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अमेरिका में भले ही टेलीविजन चैनलों और अखबारों में कोरोना महामारी की खबरें प्रमुखता से नहीं दिखायी या छापी जा रही
अमेरिका में भले ही टेलीविजन चैनलों और अखबारों में कोरोना महामारी की खबरें प्रमुखता से नहीं दिखायी या छापी जा रही हों और वेबसाइटों की शीर्ष खबरों में संक्रमण के बढ़ते मामलों का जिक्र नहीं हो रहा हो, मगर सच्चाई तो यही है कि अमेरिका में अब भी स्थिति खतरे से बाहर नहीं है. देशभर में स्कूलों और कॉलेजों का नया सत्र शुरू हो गया है और कमरे के अंदर मास्क पहनने और अन्य निर्देशों के पालन के संबंध में निर्धारित कठोर नियमों के साथ सभी प्रतिष्ठान खुल गये हैं.
अमेरिका ही नहीं, दुनिया की वित्तीय राजधानी कहे जानेवाले न्यूयार्क शहर का ब्राडवे थिएटर भी खुल चुका है. उल्लेखनीय है कि न्यूयॉर्क आबादी के लिहाज से अमेरिका का सबसे बड़ा शहर है. धीरे-धीरे सिनेमाघरों के खुलने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है, लेकिन इन सबके बीच अमेरिका के कई राज्यों में कोरोना वायरस के संक्रमण ने फिर से जोर पकड़ लिया है. अगस्त के महीने में डेल्टा वेरिएंट ने मिसिसिपी राज्य में कहर मचाया था. उसके बाद इस बात पर जोर दिया गया है कि जितनी जल्दी हो सके, टीके लगाये जाएं. लोगों से भी कहा जा रहा है कि वे टीकाकरण तुरंत कराएं.
टीकाकरण अभियान का असर भी देखने को मिल रहा है, लेकिन संक्रमण को पूरी तरह से रोका जाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है. बड़े शहरों में, जहां यह अभियान तेज रहा है, वहां जनजीवन सामान्य होने लगा है. उदाहरण के तौर पर, न्यूयार्क जैसे शहर में लोग अब लगभग पूरी तरह से काम पर लौट चुके हैं तथा तमाम गतिविधियां कमोबेश शुरू हो चुकी हैं. इससे स्पष्ट है कि टीके की खुराक लोगों को संक्रमण के खतरे से बचा रही है, लेकिन उन राज्यों में, जहां टीकाकरण की प्रक्रिया धीमी रही थी, वहां बीमारी के नये वैरिएंट सामने आये हैं.
इस स्थिति ने प्रशासनिक और मेडिकल विभागों को चौकन्ना कर दिया है. मार्च के बाद पहली बार सितंबर में हर दिन कोरोना महामारी के संक्रमण के कारण मरनेवालों की संख्या पंद्रह सौ के ऊपर जा चुकी है. हालांकि यह संख्या पिछली सर्दियों में हो रही मौतों से कम है, लेकिन फिर भी यह गंभीर चिंता का विषय माना जा रहा है. अमेरिका के मेन, साउथ डकोटा और ओहायो राज्यों में एक बार फिर कोरोना पीड़ितों की संख्या बढ़ रही है. साउथ कैरोलीना में हर दिन पांच हजार से अधिक मामले सामने आ रहे हैं, जिसके कारण अस्पतालों में जगहें कम पड़ गयी हैं. आशंका है कि राज्य की हालत पिछली सर्दियों जैसी हो सकती है, जब बड़ी संख्या में इस राज्य में मौतें हुई थीं.
फ्लोरिडा में भी स्थिति खराब थी, पर अब पहले से बेहतर हुई है, लेकिन अब भी पंद्रह हजार से अधिक कोरोना संक्रमण के मरीज अस्पतालों में भर्ती हैं, जो देश की सबसे ऊंची दर है. अस्पताल में भर्ती होने के आंकड़ों से यह भी अंदाजा लगाया जा रहा है कि इतने लोगों ने संभवत: टीका नहीं लिया है. पिछले दो हफ्तों में ओरेगान और वाॅशिंगटन राज्यों में भी रिकॉर्ड नंबर में कोरोना संक्रमण के मामले आये थे, लेकिन अब स्थिति थोड़ी ठीक बतायी जा रही है.
