बुनियादी खूबी को ही नकारने लगती हैं और अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज ही उन्हें नागवार गुजरती है। हाल के वर्षों में जिस पैमाने पर भारत में राजद्रोह कानून का दुरुपयोग हुआ है, वही इस बात की तस्दीक कर देता है। अभी पिछले महीने ही एक वरिष्ठ पत्रकार के खिलाफ दायर राजद्रोह के मुकदमे को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के दुरुपयोग पर अपनी नाखुशी जाहिर की थी।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने एक और महत्वपूर्ण बात कही है कि हमारी अदालतों को सुनिश्चित करना चाहिए कि नागरिकों की आजादी की रक्षा के लिए वे पहली कतार में खड़ी हों। जाहिर है, किसी भी लोकतांत्रिक देश में लोग इंसाफ की आखिरी गुहार अदालत से ही लगाते हैं। विडंबना यह है कि भारत में सबसे अधिक विश्वसनीयता रखने वाली अदालतों का दरवाजा खटखटाने से पहले आम नागरिक अनेक बार सोचता है। मुकदमों के बोझ तले दबी न्यायपालिका में उसकी अरजी की सुनवाई कब होगी, यह आशंका तो उसके हौसले पस्त करती ही है, ऊंची अदालतों में मुकदमा लड़ने का खर्च भी उसे हतोत्साहित करता है। इसलिए न्यायपालिका को ही ऐसे इंतजाम करने पड़ेंगे कि उत्पीड़ित लोगों को त्वरित न्याय मिले।
कानून का राज कायम करने के लिए यह बहुत जरूरी है कि इसे लागू करने वाली एजेंसियां पेशेवर पारदर्शिता बरतें। अमेरिकी तंत्र की ताजा नजीर सामने है। तमाम नस्लवादी आग्रहों-दुराग्रहों के बावजूद अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड के हत्यारे श्वेत पुलिसकर्मी को तंत्र ने एक साल के भीतर अदालत से सजा दिला दिया। इसके विपरीत भारत में अभी चंद रोज पहले खुद आला अदालत इस बात से हैरान थी कि जिस कानून को वह छह वर्ष पहले निरस्त कर चुकी है, उसके तहत भी लोगों पर मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं! दुर्योग से आईटी ऐक्ट की उस धारा के खिलाफ भी यही आरोप था कि असहमतियों के दमन के लिए इसका बेजा इस्तेमाल हो रहा है। ऐसी स्थितियां हमारे तंत्र के भीतर समन्वय की कमी और प्रशासनिक सुधारों के प्रति लगातार उदासीनता से उपजती हैं। औपनिवेशिक युग में शुरू जिस राजद्रोह कानून को ब्रिटेन ने अपने यहां हटा लिया, हम आज भी उसे ढो रहे हैं, क्योंकि सरकारें इसे अपने विरोधियों से निपटने के कारगर हथियार के तौर पर देखती रही हैं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने उचित ही कहा है कि अमेरिका की तरह ही भारतीय संविधान भी मानव अधिकारों में गहरी आस्था रखता है। इस विशाल लोकतंत्र की प्रतिष्ठा पूर्ण नागरिक स्वतंत्रता और त्वरित इंसाफ से ही सुर्खरू होगी, बदले की कार्रवाई या असहमतों के उत्पीड़न से नहीं।


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