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सम्पादकीय
'राष्ट्रभाषा' हिंदी के विरोधी सियासत की बजाय तथ्यगत और तार्किक बहस करें
Gulabi Jagat
14 April 2022 10:28 AM GMT
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केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसदीय राजभाषा समिति की बैठक में कहा था कि
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसदीय राजभाषा समिति की बैठक में कहा था कि राजभाषा हिंदी को देश की एकता का अहम हिस्सा बनाया जाए. उनके अनुसार राज्यों में क्षेत्रीय भाषाओं का इस्तेमाल होना चाहिए. लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर परस्पर संवाद के लिए अंग्रेजी की बजाय हिंदी में संवाद होने से देश में एकता बढ़ेगी. इसके पहले गृहमंत्री शाह ने सन 2019 में 'एक देश एक राष्ट्रभाषा' की बात कही थी। तमिलनाडु की सियासत तो हिंदी विरोध पर ही चलती है. उसके अलावा, केरल कर्नाटक पश्चिम बंगाल में गैरभाजपा दलों के कई नेताओं ने हिंदी विरोध का झंडा उठा लिया है.
सियासी लाभ के लिए हिंदी का विरोध करने वाले इन नेताओं को दिल्ली की सत्ता में काबिज होने के लिए हिंदी की सीढ़ियों के इस्तेमाल से कोई उज्र नहीं होता. संगीतकार ए आर रहमान ने ट्वीट करके राष्ट्रवादी कवि भारतीदासन की पंक्ति लिखी कि 'तमिल हमारे अस्तित्व की जड़ है'. निश्चित तौर पर वे सही हैं. लेकिन हिंदी को संपर्क भाषा के तौर पर बढ़ाने पर तमिल का नहीं बल्कि अंग्रेजी का वर्चस्व कम होगा. वैसे भी अंग्रेजी की बजाय हिंदी ने ही रहमान को पूरे देश में लोकप्रियता दी है. हिंदी के मसले पर सरकार और मीडिया के माध्यम से सही तर्क और पूरे तथ्य अच्छी नीयत से सामने लाये जाएँ तो इस विवाद की हवा ही निकल जाएगी.
हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है
हिंदी का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व है. भारत समेत दुनिया के कई देशों में हिंदी का बहुतायत से इस्तेमाल होता है. हिंदी के इसी स्वरूप और विस्तार को देखते हुए गैर हिंदी भाषी राज्य गुजरात से जुड़े महात्मा गांधी ने सन 1918 के हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने की बात कही थी. भारत में पिछली जनगणना सन 2011 में हुई है. भारत में लगभग 1383 देसी भाषाएं हैं लेकिन जनगणना में लगभग 121 भाषाओं का मुख्य विवरण जारी होता है. आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 52.8 करोड़ यानी 43.6 फ़ीसदी लोगों ने हिंदी को अपनी मातृभाषा और 13.9 करोड़ लोगों ने दूसरी भाषा बताया था. 11 साल पहले 121 करोड़ की आबादी में आधिकारिक तौर पर 55 फ़ीसदी से ज्यादा लोगों ने हिंदी को अपनी भाषा बताया है. राष्ट्रभाषा हिंदी की अनेक बोलियाँ हैं और इसमें स्थानीय शब्दों के इस्तेमाल की पूरी छूट भी हैं. इसलिए इसकी बंबइया हिंदी और कलकतिया हिंदी जैसी कई शैलियां भी विकसित हो गई हैं.
जनगणना में हिंदी के तहत 65 बोलियाँ सूचीबद्ध हैं, जो हिंदी के सांस्कृतिक विस्तार को दर्शाता है. दूसरी तरफ अंग्रेजी को अपनी पहली भाषा बताने वाले लोगों की आधिकारिक संख्या सिर्फ 2.6 लाख है. इस छोटी संख्या के बावजूद अंग्रेजी ने हिंदी को कमजोर करने में अहम भूमिका निभाई है. देश के अधिकांश जनता के व्यवहार और संपर्क के भाषा होने के नाते हिंदी का क्षेत्र अंग्रेजी की तुलना में बहुत व्यापक .है अंग्रेजी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संपर्क भाषा मानने में कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन भारत की राष्ट्रभाषा और जनभाषा के तौर पर हिंदी का स्थान निर्विवाद है.
