सम्पादकीय

न्याय के फैसले में अन्याय

Gulabi
2 March 2021 6:46 AM GMT
न्याय के फैसले में अन्याय
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अगर ये दौर आज का नहीं होता, तो इस घटना पर देश का विवेक कठघरे में खड़ा नजर आता

अगर ये दौर आज का नहीं होता, तो इस घटना पर देश का विवेक कठघरे में खड़ा नजर आता। लेकिन आज जब किसी को भी किसी इल्जाम में जेल में डाल देना आम हो गया है, तो इस पर कोई हैरत नहीं होती कि इस घटना पर कोई चर्चा नहीं हुई है। लेकिन मुद्दा गंभीर है। सवाल यह है कि क्या किसी जिंदगी की इस देश में कोई कीमत है या नहीं? अगर किसी से उसकी जिंदगी के 20 वर्ष गलत ढंग से छीन लिए गए हों तो आखिर उसके लिए मुआवजा क्या होगा? उसके साथ हुए अन्याय के लिए इंसाफ क्या होगा? घटना यह है कि बलात्कार के एक मामले में एक व्यक्ति को गलती से दोषी ठहरा दिया गया। उत्तर प्रदेश के ललितपुर के 43 वर्षीय व्यक्ति को 20 साल की जेल की सजा काटने के बाद अब जाकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बरी किया है। एससी/एसटी एक्ट के तहत बलात्कार के आरोप में दोषी ठहराए जाने के बाद यह व्यक्ति सालों से आगरा की जेल में बंद था।


इस दौरान उसके माता-पिता और दो भाइयों की मौत भी हो गई, लेकिन उसे उनके उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति भी नहीं दी गई। अब हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने उसको तमाम आरोपों से बरी कर दिया है। खबरों के मुताबिक ललितपुर जिले की एक दलित महिला ने सितंबर 2000 में विष्णु तिवारी पर बलात्कार का आरोप लगाया था। उस वक्त विष्णु की उम्र 23 साल थी। सेशन कोर्ट ने विष्णु को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। 2005 में विष्णु ने हाई कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील की, लेकिन 16 साल तक मामले पर सुनवाई नहीं हो सकी। यह अपनी न्याय व्यवस्था है! बहरहाल, पिछले 28 जनवरी को हाई कोर्ट के जस्टिस कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस गौतम चौधरी ने अपने आदेश में कहा- "तथ्यों और सबूतों को देखते हुए हमारी राय बनी है कि अभियुक्त को गलत तरीके से दोषी ठहराया गया था।" विष्णु के परिजनों ने बताया है कि इस तरह गलत दोषी ठहराए जाने का परिणाम यह हुआ कि उनका पूरा परिवार को आर्थिक रूप से टूट गया। सामाजिक प्रतिष्ठा को जो क्षति पहुंची वह अलग है। परिवार को गहरा सदमा और सामाजिक कलंक झेलने पड़े। इसके अलावा विष्णु को अपनी जिंदगी के सबसे बेहतरीन साल बिना गलती के जेल में बिताने पड़े। क्या इसकी कोई भरपाई हो सकती है?


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