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पिछले डेढ़-दो सालों के दौरान कोरोना विषाणु के असर में लगभग हर स्तर पर जीवनशैली में जिस तरह के बदलाव आए हैं, उसमें तकनीक की बड़ी भूमिका रही है।
पिछले डेढ़-दो सालों के दौरान कोरोना विषाणु के असर में लगभग हर स्तर पर जीवनशैली में जिस तरह के बदलाव आए हैं, उसमें तकनीक की बड़ी भूमिका रही है। विडंबना यह है कि तकनीक की बढ़ती दखल के मुताबिक इसके इस्तेमाल को लेकर जरूरी समझ और प्रशिक्षण पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। नतीजतन, समाज का जो हिस्सा तकनीकों के उपयोग के दायरे में है, उसे इसके कुछ फायदे जरूर मिल रहे हैं, लेकिन उनमें से एक हिस्सा इंटरनेट पर अपराध करने वालों के निशाने पर भी है।
इस लिहाज से देखें तो बच्चे साइबर अपराधियों के सबसे आसान निशाना होते हैं। दरअसल, आज आनलाइन पढ़ाई से लेकर अन्य कारणों से बहुत सारे बच्चे मोबाइल, कंप्यूटर और इंटरनेट के दायरे में आए हैं, लेकिन इस संसाधन के इस्तेमाल को लेकर बहुत सारे बच्चों के भीतर अपेक्षित जागरूकता और सावधानी का बोध नहीं आ पाया है। यही वजह है कि पढ़ाई-लिखाई और खुद से जुड़े अलग-अलग लोगों या समूहों से संवाद के लिए इंटरनेट पर उनकी निर्भरता के क्रम में वे इंटरनेट पर चलने वाली अवांछित गतिविधियों की चपेट में आए हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़े में ये तथ्य सामने आए हैं कि देश में बच्चों के खिलाफ बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध 2019 की तुलना में 2020 में चार सौ फीसद की बढ़ोतरी हुई। इनमें से ज्यादातर मामले यौन कृत्यों में बच्चों को चित्रित करने वाली सामग्री के प्रकाशन और प्रसारण से जुड़े हैं। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल ऐसे अपराधों के 842 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2017 और 2018 में ये आंकड़े क्रमश: 79 और 117 थे। स्मार्टफोन और कंप्यूटरों ने पहले ही लोगों के बीच अपनी मजबूत मौजूदगी और पहुंच बनाई थी।
लेकिन कोरोना के संक्रमण की पृष्ठभूमि में पूर्णबंदी और इस बीच शिक्षा से लेकर खरीदारी, लेनदेन सहित दूसरी तमाम गतिविधियों के लिए इंटरनेट पर जिस कदर निर्भरता बढ़ी, उसमें साइबर अपराध ने भी अपने पांव फैलाए। पढ़ाई या किसी से संवाद के लिए स्मार्टफोन या कंप्यूटर पर इंटरनेट खोले बच्चे कैसे यौन शोषण, अश्लील संदेशों के आदान-प्रदान, आनलाइन गेम और ठगी या पोर्नोग्राफी और साइबर धमकी जैसे जोखिम की जाल में कैसे फंसते गए, यह लोगों को पता नहीं चला।
यों बच्चे आमतौर पर सभी समाजों या समुदायों के सबसे ज्यादा संरक्षित और संवेदनशील हिस्से होते हैं, लेकिन इसके समांतर वे अपेक्षया अधिक जोखिम में भी होते हैं। इसलिए उनके पालन-पोषण और विकास के क्रम में दिनचर्या की उनकी अलग-अलग गतिविधियों पर गौर करना और बेहतर जीवन-स्थितियों के अनुकूल सलाह देना अभिभावकों की जिम्मेदारी होती है। विडंबना यह है कि हमारे समाज में बच्चों की देखभाल और उनका भविष्य संवारने के नाम पर जिस तरह के नियंत्रण और निगरानी को जरिया बना लिया जाता है, उसमें कई बार बच्चे गैरजरूरी दबाव में आकर अभिभावकों से जरूरी संवाद बहुत कम कर लेते हैं।
इसका नतीजा इस खतरे के रूप में आता है कि अक्सर वे अवांछित गतिविधियां चलाने वालों के निशाने पर या उसकी जद में आ जाते हैं। इंटरनेट पर बच्चों के खिलाफ अपराधों के जो स्वरूप सामने आए हैं, उसमें तकनीक के उचित प्रशिक्षण से लेकर हमारा सामाजिक बर्ताव भी जिम्मेदार है, जिसमें बच्चों पर या तो जरूरत से ज्यादा दबाव होता है या फिर उनकी गतिविधियों के प्रति उदासीनता होती है। तकनीक अपने आप में एक निरपेक्ष साधन होता है, लेकिन उसका इस्तेमाल जिस मकसद से किया जाएगा, उसके नतीजे भी उसी अनुरूप सामने आएंगे।
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