सम्पादकीय

महंगाई बनाम सियासत

Gulabi Jagat
16 March 2022 5:43 AM GMT
महंगाई बनाम सियासत
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एक समय था, जब कहा जाता था कि प्याज की दर पर सरकार बदल जाती है
By NI Editorial
भाजपा की कामयाबी का राज़ यह भी है कि उसने महंगाई जैसे सवालों को राजनीति से अलग कर दिया है। उसके समर्थक यह मानते हैं कि अगर देश सही दिशा में है, तो कुछ दिक्कतें उठाई जा सकती हैँ। एक दूसरी राय यह होती है कि महंगाई तो है, लेकिन इसके लिए भारत सरकार जिम्मेदार नहीं है।
एक समय था, जब कहा जाता था कि प्याज की दर पर सरकार बदल जाती है। महंगाई हमेशा से न सिर्फ भारत, बल्कि हर लोकतांत्रिक देश में एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा रहती है। यह अपेक्षा सरकार से की जाती है कि वह इसे काबू में रखे और अगर फिर भी महंगाई बढ़ जाए, तो जनता को राहत देने वाले कदम उठाए। लेकिन भारत में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की कामयाबी का एक बड़ा राज़ यह भी है कि उसने महंगाई जैसे सवालों को राजनीति से अलग कर दिया है। उसके समर्थक तबकों का एक हिस्सा यह मानता है कि अगर देश सही दिशा में है, तो कुछ दिक्कतें उठाई जा सकती हैँ। एक दूसरे हिस्से की राय होती है कि महंगाई तो है, लेकिन इसके लिए भारत सरकार जिम्मेदार नहीं है। कुछ तो अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां दोषी हैं, और इसका एक बड़ा कारण "पिछली सरकारों ने जो लूटा" वह है। तो इस समझ के बीच अनुमान लगाया सकता है कि महंगाई दर बढ़ने के ताजा आंकड़े भी सियासी बहस से दूर रहेंगे। वरना, स्थिति यह है कि बीते फरवरी में खुदरा और थोक भाव- दोनों महंगाई दर में बढ़ोतरी हुई।
खुदरा मुद्रास्फीति की दर भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से तय बर्दाश्त सीमा से और ऊपर चली गई है। वह आठ महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर है। यह हाल तब है, जबकि हाल में विधानसभा चुनावों के कारण पेट्रोल-डीजल के दाम में जो बढ़ोतरी रोकी गई थी, वह अब तक जारी है। लेकिन यह दो-चार दिन की बात है। जब ये दाम बढ़ेंगे, तो इस पदार्थों के सीधे उपयोग के साथ-साथ दूसरी चीजों का उपभोग भी महंगा हो जाएगा। जबकि हाल के एक अध्ययन से यह साफ हो चुका है कि भारत में औसत प्रति व्यक्ति आय में गिरावट का दौर जारी है। तो आम जन की अर्थव्यवस्था पर दोहरी मार पड़ रही है। ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था में सुधार की कोई संभावना नहीं हो सकती। इसलिए कि घटती आमदनी वाले लोग बाजार में मांग नहीं बढ़ा सकते। उसका चक्रीय असर निवेश और रोजगार की स्थितियों पर पड़ता रहेगा। तो कुल मिला कर यह देश की बदहाली की कहानी है। लेकिन भाजपा आश्वस्त हो सकती है कि यह कथा उसकी बदहाली का कारण नहीं बनेगी। उसकी सरकार क्रोनी पूंजीपतियों के साथ मिल कर अपनी दिशा में बढ़ना जारी रख सकती है।
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