- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- जरूरी है आबादी पर...
भूपेंद्र सिंह| हम दो-हमारे दो, छोटा परिवार-सुखी परिवार, बढ़ती जो आबादी है-देश की बर्बादी है। ये ऐसे नारे हैं जो भारत में बढ़ती जनसंख्या के मद्देनजर लोगों में जागरूकता लाने के लिए समय-समय पर सरकार एवं समाजसेवी संस्थाओं ने दीवारों पर लिखकर या फिर विज्ञापनों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने का काम आजादी के बाद जारी रखा। नि:संदेह इन नारों का कुछ असर भी हुआ होगा, लेकिन कुल मिलाकर परिणाम यह हुआ कि आजादी के बाद की 34 करोड़ की जनसंख्या वर्तमान में 138 करोड़ को पार कर चुकी है। आने वाले कुछ वर्षों में हम चीन को पछाड़कर विश्व के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश के रूप में होंगे, जबकि हमारा कुल क्षेत्रफल चीन के क्षेत्रफल का एक तिहाई भी नहीं है। अगर इसी रफ्तार से जनसंख्या बढ़ती रही तो अगले 10 से 12 साल में हमारी जनसंख्या 1.5 अरब को पार कर जाएगी। यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि जब 1857 में भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किलोमीटर था, तब भारत की जनसंख्या मात्र 35 करोड़ थी और आज वर्तमान में जब भारत का क्षेत्रफल घटकर मात्र 33 लाख वर्ग किमी ही बचा है, तब भारत की जनसंख्या 138 करोड़ को पार कर चुकी है। दुनिया की लगभग 18 प्रतिशत जनसंख्या भारत में निवास करती है, जबकि दुनिया की केवल 2.4 प्रतिशत जमीन, चार प्रतिशत पीने का पानी और 2.4 प्रतिशत वन क्षेत्र ही भारत में उपलब्ध है। यह एक बहुत ही चिंतनीय विषय है कि अपने देश में जनसंख्या-संसाधन अनुपात असंतुलित है।