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मतदाता पहचान पत्रों को आधार कार्ड से जोड़ने की पहल
केंद्र सरकार ने निर्वाचन आयोग की सिफारिशों के आधार पर चुनाव सुधारों को आगे बढ़ाने का फैसला कर एक आवश्यक काम किया है। इनमें सबसे बड़ा सुधार मतदाता पहचान पत्रों को आधार कार्ड से जोड़ने का है। हालांकि फिलहाल यह स्वैच्छिक आधार पर किया जाएगा, लेकिन उम्मीद की जाती है कि आगे चलकर सभी मतदाता पहचान पत्रों को आधार कार्ड से जोड़ने में सफलता मिलेगी। अभी ऐसा इसलिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इससे निजता के अधिकार में हनन होने की बात कही थी। उचित होगा कि सुप्रीम कोर्ट अपने इस दृष्टिकोण पर नए सिरे से विचार करे। बेहतर होगा कि निर्वाचन आयोग और भारत सरकार सुप्रीम कोर्ट से यह अनुरोध करें कि वह मतदाता पहचान पत्रों को आधार कार्ड से जोड़ने की प्रक्रिया को निजता के अधिकार में हनन के रूप में न देखे। आखिर जब पैन कार्ड, राशन कार्ड आदि आधार से जुड़ सकते हैं तो फिर मतदाता पहचान पत्र के साथ भी ऐसा करने में क्या हर्ज है?
नि:संदेह निजता के अधिकार का अपना महत्व है, लेकिन किसी भी अधिकार की तरह वह भी असीम नहीं हो सकता। विडंबना यह है कि अपने देश में एक समूह ऐसा है, जो हर सुधार का विरोध करता है। ऐसे ही एक समूह ने यह माहौल बना रखा है कि यदि मतदाता पहचान पत्रों को आधार से जोड़ा जाता है तो इससे लोगों की निजता का हनन होगा। यह और कुछ नहीं, एक जरूरी सुधार की राह में अड़ंगा लगाने वाला रवैया है।
दुर्भाग्य यह है कि कुछ राजनीतिक दल भी यही रवैया अपनाए हुए हैं। ऐसे दलों के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट को इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि निर्वाचन आयोग की ओर से मतदाता पहचान पत्रों को आधार कार्ड से जोड़ने के जो पायलट प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं, वे बेहद सफल हैं और उनके जरिये फर्जी एवं दोहरे मतदाता पहचान पत्रों की समस्या से पार पाने में मदद मिली है। इसका अर्थ है कि इन पायलट प्रोजेक्ट में शामिल लोगों को वैसी कोई समस्या नहीं, जिसकी ओर सुप्रीम कोर्ट ने इंगित किया था।
इससे भी कोई अनभिज्ञ नहीं हो सकता कि देश में फर्जी या दोहरे मतदाता पहचान पत्रों की जो समस्या है, वह चुनावों की निष्पक्षता पर चोट करती है। यह अच्छा हुआ कि सरकार ने निर्वाचन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी दे दी, लेकिन अभी चुनाव सुधारों को और आगे बढ़ाने की जरूरत है। इसकी पूर्ति तभी संभव है, जब सत्तापक्ष और विपक्ष में सहमति कायम होगी। सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच कम से कम संगीन किस्म के आपराधिक अतीत वालों को तो चुनाव लड़ने से रोकने पर तो सहमति बननी ही चाहिए।
दैनिक जागरण
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