सम्पादकीय

प्राथमिकता में हो महंगाई नियंत्रण, आवश्यक हो गया था रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप

Gulabi Jagat
9 May 2022 5:03 AM GMT
प्राथमिकता में हो महंगाई नियंत्रण, आवश्यक हो गया था रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप
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प्राथमिकता में हो महंगाई नियंत्रण
डा. ब्रजेश कुमार तिवारी। महंगाई की विकराल होती समस्या से निपटने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक को मौद्रिक नीति की समीक्षा के पहले ही नीतिगत दरों में बदलाव करने पर विवश होना पड़ा। रिजर्व बैंक को जून में मौद्रिक नीति समीक्षा करनी थी और उसमें यही अनुमान लगाया जा रहा था कि केंद्रीय बैंक दरें बढ़ाएगा, लेकिन उसके पूर्व ही गत बुधवार को आरबीआइ ने रेपो रेट में 40 आधार अंकों की बढ़ोतरी की। इस बढ़ोतरी के बाद रेपो दर 4 प्रतिशत से बढ़कर 4.40 प्रतिशत हो गई। रेपो वह दर है जिस पर बैंक तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए आरबीआइ से कर्ज लेते हैं।
महंगाई बढ़ने पर आरबीआइ रेपो रेट को बढ़ा देता है। ब्याज की इस दर के बढ़ने से केंद्रीय बैंक से पैसा उधार लेना अधिक महंगा हो जाता है और अंतत: बाजार में पैसे की तरलता यानी लिक्विडिटी कम होती है। रेपो दर के साथ ही आरबीआइ ने नकद आरक्षित अनुपात यानी सीआरआर को 0.50 प्रतिशत बढ़ाकर 4.5 प्रतिशत कर दिया। इस फैसले से बैंकों को अतिरिक्त राशि आरबीआइ के पास रखनी होगी। आरबीआइ वित्तीय तंत्र से तरलता निकालना चाहता हो तो वह सीआरआर रेट बढ़ा देता है। सीआरआर जमाकर्ताओं के पैसे का वह प्रतिशत है, जो वाणिज्यिक बैंकों को अनिवार्य रूप से रिजर्व बैंक के पास रखना होता है। सीआरआर में 50 आधार अंकों की बढ़ोतरी से बैंकिंग तंत्र से 87,000 करोड़ रुपये निकल जाएंगे।
रेपो दर जनवरी 2014 में 8 प्रतिशत के स्तर से कोरोना के चलते मई 2020 तक गिरकर 4 प्रतिशत हो गई थी, लगभग चार वर्षो में पहली बार इसे बढ़ाया गया है। इस फैसले को आर्थिक दृष्टि से सकारात्मक माना जा रहा है, क्योंकि इसका उद्देश्य उच्च मुद्रास्फीतिक दबाव को नियंत्रण में रखते हुए आर्थिक वृद्धि को गति देना है। हालांकि इससे घर, वाहन और अन्य व्यक्तिगत एवं कारपोरेट ऋणों पर समान मासिक किस्त (ईएमआई) का बोझ भी बढ़ जाएगा। फिर भी यह कदम मुद्रास्फीति की उस दर पर लगाम लगाने में कुछ हद तक सहायक होगा, जो पिछले तीन महीनों से 6 प्रतिशत के लक्ष्य से ऊपर बनी हुई है। साथ ही बैंक और एनबीएफसी जमा और छोटी बचत योजनाओं जैसे बचत उत्पादों पर रिटर्न से निश्चित आय वाले निवेशकों को फायदा होगा।
चालू वित्त वर्ष में रेपो दर में 100 आधार अंकों की बढ़ोतरी की उम्मीद है। यानी अभी रिजर्व बैंक के पास 60 आधार अंकों की बढ़ोतरी की गुंजाइश शेष है। रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति कमेटी को काम दिया गया था कि 31 मार्च, 2026 तक खुदरा महंगाई को 2 प्रतिशत से 4 प्रतिशत के बीच रखे, किंतु ऐसा होता दिख नहीं रहा था। अब सवाल यह उठता है कि क्या महंगाई केवल इस कदम से नियंत्रण में आ जाएगी तो जवाब होगा कि उसके लिए और उपाय करने होंगे। केवल ब्याज दरें बढ़ाना ही पर्याप्त नहीं। चूंकि महंगाई का मुद्दा राजनीतिक रूप से भी बहुत संवेदनशील है तो अब सरकार को भी कुछ कदम उठाने होंगे, क्योंकि रिजर्व बैंक तो अपना काम कर चुका है। महंगाई का सबसे बड़ा कारण है तेल। फिर चाहे चाहे वह ईंधन हो या फिर खाद्य तेल, उन पर हमारी कमाई का पहले से कहीं ज्यादा हिस्सा खर्च हो रहा है।
पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क और वैट के रूप में कर 35 से 50 रुपये प्रति लीटर के करीब है। इसे कम किया जाए तो इससे इन उत्पादों के दाम नीचे आएंगे और फिर हर चीज के दाम पर उसका असर दिखना शुरू होगा। हालांकि सरकार का कहना है कि वह पेट्रोलियम उत्पादों पर लगाए गए कर से प्राप्त राशि का उपयोग कल्याणकारी योजनाओं में करती है। वैसे सरकार ये सब कार्य दूसरी मदों से भी पूरा कर सकती है, क्योंकि इस समय सरकार का कर राजस्व संग्रह अच्छी खासी स्थिति में है।
मार्च में 1,42,095 करोड़ रुपये का जीएसटी राजस्व सरकार को मिला। यह पिछले पांच साल में सबसे ज्यादा था और पिछले साल यानी मार्च 2021 से तुलना करें तो जीएसटी वसूली में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। अप्रैल में तो यह आंकड़ा और बढ़कर 1,67,540 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया। ऐसे में हालात यही मांग करते हैं कि पेट्रोलियम उत्पादों पर करों की दरों को तर्कसंगत बनाने के साथ-साथ जीएसटी की कुछ श्रेणियों में भी दरों को तार्किक बनाया जाए। इस मामले में राजस्व क्षति की भरपाई सरकार संपत्ति कर और कारपोरेट करों में वृद्धि के माध्यम से कर सकती है।
खाद्य पदार्थो की कीमतों को काबू में लाना सबसे जरूरी है। याद रहे कि महंगा भोजन आबादी के स्वास्थ्य के लिए खतरा होता है। इतना ही नहीं, खाद्य उत्पादों या कच्चे माल की बढ़ी कीमतों से एफएमसीजी जैसे क्षेत्र दबाव में आ जाते हैं। इससे मांग प्रभावित हो जाती है। इसीलिए महंगाई पर स्थायी नियंत्रण के लिए कृषि उत्पादन पर ध्यान देना आवश्यक ही नहीं, अपितु अनिवार्य होता है। इसके लिए आवश्यक होगा कि कृषि वस्तुओं की आपूर्ति बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाए। कोविड के समय में कृषि ही एक ऐसा क्षेत्र बना रहा, जिसकी वृद्धि नहीं थमी। अब डीजल, गैस और उर्वरक की कीमतों में तेजी के चलते कृषि लागत के बढ़ने की आशंका दिखती है। सरकार भी इससे भलीभांति अवगत है और उसने हाल में उर्वरक सब्सिडी को बढ़ाकर दोगुना कर दिया है। प्रतीत होता है कि केवल इससे ही संकट टलने वाला नही।
अभी लोगों को महंगाई की मार से कैसे बचाया जाए, फिलहाल यह सवाल हमारे लिए तात्कालिक महत्व का है। आम लोगों पर महंगाई की मार के दूरगामी असर होते हैं, जो उन्हें गरीबी की ओर धकेलते हैं। उनके लिए अल्प मात्र में धन का वितरण भी ऐसी स्थिति में उपयोगी नहीं होता। इसीलिए महंगाई को नियंत्रित करना सरकार की प्राथमिकता में होना चाहिए। कुल मिलाकर
(लेखक जेएनयू के अटल स्कूल आफ मैनेजमेंट में एसोसिएट प्रोफेसर हैं)
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