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- महंगाई का रुख
Written by जनसत्ता: खुदरा महंगाई के बाद अब थोक महंगाई में बढ़ोतरी ने सरकार के माथे पर चिंता की लकीर गहरी कर दी है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक थोक महंगाई 14.55 फीसद पर पहुंच गई है। यह दर चार महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर बताई जा रही है। पिछले एक साल से महंगाई की दर चौदह फीसद से ऊपर ही बनी हुई है। कुछ क्षेत्रों में जरूर कभी-कभी थोड़ी कमी दर्ज हुई, पर सकल थोक महंगाई दर चौदह फीसद से ऊपर ही रही।
इसकी वजह कच्चे तेल और जिंसों की कीमतों में हुई बढ़ोतरी बताई जा रही है। पहले ही लोग पेट्रोल-डीजल-घरेलू गैस और रोजमर्रा के इस्तेमाल की उपभोक्ता वस्तुओं, सब्जी, खाद्य तेल, दूध आदि की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी से परेशान हैं। कयास लगाया जा रहा है कि इस पर काबू पाने के लिए रिजर्व बैंक ब्याज दरों में बदलाव कर सकता है। मौद्रिक नीति की समीक्षा से पहले ही स्टेट बैंक और एक्सिस बैंक ने अपनी ब्याज दरों में क्रमश: दस और पांच आधार अंकों की बढ़ोतरी कर दी है। यानी जिन लोगों ने आवास, वाहन, कारोबार आदि के लिए इन बैंकों से कर्ज लिया है, उन्हें अब कुछ अधिक किस्त चुकानी पड़ेगी। इस तरह महंगाई की मार लोगों पर कई तरफ से पड़ रही है।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते कच्चे तेल के दामों पर असर पड़ा है। मगर भारत में बढ़ रही महंगाई के संदर्भ में इसे पूरी तरह जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। रूस से कच्चे तेल का आयात दूसरे देशों की तुलना में काफी कम होता है। फिर जब यह युद्ध नहीं चल रहा था, तब भी तेल की कीमतें सौ रुपए से ऊपर पहुंच गई थीं। अगर केंद्र ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इनके उत्पाद शुल्क में कटौती न की होती और करीब तीन महीने तक इनकी कीमतें बढ़ने से रोक न रखी होती, तो आज स्थिति शायद और खराब होती।
इसके अलावा, देश के खाद्यान्न उत्पादन में लगातार बढ़ोतरी हुई है। सब्जियों और फलों के उत्पादन में भी कोई कमी दर्ज नहीं हुई है। फिर भी अगर इनकी कीमतें नीचे आने के बजाय ऊपर का ही रुख किए हुई हैं, तो इसकी बड़ी वजह र्इंधन की बढ़ी कीमतें हैं। तेल के दाम बढ़ने से ढुलाई पर खर्च बढ़ गया है, जिससे खेत या फिर कारखाने से दुकान तक पहुंचने में वस्तुओं की कीमतें खासी बढ़ जाती हैं।
हालांकि महंगाई पर काबू पाने के मकसद से रिजर्व बैंक लगातार ब्याज दरों में परिवर्तन कर बाजार में पूंजी का प्रवाह बढ़ाने का प्रयास करता रहा। मगर उसका भी बहुत असर नहीं पड़ा। पिछले कुछ समय से उसने ब्याज दरों को लगभग स्थिर रखा है। फिर भी इसका महंगाई रोकने में कोई उल्लेखनीय प्रभाव नजर नहीं आ रहा, तो इसकी बड़ी वजह लोगों की कमाई घटना है। बहुत सारे लोगों का रोजगार छिन गया है।
देश की आधे से अधिक आबादी मुफ्त के सरकारी राशन पर निर्भर है। रोजी-रोजगार के नए अवसर पैदा नहीं हो रहे। ऐसे में जब लोगों की क्रय शक्ति घट गई है, तो बाजार में पूंजी का प्रवाह बढ़ेगा भी तो कैसे। महंगाई पर अगर काबू पाना है, तो लोगों की आय बढ़ाने संबंधी प्रयास जरूरी हैं। फिलहाल तेल पर उत्पाद शुल्क घटा कर भी कुछ हद तक इसे नियंत्रित किया जा सकता है।