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दो साल से अधिक समय से जारी महामारी ने एक ओर बड़ी संख्या में लोगों की जान ली है
दो साल से अधिक समय से जारी महामारी ने एक ओर बड़ी संख्या में लोगों की जान ली है, तो दूसरी ओर आर्थिक स्थिति पर भी व्यापक असर डाला है. उत्पादन प्रक्रिया में गिरावट से रोजगार में कमी आयी और लोगों की आमदनी घटी. हालांकि अब धीरे-धीरे उद्योगों और कारोबारों में सुधार हो रहा है तथा रोजगार की स्थिति भी बेहतर होती जा रही है, लेकिन आमदनी अभी भी कोरोना से पहले के स्तर तक नहीं पहुंच सकी है.
आधिकारिक आकलनों के मुताबिक, महामारी से पहले देश की औसत प्रति व्यक्ति आय लगभग 94.6 हजार रुपये थी, जो चालू वित्त वर्ष में 93.9 हजार रुपये के आसपास है. बीते दिसंबर में बेरोजगारी दर 7.9 प्रतिशत आंकी गयी थी और करीब 3.5 करोड़ लोग रोजगार की तलाश में थे. ऐसी स्थिति में आवश्यक वस्तुओं के दाम में वृद्धि लोगों के लिए बड़ी मुसीबत बनकर आयी है.
महामारी की शुरुआत से अब तक दाल, मांस, रसोई गैस, चाय आदि वस्तुओं तथा विभिन्न सेवाओं की कीमत में 20 से 40 फीसदी की बड़ी बढ़ोतरी हुई है. पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें सौ रुपये प्रति लीटर के आसपास हैं. बीच-बीच में सब्जियों की कीमतें बढ़ती ही रहती हैं. खाने-पीने की चीजों तथा ईंधन की कीमतें समूचे बाजार को प्रभावित करती हैं क्योंकि इनकी खरीद में बहुत अधिक कटौती कर पाना संभव नहीं होता.
ऐसी स्थिति में मध्य और निम्न आय वर्ग तथा गरीब परिवारों को रहन-सहन पर अधिक खर्च करना पड़ रहा है. यदि औसत खुदरा मूल्यों की बात करें, तो इनमें करीब 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जबकि महामारी से पहले के साढ़े पांच सालों में यह आठ फीसदी रही थी. उस समय आमदनी और रोजगार में भी कमी का ऐसा संकट नहीं था.
ऐसे में जहां लोगों के सामने भोजन की मात्रा और गुणवत्ता से समझौता करना पड़ रहा है, वहीं उनकी बचत भी कम होती जा रही है. पारिवारिक बचत में कमी भी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए खराब खबर है. आय कम होने तथा महंगाई बढ़ने से लोग घरेलू जरूरत की अन्य वस्तुओं की खरीदारी में भी हिचक रहे हैं. इस वजह से अपेक्षित गति से मांग नहीं बढ़ पा रही है, जिससे अर्थव्यवस्था में सुधार की गति धीमी है.
ऐसी स्थिति में अच्छी संख्या में रोजगार के अवसर भी सृजित नहीं हो पा रहे हैं. संक्षेप में कहें, तो महामारी ने अर्थव्यवस्था को एक दुश्चक्र में डाल दिया है. कई विशेषज्ञ अधिक करों, बढ़ते वित्तीय घाटे, रिजर्व बैंक की आसान मौद्रिक नीति तथा आपूर्ति शृंखला की समस्याओं को मुद्रास्फीति के लिए जिम्मेदार मानते हैं.
लेकिन इन उपायों के न होने से भी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता. सरकार ने उद्योगों और कारोबारों को सहायता देने के साथ गरीब आबादी को मुफ्त राशन देने और कल्याण कार्यक्रमों का दायरा बढ़ाने जैसे उपाय किये हैं. आशा है कि महामारी के साये से निकलते ही महंगाई से भी राहत मिलेगी.
प्रभात खबर
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