हिंदी भारत की राजभाषा है
राजभाषा का सीधा-साधा अर्थ है राजकाज अर्थात शासन-प्रशासन अथवा सरकारी कामकाज की भाषा. संविधान सभा ने लम्बी बहस के बाद 14 सितंबर 1949 को हिंदी (देवनागरी लिपि) को राजभाषा का दर्जा देने का फैसला किया. लेकिन संविधान लागू होने के बाद पिछले दरवाजे से 15 साल के लिए अंग्रेजी को संपर्क भाषा के तौर पर अनुमति दे दी गई. तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने हिंदी को राजभाषा बनाए जाने के बारे में ठोस फैसला लेने की कोशिश की, लेकिन तमिलनाडु में हिंसक प्रदर्शनों के बाद अंग्रेजी का राजभाषा के तौर पर इस्तेमाल जारी रहा. जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 का तदर्थ प्रावधान खत्म हो गया. लेकिन सरकारी कामकाज से अंग्रेजी के अनाधिकृत कब्जे को खत्म करने के लिए ठोस पहल नहीं हो रही. जनगणना के आंकड़ों के अनुसार हिंदी के बाद बंगाली, मराठी, तेलुगू, तमिल और गुजराती सबसे ज्यादा बोली जाती हैं.
क्षेत्रीय भाषाओं और संस्कृति की अवहेलना करने वाली रटन्तू शिक्षा प्रणाली से भारत को क्लर्कों की फौज मिली. चाकरी वाली शिक्षा प्रणाली की वजह से भारत में परंपरागत कृषि, उद्योग और स्वरोजगार का ह्रास होने के साथ बेरोजगारों की बड़ी फौज भी खड़ी हो गई. हिंदी को हिंदी भाषी राज्यों की गरीबी से जोड़ना गलत है. सरकारी कठिन हिंदी और अनुवाद की भाषा होने की वजह से भी हिंदी को बौद्धिक अखाड़े में शर्मसार होना पड़ता है. इन सभी कमजोरियों के बावजूद हिंदी के राष्ट्रभाषा होने के दर्जे पर सियासी विवाद खड़ा करना अनैतिक और असंवैधानिक है.
संविधान में अनुसूचित 22 भाषाओं में अंग्रेज़ी शामिल नहीं
संविधान के अनुच्छेद 344(1) और 351 के तहत आठवीं अनुसूची में 14 भाषाओं को मान्यता मिली थी. उसके बाद अलग अलग संविधान संशोधनों से आठ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल करने से कुल 22 भारतीय भाषाओं को संवैधानिक मान्यता मिल गई. जो लोग हिंदी की अन्य 21 भाषाओं के साथ बराबरी का तर्क गढ़ते हैं, वे लोग यह नहीं बताते की उन 22 भाषाओं के साथ संविधान में अंग्रेजी को मान्यता नहीं मिली. अधिकांश भारतीय भाषाएं संस्कृत से जन्मी हैं और हिंदी का प्रभाव बढ़ने से अनेकता में एकता बढ़ेगी. जबकि अंग्रेजी की प्रधानता से देश की सांस्कृतिक विविधता नष्ट होती है. मुट्ठी भर अंग्रेजों को भारत जैसे विशाल देश में शासन करने था. उसके लिए मैकाले ने अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली की सौगात दी.
अंग्रेज़ी के कैंसर से सरकारी फाइलें, क़ानून की किताबें और शिक्षा प्रणाली बुरी तरह से ग्रस्त हैं. हिंदी को मान्यता मिलने से क्षेत्रीय भाषाओं की बजाय अंग्रेजी का वर्चस्व खत्म होगा. इससे करोड़ों आम जनता को लाभ मिलने के साथ प्रशासनिक कुशलता में बढ़ोतरी होगी और स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे. इसलिए राजभाषा के तौर पर हिंदी को उसका संवैधानिक हक़ मिलना ही चाहिए.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
विराग गुप्ता एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
लेखक सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान तथा साइबर कानून के जानकार हैं. राष्ट्रीय समाचार पत्र और पत्रिकाओं में नियमित लेखन के साथ टीवी डिबेट्स का भी नियमित हिस्सा रहते हैं. कानून, साहित्य, इतिहास और बच्चों से संबंधित इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं. पिछले 6 वर्ष से लगातार विधि लेखन हेतु सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा संविधान दिवस पर सम्मानित हो चुके हैं. ट्विटर- @viraggupta.
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