सम्पादकीय

मासूम का आत्मघात

Gulabi
3 March 2022 6:54 AM GMT
मासूम का आत्मघात
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यह घटना विचलित करती है कि फरीदाबाद के एक नामी स्कूल में दसवीं के छात्र ने बहुमंजिला इमारत से कूदकर आत्महत्या कर ली
यह घटना विचलित करती है कि फरीदाबाद के एक नामी स्कूल में दसवीं के छात्र ने बहुमंजिला इमारत से कूदकर आत्महत्या कर ली। सुसाइड नोट में स्कूल के शिक्षक पर आत्महत्या के लिये उकसाने तथा सहपाठियों द्वारा प्रताड़ित किये जाने के आरोप छात्र ने लगाये थे। अभिभावकों द्वारा दर्ज नामजद प्राथमिकी के बाद एक एकेडमिक हेड की गिरफ्तारी हुई है। छात्र का उत्पीड़न करने वाले छात्रों के विरुद्ध कार्रवाई की प्रक्रिया किशोर न्यायिक प्रक्रिया के अनुरूप की जा रही है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि छात्र के परिजनों द्वारा शिकायत करने के बावजूद मामले में कार्रवाई समय रहते नहीं हुई। काश! यदि ऐसा होता तो एक मासूम की जान बचायी जा सकती थी। जैसे पांचों उंगलियां समान नहीं होतीं, उसी तरह हर बच्चा अपने आप में अलग होता है। यदि किसी बच्चे में जैविक रूप से कोई भेद होता है तो स्कूल प्रबंधन के पास उसे संबोधित करने वाली कोई संवेदनशील व्यवस्था होनी चाहिए। छात्र की यौनिकता को लेकर उसके सहपाठी तंज कसते रहे हैं। बताते हैं कि उस छात्र के साथ स्कूल परिसर में कुछ समय पूर्व अप्रिय घटा था। उस बाबत स्कूल प्रबंधन ने कोई कार्रवाई नहीं की, जो अब पुलिस की जांच के दायरे में है। बाल संरक्षण विभाग के अधिकारियों की मौजूदगी में छात्रों से पूछताछ होगी। उन्हें थाने नहीं लाया जायेगा और पुलिस अधिकारी सादी वर्दी में होंगे। पूछताछ में स्कूल अध्यापक व अभिभावक साथ होंगे ताकि बच्चे असहज महसूस न करें। दरअसल, जांच में जिन बच्चों के नाम आये हैं, उनमें कुछ स्कूल छोड़ चुके हैं, कुछ स्कूल में पढ़ रहे हैं। दरअसल, सूचना विस्फोट और इंटरनेट के विस्तार पाते संजाल के बीच किशोरों के आचार-व्यवहार को प्रभावित करने वाली व्यापक सामग्री मौजूद है। लेकिन उन्हें सही-गलत बताने वाला कोई नहीं है। मौजूदा वक्त ऐसे शिक्षकों की कमी महसूस होती है जो छात्रों के सर्वांगीण विकास पर ध्यान दें।
दरअसल, तेजी से बदलते परिदृश्य में छात्रों के व्यवहार का मनोवैज्ञानिक स्तर पर जिस तरह अवलोकन किया जाना चाहिए, वैसा अब नामी पब्लिक स्कूलों में भी नहीं किया जा रहा है। पांच सितारा तमगे लेकर भारी-भरकम फीस वसूलने वाले स्कूलों में ऐसी घटनाएं सामने आना चिंता बढ़ाने वाला है। बड़े स्कूलों में ऊंचे स्टैंडर्ड दिखाने के फेर में इतना बड़ा बाहरी तामझाम जोड़ लिया जाता है कि उसमें बच्चों से जुड़े संवेदनशील मुद्दे गौण हो जाते हैं। पाठ्यक्रमों के अलावा बाजार की जरूरत के हिसाब से स्कूलों को ढालने के लिये तौर-तरीके पूरा करने का दबाव निजी स्कूलों के शिक्षकों पर होता है। इस दबाव के चलते शिक्षक संवेदनशील ढंग से बच्चों की असामान्यता व उनकी सीमाओं पर नजर नहीं रख पाते। वहीं दूसरी ओर, स्कूल की कथित छवि के नाम पर ऐसी वारदातों को दबाने व पर्दा डालने की कोशिश होती है। फरीदाबाद के इस नामी स्कूल में आत्महत्या करने वाले छात्र के साथ भी कुछ वक्त पूर्व जो अप्रिय हुआ, उसे रफा-दफा कर दिया गया। छात्र की यौनिकता को लेकर तंज से छात्र गंभीर मानसिक तनाव में था। विडंबना है कि छात्र विशेष की शारीरिक संरचना व उसके व्यवहार से जुड़े वैज्ञानिक पहलुओं के बारे में भारतीय समाज में गंभीर समझ विकसित नहीं हो पायी है। जब फरीदाबाद के नामी स्कूल में बच्चे के व्यवहार की असामान्यता को नोटिस नहीं किया गया तो देश के गली-मोहल्लों में खुलने वाले स्वनामधन्य पब्लिक स्कूलों में बच्चों के साथ कितना संवेदनशील व्यवहार किया जाता होगा, अनुमान लगाना सहज है। इसके साथ ही बच्चों की सीखने की अलग क्षमताओं व शारीरिक संरचना के विकारों के चलते सबको एक जैसे व्यवहार से नहीं सिखाया जा सकता। इस बाबत अभिभावकों को भी अधिक जागरूक व संवेदनशील बनना होगा। मनोवैज्ञानिक कसौटी पर बच्चे के व्यवहार को देखना होगा। यदि समय रहते शिक्षक व अभिभावक बच्चे के मानसिक द्वंद्व को समझ सकें तो फिर किसी मासूम को बहुमंजिला इमारत से छलांग लगाने को मजबूर नहीं होना पड़ेगा। देश में ऐसे बच्चों की समस्याओं के अध्ययन व निवारण हेतु तंत्र विकसित करने की भी जरूरत है, जिससे बच्चों को भावनात्मक रूप से सशक्त बनाया जा सके।

दैनिकट्रिब्युन के सौजन्य से सम्पादकीय

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