सम्पादकीय

किसान आंदोलन की आड़ में रास्ते रोकने की जिद, बैरिकेडिंग हटाने के बाद भी बने हठधर्मी

Gulabi
31 Oct 2021 9:00 AM GMT
किसान आंदोलन की आड़ में रास्ते रोकने की जिद, बैरिकेडिंग हटाने के बाद भी बने हठधर्मी
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किसान आंदोलन

हरियाणा और उत्तर प्रदेश से सटे सीमांत इलाकों के प्रमुख राजमार्गो से दिल्ली पुलिस की ओर से बैरिकेडिंग हटा लिए जाने के बाद भी किसान संगठन जिस तरह रास्तों से हटने को तैयार नहीं, उससे उन्होंने अपनी पोल खोलने और खुद को झूठा साबित करने का ही काम किया। उनके रवैये से यह साफ हो गया कि उनकी दिलचस्पी आम लोगों के समय एवं संसाधन को जाया करने में अधिक है।

किसान संगठनों की यह हठधर्मिता लोगों को बंधक बनाकर अपनी मांगे मनवाने वाली प्रवृत्ति को ही रेखांकित कर रही है। यह खेद का विषय है कि सुप्रीम कोर्ट इससे अच्छी तरह अवगत होने के बाद भी अपेक्षित आदेश-निर्देश जारी करने के लिए आगे नहीं आ रहा है कि राजमार्गो पर किसान संगठनों के कब्जे के चलते हर दिन लाखों लोग परेशान हो रहे हैं। वह इससे भी अनभिज्ञ नहीं हो सकता कि किसान संगठनों पर उसकी इन टिप्पणियों का कहीं कोई असर नहीं कि धरने-प्रदर्शन के नाम पर सार्वजनिक स्थलों पर कब्जा करके नहीं रखा जा सकता। क्या विधि के शासन के लिए इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि राजधानी में 11 माह से राजमार्ग बाधित हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं कर पा रहा र्है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तो वैसे संगठनों और समूहों को बल ही प्रदान करेगी, जो अपनी मांगे मनमवाने के लिए कभी सड़कों पर कब्जा कर लेते हैं, कभी रेल पटरियों पर और कभी अन्य सार्वजनिक स्थलों पर। अभी तक किसान संगठन यह दलील दे रहे थे कि सड़कें हमने नहीं, दिल्ली पुलिस ने अपनी बैरिकेडिंग से बंद कर रखी हैं, लेकिन जब पुलिस ने उन्हें हटा लिया तो वे कह रहे हैं कि हम सड़कों पर से अपना कब्जा नहीं छोड़ने वाले। यह चोरी और सीनाजोरी का उदाहरण ही नहीं, लोगों को जानबूझकर तंग करने और सुप्रीम कोर्ट को ठेंगा दिखाने वाला रवैया भी है।
चूंकि किसान संगठन यह भी कह रहे हैं कि पुलिस की बैरिकेडिंग हटने के बाद वे ट्रैक्टर लेकर अपनी फसल बेचने संसद तक जाएंगे, इसलिए दिल्ली पुलिस को सतर्क रहना होगा। वह लाल किले की घटना को विस्मृत नहीं कर सकती। उसे यह भी देखना होगा कि उसकी बैरिकेडिंग हटने के बाद सड़कों पर डटे प्रदर्शनकारी किसी दुर्घटना की चपेट में न आने पाएं। किसान संगठनों की हठधर्मिता के बाद वे राजनीतिक दल भी कठघरे में खड़े दिखने लगे हैं, जो कृषि कानून विरोधी प्रदर्शनकारियों को अपना समर्थन दे रहे हैं। अब इस नतीजे पर पहुंचने के अलावा और कोई उपाय नहीं कि ये राजनीतिक दल भी यही चाहते हैं कि किसान संगठन रास्ते रोककर इसी तरह लोगों को परेशान करते रहें।
दैनिक जागरण
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