- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- सूचना बनाम जोखिम
सूचना का अधिकार कानून बनाने के पीछे सरकार का मकसद था कि इससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी, सरकारी अफसर मनमानी और बेवजह कामों को लटकाए रखने की प्रवृत्ति से बाज आएंगे। मगर हकीकत यह है कि लागू होने के बाद से ही यह कानून सवालों के घेरे में बना हुआ है। इस कानून को लागू हुए सोलह साल हो गए। पिछले कुछ सालों में तो अधिकारी सूचना का अधिकार कानून के तहत मांगी गई जानकारियों से साफ मुकरते देखे गए हैं। सबसे चिंता की बात यह है कि इस कानून के तहत सूचनाएं एकत्र करने वाले अनेक कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल नामक संस्था ने अपने अध्ययन में बताया है कि पिछले सोलह सालों में करीब सौ ऐसे कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई है। एक सौ नब्बे लोगों पर जानलेवा हमले हुए हैं। हालांकि कई सूचनाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्याओं को लेकर पूरे देश में आंदोलन जैसा उठ खड़ा हुआ था। तब सर्वोच्च न्यायालय ने प्रशासन को ताकीद की थी कि वह सूचनाधिकार कार्यकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करे। मगर इस दिशा में अब तक कोई पहल नहीं दिखी है।