सम्पादकीय

महंगाई की रफ्तार

Subhi
16 March 2022 4:28 AM GMT
महंगाई की रफ्तार
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हाल में आए महंगाई के सरकारी आंकड़ों ने चिंता और बढ़ा दी है। थोक और खुदरा महंगाई अभी जिस उच्चतम स्तर पर है, उससे लगता नहीं कि आने वाले दिनों में कोई राहत मिलेगी।

Written by जनसत्ता: हाल में आए महंगाई के सरकारी आंकड़ों ने चिंता और बढ़ा दी है। थोक और खुदरा महंगाई अभी जिस उच्चतम स्तर पर है, उससे लगता नहीं कि आने वाले दिनों में कोई राहत मिलेगी। बल्कि अंदेशा इस बात का गहरा रहा है कि आगामी महीनों में यह कहीं पिछले रेकार्ड न तोड़ने लगे। फरवरी में खुदरा महंगाई आठ महीने में सबसे ज्यादा यानी 6.07 फीसद रही, जो जनवरी में 6.01 फीसद थी। इसी तरह थोक महंगाई दर भी 13.11 फीसद पर है। लंबे समय से थोक महंगाई का दो अंकों में बने रहना हालात की गंभीरता को बता रहा है।

ऐसे में अब इस बात का कोई मतलब नहीं रह जाता कि महंगाई में कितने फीसद या कितने दशमलव अंक की वृद्धि या कमी हुई। इसका असर तो रोजमर्रा की जिंदगी में पता चल ही रहा है। हकीकत तो यह है कि शायद ही कोई ऐसी वस्तु हो, जिसके दाम न बढ़ रहे हों। चाहे खाने-पीने की चीजें हो या फिर दैनिक जीवन में इस्तेमाल होने वाली सामान्य चीजें। कुछ दिन पहले ही दूध के दाम दो रुपए प्रति लीटर बढ़ा गए थे। इसके पहले व्यावसायिक गैस सिलेंडर एक सौ पांच रुपए महंगा हुआ था। फिर सीएनजी महंगी हुई।

फरवरी के आंकड़े बता रहे हैं कि महंगाई का रुख जनवरी की तरह ही रहा। इस बार भी खाद्य वस्तुओं, कपड़े, जूते-चप्पल, र्इंधन और बिजली की कीमतों में तेजी आई। इसके अलावा, खाने-पीने के सामान, पेय पदार्थों और डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ सवा साल में सबसे ज्यादा फरवरी में महंगे हुए। चाय, काफी से लेकर मैगी तक के दाम बढ़ गए। सब्जियों और फलों के दाम पहले से ही रुला रहे हैं।

खाद्य तेलों के दाम भी साल भर पहले जिस स्तर को छू गए थे, उसके बाद इनमें कोई उल्लेखनीय कमी तो आई नहीं, बल्कि पिछले महीने यूक्रेन संकट का हवाला देते हुए कंपनियों ने फिर दाम बढ़ा दिए। महंगाई का एक बड़ा कारण उत्पादन लागत का लगातार बढ़ना भी रहा। थोक महंगाई दो अंकों में बने का रहने का मतलब यही है कि कारखानों-फैक्टरियों से सामान महंगा होकर ही बाहर आ रहा है। इसका मूल कारण कच्चे माल का महंगा होना है। इसके अलावा बिजली महंगी होने से भी लागत बढ़ रही है।

फिर फैक्टरियों से बाजार तक माल पहुंचने की लागत भी इसमें जुड़ जाती है। और इन सबका बोझ आखिरकार उपभोक्ता की जेब पर पड़ता है। जाहिर है, थोक महंगाई बढ़े या खुदरा महंगाई, मार तो आम लोगों पर ही पड़नी है। पैसा लोगों की जेब से ही निकलना है। ऐसे में मुश्किलें तब और पहाड़ जैसी बन जाती हैं जब पास में पैसा न हो। गौरतलब कि देश में बेरोजगारी चरम पर है और करोड़ों लोग पिछले दो-ढाई साल से आर्थिक बदहाली का सामना कर रहे हैं।

अभी तक महंगाई का कारण कोरोना महामारी के कारण अर्थव्यवस्था में मंदी, विकास दर में कमी, लोगों के पास पैसा नहीं होना जैसे कारण बने हुए थे। लेकिन अब रूस और यूक्रेन की जंग ने नई मुसीबत खड़ी कर दी है। कच्चा तेल महंगा होने से यह संकट और भयानक रूप ले सकता है। तेल कंपनियां दाम बढ़ाने को तैयार बैठी हैं। जाहिर है, आने वाले वक्त में इसका सामना करने को तैयार रहना होगा। रिजर्व बैंक पहले ही आगाह कर चुका है कि इस साल महंगाई की मार से बच पाना मुश्किल है। ऐसे में उस पर भी नीतिगत दरें बढ़ाने के लिए दबाव तो है ही। संकट गंभीर इसलिए भी हो गया है कि आबादी के बड़े हिस्से के पास खर्च के लिए पर्याप्त पैसे ही नहीं है। ऐसे में लोग कैसे महंगाई की मार बर्दाश्त कर पाएंगे?


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