सम्पादकीय

महंगाई का इंधन

Subhi
16 Feb 2021 2:36 AM GMT
महंगाई का इंधन
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पेट्रोल और डीजल की कीमतें एक हफ्ते से लगातार बढ़ रही हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | पेट्रोल और डीजल की कीमतें एक हफ्ते से लगातार बढ़ रही हैं। इसका नतीजा यह है कि देश के ज्यादातर शहरों में इसकी कीमत नब्बे से सौ रुपए के बीच पहुंच गई है। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ जिलों में यह कीमत सौ रुपए से भी अधिक हो गई है। यही हाल घरेलू गैस का है।

इस महीने करीब बारह दिनों में ही एक सिलिंडर की कीमत पचहत्तर रुपए बढ़ गई। इसे लेकर स्वाभाविक ही आम लोगों में निराशा और नाराजगी है। विपक्ष को सरकार पर हमला करने का एक और मौका मिल गया है। तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो उसका असर रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली उपभोक्ता वस्तुओं पर भी दिखाई देने लगता है। माल ढुलाई और यातायात खर्च बढ़ जाता है। कल-कारखानों में उत्पादन लागत ऊंची हो जाती है। यानी कुल मिला कर आम नागरिकों की जेब पर चौतरफा बोझ पड़ता है।
आमतौर पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से घरेलू बाजार में डीजल और पेट्रोल की कीमतें बढ़ती हैं। मगर अनेक मौकों पर देखा गया है कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें काफी कम रही हैं, तब भी हमारे यहां तेल की कीमतें बढ़ी हैं। इस वक्त भी कच्चे तेल की कीमतें इतनी अधिक नहीं हैं कि उसका बोझ डीजल, पेट्रोल की कीमतें बढ़ा कर कम किया जाए। जब केंद्र में भाजपा की अगुआई वाली सरकार पहली बार आई थी, तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें काफी कम हो गई थीं।

उस वक्त सरकार ने एलान किया था कि वह तेल की कीमतें कम नहीं करेगी, एक विशेष कर के रूप में उसे एकत्र कर एक तेल पूल तैयार करेगी, जो संकट के समय काम आएगा। वह कर लगातार बढ़ता गया है, पर अब तक न तो उस एकत्र पैसे से कोई तेल पूल तैयार किया गया है और न ऐसा कोई उपाय, जिससे जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें कम हों, तो अधिक से अधिक कच्चा तेल खरीद कर रखा और तेल की कीमतें संतुलित रखी जा सकें। गनीमत है कि पिछले साल जब इसी तरह तेल की कीमतें बढ़नी शुरू हुई थीं, तो कुछ राज्य सरकारों ने अपने यहां वैट दरें घटा दी थीं, जिससे कीमतें कुछ राहत देने वाली हो सकी थीं। मगर राज्य सरकारों की भी अपनी सीमा है, वे बार-बार ऐसा नहीं कर सकतीं।
विचित्र है कि ऐसे समय में, जब बहुत सारे छोटे और मझोले उद्योग, रेहड़ी-पटरी के कारोबार, दुकानें आदि बंद हो चुकी हैं, बहुत सारे लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं, लाखों लोगों को पहले से कम वेतन पर गुजारा करना पड़ रहा है, महंगाई निरंतर बढ़ती जा रही है, तब भी तेल की कीमतों को नियंत्रित करने का प्रयास नहीं हो रहा।
सरकार का दावा है कि जल्दी ही अर्थव्यवस्था ऋणात्मक स्तर से ऊपर उठ कर धनात्मक रुख कर लेगी, मगर हकीकत यह है कि दुनिया के एक सौ तिरानबे देशों में विकास दर के मामले में भारत की स्थिति एक सौ साठ से भी नीचे के पायदान पर पहुंच चुकी है। इस स्थिति में तेल और घरेलू गैस जैसी वस्तुओं के दाम को सरकार अगर संभाल नहीं पा रही, तो उसके लिए महंगाई और अर्थव्यवस्था की चुनौती से पार पाना कठिन ही रहने वाला है।


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