अमेरिका में हर दिन साढ़े नौ लाख से अधिक टीके की खुराकें दी जा रही हैं और उम्मीद की जा रही है कि इस महामारी पर जल्द ही नियंत्रण कर लिया जायेगा, मगर कोरोना वायरस के नये-नये वैरिएंट किस स्तर पर संक्रमण फैला सकते हैं या उनकी आक्रामकता किस प्रकार की होगी, इसको लेकर फिलहाल कुछ भी पक्के तौर पर कहा नहीं जा सकता है. अभी देश के तीन-चौथाई लोगों को वैक्सीन की कम-से-कम एक खुराक दी जा चुकी है.
प्रति दिन के टीकाकरण औसत को देखते हुए इसे संतोषजनक आंकड़ा माना जा है. इस बीच सितंबर की शुरुआत में होनेवाले लेबर डे वीकेंड पर स्वास्थ्य विभाग ने चेतावनी दी थी कि लोग यात्राएं न करें. पिछले कुछ महीनों में यह पहली बार हुआ है कि स्वास्थ्य विभाग ने ऐसी चेतावनी दी हो कि लोग यात्रा न करें. वैक्सीन के बावजूद लोगों से कहा जा रहा है कि वे यथासंभव मास्क पहने रहें. किसी कमरे के अंदर होने पर विशेष तौर से यह सलाह दी गयी है कि मास्क न उतारा जाए.
अमेरिका में अब बड़ी कंपनियां वैक्सीन के नये बूस्टर डोज भी लगा रही हैं. इसके साथ ही छोटे बच्चों के लिए भी वैक्सीन तैयार करने का काम शुरू हो चुका है. फिलहाल फाइजर ने नया बूस्टर डोज लांच किया है. इस खुराक के बारे में स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि यह खुराक वे ही लोग लें, जिनकी प्रतिरोधात्मक क्षमता बहुत कमजोर हो. स्वास्थ्य अधिकारियों ने व्हाइट हाउस को सुझाव दिया है कि वे बूस्टर खुराक को लेकर कोई सिफारिश न करें और इस बारे में समुचित डाटा आने का इंतजार किया जाए.
तथ्यों के सामने आने के बाद बूस्टर डोज के असर के बारे में भी जाना जा सकेगा तथा यह अनुमान लगाना भी संभव हो सकेगा कि आगे भी इसकी जरूरत होगी या नहीं. अनेक विशेषज्ञों का मानना है कि यह बहुत कुछ वायरस के बदलते रूपों पर निर्भर करेगा. इस मामले में ये आरोप भी लग रहे हैं कि बड़ी कंपनियां वैक्सीन के जरिये बड़ा पैसा बनाने की फिराक में लग गयी हैं.
महामारी को लेकर अमेरिका में अब आगे की बड़ी योजनाएं बननी शुरू हो गयी हैं. बाइडेन सरकार ने भविष्य में ऐसी किसी महामारी से निबटने के लिए एक नयी योजना पर काम शुरू किया है, जिसकी तुलना चंद्रमा पर गये अपोलो मिशन से की जा रही है. इस मिशन के लिए कांग्रेस से पंद्रह अरब डॉलर की शुरुआती रकम के निवेश का अनुरोध किया गया है. द न्यूयार्क टाइम्स की एक खबर के अनुसार इस पैसे का उपयोग एक ऐसा मिशन कंट्रोल बनाने में किया जाना है, जो किसी महामारी की अवस्था में नेतृत्व और समन्वय का पूरा काम अपने जिम्मे ले लेगी.
हालांकि अभी स्पष्ट नहीं है कि कांग्रेस बाइडेन की इस योजना के लिए इतना पैसा मुहैया करायेगी या नहीं, लेकिन यह तय है कि आगे की महामारियों से बचाव के लिए अमेरिका ने अभी से सोचना शुरू कर दिया है और इस दिशा में कदम भी उठाये जाने लगे हैं.
फिलहाल नयी योजनाओं के साथ अमेरिका का पूरा फोकस इसी बात पर केंद्रित है कि जल्द-से-जल्द पूरी आबादी को टीके लगें, ताकि कोरोना वायरस के नये वैरिएंट न आ सकें, क्योंकि इस बाबत कोई भी पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि वायरस के नये रूपों पर टीकों का कैसा असर होगा.
क्रेडिट बाय प्रभात खबर
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