सम्पादकीय

असुरक्षित लड़कियां

Subhi
31 Aug 2022 4:43 AM GMT
असुरक्षित लड़कियां
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झारखंड के दुमका की घटना ने एक बार फिर महिला सुरक्षा को लेकर सरकारों के पोलेपन को रेखांकित किया है। विचित्र है कि सरकारें महिला सुरक्षा के दावे तो खूब बढ़-चढ़ कर करती हैं

Written by जनसत्ताल: झारखंड के दुमका की घटना ने एक बार फिर महिला सुरक्षा को लेकर सरकारों के पोलेपन को रेखांकित किया है। विचित्र है कि सरकारें महिला सुरक्षा के दावे तो खूब बढ़-चढ़ कर करती हैं, मगर असलियत यह है कि दिनोंदिन उनके खिलाफ उत्पीड़न और हिंसा की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। यह कानून से बेखौफ होने का ही नतीजा है कि अपराधी जघन्यतम अपराध करते और पकड़े जाने पर मुस्कराते हुए सलाखों के पीछे चले जाते हैं।

इस घटना से यह भी चिंता जागती है कि आखिर युवाओं में हिंसा का ऐसा मानस क्यों बनता गया है। दुमका की घटना में एकतरफा प्यार बताया जा रहा है। पुलिस के मुताबिक आरोपी लंबे समय से युवती को परेशान कर रहा था। जब युवती से सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली तो उसने रात को युवती के कमरे में खिड़की से पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दी। आखिरकार युवती ने दम तोड़ दिया। अब झारखंड सरकार, प्रशासन और महिला आयोग इस घटना को लेकर सक्रिय हो उठे हैं। पीड़ित परिवार को राज्य सरकार ने मुआवजा भी दे दिया है। दोषियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई का वचन दिया है। मगर इस सक्रियता पर कितना भरोसा किया जा सकता है कि फिर से वहां ऐसी कोई घटना नहीं घटने पाएगी।

ऐसा नहीं कि एकतरफा प्यार या प्यार में विफलता की वजह से किसी लड़की की यह पहली हत्या है। देश के लगभग हर हिस्से में ऐसी घटनाएं होती रही हैं। बिहार और झारखंड में लड़कियों पर तेजाब फेंकने की घटनाएं कोई छिपी नहीं हैं। हर बार ऐसी घटनाओं से पार पाने का संकल्प दोहराया जाता है, मगर कभी पुलिस प्रशासन ऐसी घटनाओं से सबक लेने का प्रयास करता नहीं दिखता।

यही वजह है कि हर घटना अधिक जघन्य रूप में घटित हो जाती है। हालांकि निर्भया कांड के बाद महिला सुरक्षा संबंधी कानूनों को काफी सख्त बना दिया गया था। कई राज्य सरकारों ने प्यार में लड़कियों को फांस कर धोखा देने वालों के खिलाफ कड़े कानून बना रखे हैं। फिर भी अपराधियों में कानून का भय पैदा नहीं हो पा रहा, तो इसमें दोष कहां है, चिंतन का विषय है। पिछले कुछ सालों में बलात्कार के बाद हत्याओं की दर काफी बढ़ी है।

हैरानी की बात है कि दुमका का सिरफिरा आशिक अगर लड़की को लंबे समय से परेशान कर रहा था, तो लड़की ने उसके बारे में अपने परिवार वालों या नजदीकी लोगों को बताना और उससे छुटकारा पाने का प्रयास क्यों नहीं किया। इतने सालों से ऐसी घटनाएं होती रहने के बावजूद हम अपनी लड़कियों को इतनी साहसी क्यों नहीं बना पा रहे हैं कि वे अपने साथ हो रहे किसी गलत व्यवहार के बारे में बताने से संकोच न करें।

स्कूलों आदि में लड़कियों को जागरूक बनाने के लिए विविध कार्यक्रम चलाए और आत्मरक्षा का प्रशिक्षण आदि दिए जाने लऐ हैं, इसके बावजूद अगर लड़कियां अपने खिलाफ हो रहे किसी अन्यायपूर्ण व्यवहार पर चुप्पी साधे रहती हैं, तो यह समाज और व्यवस्था दोनों की कमी है। मगर इसमें व्यवस्था की कमी अधिक इसलिए है कि तमाम सख्त कानूनों और महिला सुरक्षा से जुड़े मामलों के त्वरित निपटारे की व्यवस्था के बावजूद ऐसे मामलों में जांचों आदि को इस कदर उलझा दिया जाता है कि बहुत सारे मामलों में उचित न्याय मिल ही नहीं पाता। ऐसे मामलों में दोष सिद्धि की दर काफी कम है। जाहिर है, इससे ऐसे अपराध करने वालों में कानून का भय पैदा नहीं हो पाता।


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