सम्पादकीय

पहल और राह के रोड़े

Gulabi
8 Oct 2021 4:50 PM GMT
पहल और राह के रोड़े
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यह एक महत्त्वपूर्ण पहल है कि पर्यावरण को मूलभूत मानव अधिकारों की सूची में शामिल किया जाए

ये प्रस्ताव पारित शायद ही हो पाए। इसलिए कि ऐसा हुआ, तो सरकारों की एक बड़ी जवाबदेही पर्यावरण के मामले में भी बन जाएगी। जिस वक्त आम जानकारी है कि विभिन्न देशों की सरकारों की नीतियां तेल उद्योग की लॉबिंग से तय हो रही हैं, उस समय ऐसा प्रस्ताव पास होगा, ये कठिन है।


यह एक महत्त्वपूर्ण पहल है कि पर्यावरण को मूलभूत मानव अधिकारों की सूची में शामिल किया जाए। इस हफ्ते संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव लाया गया है, जिसके तहत स्वस्थ पर्यावरण को मानवाधिकार बनाने की बात है। लेकिन ये प्रस्ताव पारित शायद ही हो पाए। इसलिए कि ऐसा हुआ, तो सरकारों की एक बड़ी जवाबदेही पर्यावरण के मामले में भी बन जाएगी। जिस वक्त ये शिकायत गहरी हो जा रही है कि विभिन्न देशों की सरकारों की नीतियां तेल और गैस उद्योग की लॉबिंग से तय हो रही हैं, उस समय ऐसा प्रस्ताव आसानी से पास होगा, ये संभव नहीं है। ऐसी खबरें आई हैं कि कुछ देश इस प्रस्ताव के पक्ष में नहीं हैं। उनमें अमेरिका और ब्रिटेन भी हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान अमेरिकी प्रतिनिधियों ने कानूनी दिक्कतों का जिक्र किया। कहा कि एक नया अधिकार बना देने से पारंपरिक नागरिक और राजनीतिक अधिकार कमजोर हो सकते हैं।

ये प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद में लाया गया है। अभी अमेरिका मानवाधिकार परिषद का सदस्य नहीं है। लेकिन पर्यवेक्षक के तौर पर वह बहस में शामिल हो सकता है। बताया जाता है कि रूस और ब्राजील भी इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं कर रहे हैं। वे इसमें संशोधन चाहते हैं। ऐसे प्रस्ताव के बारे में 1990 के दशक में पहली बार सोचा गया था। लेकिन मामला अब तक अधर में लटका हुआ है। ऐसे प्रस्ताव पास करने का असर दूरगामी होता है। 2010 में जब संयुक्त राष्ट्र ने पानी और साफ-सफाई को मानवाधिकार बनाने का प्रस्ताव पास किया, तो ट्यूनिशिया और कई देशों ने अपने यहां कानून बनाकर उसे मान्यता दी। इसलिए अगर यह प्रस्ताव पास हो जाता है, तो सभी देशों पर दबाव बढ़ेगा कि वे सौ से ज्यादा उन देशों के साथ आएं जिन्होंने पहले ही स्वच्छ आबो हवा को एक कानूनी दर्जा दिया है। इससे पर्यावरण बचाने के पक्ष में अभियान को बड़ी मदद मिलेगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनिया भर में हर साल एक करोड़ 37 लाख से ज्यादा लोग पर्यावरण की समस्याओं के चलते जान गंवा रहे हैं। यह हमारा भी तजुर्बा है कि लाखों लोग पर्यावरणीय खतरों या जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा मार झेल रहे हैं। मगर दुनिया ऐसे बड़े आर्थिक स्वार्थ ऐसे हैं, जो मानव पर मुनाफे को तरजीह देते हैँ।
नया इण्डिया
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