सम्पादकीय

महंगाई का कोड़ा

Subhi
7 Oct 2021 1:00 AM GMT
महंगाई का कोड़ा
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पेट्रोल, डीजल और रसोई गैसके बढ़ते दाम आम आदमी पर लगातार बोझ बढ़ा रहे हैं। इस साल जनवरी से हर महीने पच्चीस-पच्चीस रुपए करके रसोई गैस के दाम बढ़ाए जाते रहे।

पेट्रोल, डीजल और रसोई गैसके बढ़ते दाम आम आदमी पर लगातार बोझ बढ़ा रहे हैं। इस साल जनवरी से हर महीने पच्चीस-पच्चीस रुपए करके रसोई गैस के दाम बढ़ाए जाते रहे। अब फिर पंद्रह रुपए बढ़ा दिए। पांच किलो वाला सिलेंडर पांच सौ के पार चला गया है। चाहे सबसिडी वाला सिलेंडर हो या बिना सबसिडी वाला या फिर व्यावसायिक इस्तेमाल वाला सिलेंडर, सभी के दाम आसमान छू रहे हैं। पेट्रोल और डीजल तो पहले ही से लगातार महंगा होता जा रहा है। चिंता की बात ज्यादा इसलिए भी है कि इन उत्पादों की महंगाई नित नए कीर्तिमान बना रही है। दाम वृद्धि के इस रुख से साफ है कि आने वाले दिनों में कोई राहत मिलने की बात तो दूर, बल्कि और महंगाई के लिए तैयार रहना होगा। सरकार साफ कह चुकी है कि इन बढ़ते दामों को रोक पाना फिलहाल संभव नहीं है। जाहिर है, महंगाई अभी पीछा नहीं छोड़ने वाली।

पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दाम बढ़ने के पीछे तात्कालिक वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के दाम बढ़ना बताई जा रही है। विदेशी बाजार में कच्चा तेल सात साल के उच्चतम स्तर पर चल रहा है। सऊदी अरब ने रसोई गैस के दाम पिछले तीन महीने में तीन सौ चौदह डालर प्रति टन तक बढ़ा दिए हैं। चूंकि भारत तेल और गैस का आयात करता है, इसलिए इन उत्पादों के महंगा होने का तर्क दिया जा सकता है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर इन दामों को बढ़ाने की कोई सीमा है या नहीं? यह नहीं भूलना चाहिए कि देश की अधिकांश आबादी रसोई गैस सिलेंडर का ही उपयोग करती है। इनमें बेहद गरीब परिवारों की संख्या भी करोड़ों में ही होगी। ऐसे में लोग कैसे नौ सौ या हजार रुपए का सिलेंडर खरीद पाएंगे? जिस तेजी से रसोई गैस के दाम बढ़ाए जा रहे हैं, उससे तो लगता है कि जल्दी ही यह आंकड़ा डेढ़ हजार को छू जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।
यह सही है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में रसोई गैस और कच्चे तेल के दामों को नियंत्रित कर पाना सरकार के दायरे के बाहर है। लेकिन देश के भीतर लोगों को उचित दाम पर ये चीजें कैसे मिलें, इसके उपाय तो किए ही जा सकते हैं। पेट्रोल और डीजल पर लगाए जाने वाले भारी-भरकम शुल्कों को लेकर लंबे समय से आवाज उठती रही है। एक लीटर पेट्रोल या डीजल के दाम में दो तिहाई के करीब तो केंद्र और राज्यों द्वारा वसूले जाने वाले शुल्क ही होते हैं। सरकारों ने इसे खजाना भरने का बड़ा और आसान जरिया बना लिया है।
दरअसल सरकारें जानती हैं कि ईंधन, रसोई गैस, दूध और खाने-पीने का सामान कितना भी महंगा क्यों न कर दिया जाए, लोग बिना खरीदे रह नहीं सकते। पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने पर कोई सहमति नहीं बनती दिखना भी बता रहा है कि भविष्य में पेट्रोलियम उत्पाद महंगे ही होंगे। यानी हर तरह से महंगाई बढ़ेगी। वित्त मंत्री कह ही चुकी हैं कि पेट्रोल और डीजल पर शुल्क में कोई कटौती नहीं होगी और महंगाई से केंद्र व राज्यों को मिल कर निपटना है। इस वक्त बड़ी दिक्कत यह भी है कि महामारी ने लोगों की माली हालत बिगाड़ कर रख दी है। रोजगार हैं नहीं। आमद गिर रही है। ऐसे में लोग कैसे जी पाएंगे? महंगाई बेकाबू होकर गरीबों को मरने के लिए मजबूर करने लगे, इससे पहले केंद्र और राज्यों को उन तात्कालिक और दूरगामी उपायों के बारे में सोचना चाहिए जो आम लोगों को इससे बचा सकें।

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