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- बेवजह बंदूक
Written by जनसत्ता: महाबली अमेरिका में अक्सर दर्जनों लोग कुछ सिरफिरे लोगों की गोलीबारी में मारे जाते हैं। उस देश में पिछले पचास वर्षों से बंदूक संस्कृति के खिलाफ महज बहस हो रही है। डेमोक्रेटिक पार्टी उस पर प्रतिबंध लगाना चाहती है, मगर रिपब्लिकन पार्टी उसे ऐसा करने नहीं देना चाहती। इनका मानना है बंदूक रखना हमारा संवैधानिक अधिकार है। इसे कोई नहीं छीन सकता।
अमेरिका इस मुद्दे पर पूरी तरह विभाजित और असहाय दिख रहा है। मगर इनके पड़ोसी कनाडा ने ऐसी त्रासदियों से बचने के लिए पहले ही उपाय कर लिए हैं। यहां के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने बताया कि सभी तरह की बंदूकों की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाला कानून संसद में पेश कर दिया गया है। इस कानून के तहत घरेलू हिंसा या आपराधिक उत्पीड़न में शामिल बंदूक मालिकों के आग्नेयास्त्रों के लाइसेंस भी रद्द हो जाएंगे।
देश में बड़े जोर शोर से अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। बहुत अच्छी बात है। सरकार गरीबों के हित में कदम उठा रही है, बेरोजगारी दूर करने के लिए योजनाएं ला रही है। गरीबी और बेरोजगारी बढ़ाने में जनसंख्या वृद्वि भी बड़ा कारण है। आजादी के बाद से ही गरीबी और बेरोजगारी कम करने की योजनाएं बन रही हैं, पर तमाम प्रयासों के बावजूद ये बढ़ रही हैं। इनका साथ अब तो बढ़ती महंगाई भी दे रही है।
इन सब के चलते अपराध और अवसाद में तेजी आने लगी है। शायद गरीबी और बेरोजगारी के कारण 'दो जून की रोटी' के लिए बहुत भटकना स्वाभाविक है। काम की व्यस्तता और पास में दो पैसे हों तो युवा वर्ग न तो अवसाद में आए और न ही उनके खाली दिमाग में फितरत पैदा हो। गरीबी और बेरोजगारी कम होगी तो अवसाद और अपराधों में भी कमी आएगी।